अडानी की कहानी : एक कॉलेज ड्रॉपआउट से लेकर बिजनेस टायकून बनने का सफर

कुछ लोग मुंह में चांदी का चम्मच लेकर पैदा होते हैं, उन्हें धन-दौलत विरासत में मिलती है, वहीं कुछ ऐसे लोग भी हैं जिनके जीवन का सफर कांटों से भरा होता है, पर अपने संघर्ष के दम पर वे सफलता पा ही लेते हैं। भारत के प्रमुख उद्योगपतियों में एक गौतम अडानी का जीवन भी ऐसा ही है। उन्होंने संघर्ष के बल बूते अपना विशाल व्यावसायिक साम्राज्य खड़ा किया। 

नई दिल्ली।  यह एक ऐसे शख्स की असाधारण कहानी है, जिसने किस्मत को कोसने से इनकार कर दिया और इसके बजाय कारोबारी दुनिया में अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष के रास्ते का चुना। गौतम अडानी अडानी समूह के फाउंडर और प्रेसिडेंट होने के साथ ही  भारत के अग्रणी व्यावसायिक टायकून में से एक हैं। कई उद्योगपतियों की तरह   अदानी को व्यावसायिक साम्राज्य विरासत में नहीं मिला। उनके माता-पिता शांताबेन और शांतिलाल अडानी अपने आठ बच्चों के लिए अधिक बेहतर अवसर हासिल करने की उम्मीद में नोरथर गुजरात के थारद नामक एक छोटे से शहर से अहमदाबाद  चले आए थे। आठ बच्चों का पालन-पोषण करना मुश्किल था और समझा जा सकता है कि अडानी ने बचपन में कैसी जिंदगी बिताई होगी। 

पढ़ाई छोड़ मुंबई चल पड़े
अडानी ने अहमदाबाद के सेठ सीएन विद्यालय से अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की और फिर गुजरात विश्वविद्यालय में वाणिज्य में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। यह तब था जब वह खातों और आंकड़ों पर विचार कर रहा थे, उन्होंने महसूस किया कि शिक्षा उनके लिए ज्यादा काम की चीज नहीं है। उन्हें लगा कि  वह अपने समय का उपयोग बड़े और बेहतर काम करने में कर सकते हैं। इसके बाद अडानी ने कॉलेज से बाहर निकलकर कई लोगों को चौंका दिया। अपनी जेब में केवल सौ रुपये के साथ वह सपनों के शहर  मुंबई के लिए रवाना हुए।

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महिंद्रा ब्रदर्स में नौकरी के बाद शुरू किया अपना बिजनेस
 उन्होंने महिंद्रा ब्रदर्स की मुंबई शाखा में नौकरी शुरू की। व्यापार के ए से जेड को जानने के बाद और बाजार के बदलते ट्रेंड्स के समझने में समर्थ हो जाने के बाद  उन्होंने शहर के आभूषणों के सबसे बड़े झवेरी बाजार में अपना खुद का डायमंड ब्रोकरेज स्थापित किया। यह उनका पहला बड़ा ब्रेक था। एक साल बाद, उनके बड़े भाई महासुख अडानी ने अहमदाबाद में एक प्लास्टिक इकाई खरीदी और उनसे घर वापस आने और फैक्ट्री चलाने को कहा। यह गौतम अडानी के जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ था। पॉलीविनाइल क्लोराइड, एक प्रमुख औद्योगिक कच्चे माल के आयात के उनके निर्णय से  वैश्विक व्यापार के क्षेत्र में उनका आगमन हुआ।

आर्थिक उदारीकरण से मिला फायदा
आर्थिक उदारीकरण अडानी के लिए  वरदान साबित हुआ। अपने लाभ के लिए बाजारों में बदली स्थिति का उपयोग करते हुए उन्होंने 1988 में अडानी समूह की स्थापना की।  शुरुआती वर्षों के दौरान यह बहुराष्ट्रीय समूह कृषि से संबंधित वस्तुओं और पावर पर केंद्रित था। 1991 तक कंपनी के संसाधन भी बढ़े और ताकत भी। गौतम अडानी का मानना ​​था कि कंपनी के लिए अपनी वस्तुओं और हितों में विविधता लाने का यह  समय सही था।
तब से अडानी समूह पावर जनरेशन और ट्रांसमिशन, कोल ट्रेडिंग और खनन, गैस वितरण, तेल और गैस की खोज के साथ-साथ बंदरगाहों और विशेष आर्थिक क्षेत्रों में प्रमुख हितों के साथ एक विशाल कंपनी के रूप में उभरा है। कई अरब डॉलर से अधिक की कंपनी के प्रमुख और मालिक होने के बावजूद गौतम अडानी अपनी छोटी शुरुआत को कभी नहीं भूलते हैं। 

अडानी फाउंडेशन लगा है समाज हित के कामों में
अडानी फाउंडेशन की चेयरपर्सन प्रीति अडानी गौतम अडानी की पत्नी हैं। वह एक डेंटिस्ट थीं। उऩके नेतृत्व में फाउंडेशन समूह शिक्षा, सामुदायिक स्वास्थ्य, सतत आजीविका विकास और ग्रामीण बुनियादी विकास के साथ जुड़े कई परोपकारी संगठनों के साथ मिल कर काम कर रहा है। उनका उद्देश्य  सामाजिक दायित्वों को पूरा करने, स्थायी और एकीकृत विकास को बढ़ावा देने और इस प्रकार जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना है।

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