भारत में इत्र और फ्लेवर का कारोबार (Fragrance & Flavour Industry in India) कोई छोटा नहीं है। एमएसएमई मिनिस्ट्री (MSME Ministry) के आंकड़ों के अनुसार पूरे देश में इसका 3200 करोड़ रुपए से ज्यादा का है। जबकि भारत के कुल प्रोडक्शन का 80 फीसदी उत्तर प्रदेश में ही होता है उसके बाद नंबर बिहार और मध्यप्रदेश का आता है।
बिजनेस डेस्क। भारत में खुशबू और स्वाद यानी फ्रेग्रेंस एंड फ्लेवर के कारोबार (Fragrance & Flavour Industry in India) को एक साथ रखा जाता है। एमएसएमई मिनिस्ट्री (MSME Ministry) में बकायदा इस इंडस्ट्री के बारे में काफी विस्तार से जिक्र भी किया गया है। जिससे आप समझ सकते हैं कि भारत सरकार (Indian Govt) के लिए यह कारोबार कितना अहम है। मौजूदा समय में इस कारोबार में भारत ग्लोबल लीडर के रूप में भी उभरता जा रहा है। इस कारोबार की चर्चा भी आज इसलिए हो रही है, क्योंकि कानपुर के इत्र कारोबारी के घर से अरबों रुपयों की दौलत छापेमारी के दौरान मिली है। खैर आज हम बात भारत में इस फ्रेगनेंस एंड फ्लेवर कारोबार की करेंगे। भरत में इसका कितना बड़ा मार्केट है और दुनिया में भारत इस कारोबार में कहां स्टैंड करता है।
भारत में इसका इतिहास और विकास
भारत में पुराने समय से अरोमाथेरेपी, धूप और इटार मौजूद हैं, जहां आवश्यक तेल इत्र प्राचीन विद्या का हिस्सा था। सबसे पहले इस्तेमाल की जाना वाला इत्र आयुर्वेद के माध्यम से शुरू किया गया था, जिसमें सुगंधित जड़ी-बूटियों और सुगंधित पौधों के उपयोग किया जाता था। इसका इस्तेमाल मेंटल हेल्थ, सौंदर्य, बीमारियों के उपचार, स्वच्छता और आयु-नियंत्रण के लिए किया जाता था। भारत में इस पारंपरिक फ्रेग्रेंस इंडस्ट्री में हाल के वर्षों में टेक्नोलॉजी की शुरूआत हुई और व्यापक उपयोग के साथ बड़े बदलाव हुए हैं। भारतीय सुगंध उद्योग उत्पादन, खपत के मामले में सबसे बड़े उद्योग में से एक है। भारत ऑर्गैनिक फ्रेग्रेंट रॉ मटीरियल का प्रोडक्शन कर सकता है जिसकी दुनिया में बहुत मांग है।
भारत में इसका कारोबार
एमएसएमई मिनिस्ट्री की वेबसाइट के अनुसार ग्लोबल फ्रेग्रेंस और फ्लेवर इंडस्ट्री 24.10 बिलियन डॉलर यानी 1.80 लाख करोड़ रुपए की है। भारत में इसका कारोबार लगभग 500 मिलियन डॉलर यानी 3200 करोड़ रुपए से ज्यादा का है। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में भारत में विकास दर लगभग 11 फीसदी है, लेकिन आने वाले वर्षों में पर्यनल केयर, ब्रांड जागरूकता, बढ़ती डिस्पोजेबल इनकम, मध्यम वर्ग के लोगों में मास परफ्यूम और डिओडोरेंट्स के रूप बढ़ती मांग और सुगंध की सस्ती कीमत के कारण आने वाले वर्षों में तेजी से बढ़ने का अनुमान है। फ्रेग्रेंस और फ्लेवर डेवलपमेंट सेंटर, कन्नौज की सफलता और पिछले छह वर्षों से इसकी आत्मनिर्भरता और देश भर में इसकी आवश्यकता और क्षमता की बढ़ती मांग को देखते हुए, सभी राज्यों में इस तरह के केंद्र खोलने की डिमांड की जा रही है।
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भारत में रॉ मटीरियल का प्रोडक्शन
दुनिया भर में, लगभग 300 नेचुरल फ्रेग्रेंट रॉ मटीरियल उपयोग में हैं। इनमें से केवल 50 फीसदी की खेती की जाती है और शेष जंगली बस्तियों (जैसे नागरमोथा, केवड़ा आदि) में पाए जाते हैं। खेती की गई रॉ मटीरियल में से 110 नेचुरल फ्रेग्रेंट रॉ मटीरियल वर्तमान ग्लोबल कंजंप्शन का 95 फीसदी फ्रेग्रेंस एंड फ्लेवर में है। इनमें से 31 खेती ऐसी हैं जिनके लिए भारत विश्व स्तर पर जाना जाता है। भारत ने मेन्थॉल मिंट, चंदन, चमेली, कंद और मसालों के इजेंशियल ऑयल के साथ पूरी दुनिया में प्रभाव डाला है।
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मेन्थॉल मिंट में ग्लोबल लीडर है भारत
मेन्थॉल मिंट को भारत में 1954 में पेश किया गया था और फिर सीएसआईआर-सीआईएमएपी द्वारा विभिन्न रूपों को विकसित किया गया था और एफएफडीसी कन्नौज सहित विभिन्न संगठनों द्वारा विस्तार किया गया था। लगभग 40,000 टन तेल के साथ कुल वैश्विक उत्पादन का लगभग 90 फीसदी के साथ एक ग्लोबल लीडर है। उत्तर प्रदेश ही भारत की कुल उपज का 80 फीसदी प्रोडक्शन करता है। जबकि बिहार में 13 फीसदी और मध्य प्रदेश 7 फीसदी प्रोडक्शन होता है।