फेविकॉल की कहानी: गांधी से गोंद तक का एक अनोखा सफर

Published : Jun 25, 2025, 01:53 PM IST
Balvant Parekh Fevicol Man

सार

गांधी आंदोलन से लेकर फेविकॉल के आविष्कार तक, बलवंत पारेख की कहानी संघर्ष और सफलता का अनूठा मिश्रण है। जानिए कैसे एक आम आदमी ने मेहनत और लगन से एक ऐसा ब्रांड बनाया जो आज हर घर की पहचान बन गया है।

गोंद का नाम सुनते ही सबसे पहले फेविकॉल का नाम याद आता है। आजकल कई तरह के गोंद बाज़ार में आ गए हैं, फिर भी लोगों की पहली पसंद फेविकॉल ही है। दादा-दादी से लेकर नाती-पोतों तक, घर के हर सदस्य की ज़ुबान पर बस यही नाम आता है। ज़्यादातर फर्नीचर में इसी गोंद का इस्तेमाल होता है। फेविकॉल, फेविस्टिक जैसे कई तरह के गोंद अब कंपनी बाज़ार में उतार चुकी है। सालों से बाज़ार में राज कर रही इस फेविकॉल कंपनी के संस्थापक कौन हैं और उनकी कामयाबी की कहानी क्या है, आइए जानते हैं।

फेविकॉल कंपनी के मालिक का नाम बलवंत पारेख है। कड़ी मेहनत और लगातार कोशिशों ने उनकी ज़िंदगी बदल दी और उन्हें कामयाबी दिलाई। कामयाबी के शिखर तक पहुँचने और हर घर में अपनी जगह बनाने के लिए उन्होंने कड़ा संघर्ष किया। बलवंत पारेख गुजरात में पैदा हुए थे। उनके माता-पिता चाहते थे कि वे वकील बनें। इसीलिए वे कानून की पढ़ाई के लिए मुंबई आए, जहाँ महात्मा गांधी का उन पर गहरा प्रभाव पड़ा। बलवंत पारेख भारत छोड़ो आंदोलन में भी शामिल हुए। इसी दौरान उन्होंने शादी कर ली और घर चलाने के लिए एक प्रिंटिंग प्रेस में नौकरी कर ली।

बलवंत ने कई कंपनियों में काम किया। प्रिंटिंग प्रेस के बाद, उन्होंने एक लकड़ी व्यापारी के यहाँ काम किया। इतना ही नहीं, कानून की पढ़ाई करने के बावजूद वे चपरासी का काम भी करते रहे। उनका परिवार एक गोदाम में रहता था। गोदाम में लकड़ी के टुकड़ों के बीच रहते हुए, बलवंत ने लकड़ी के काम को बारीकी से देखा। अपना खुद का बिज़नेस शुरू करने की इच्छा रखने वाले बलवंत को मोहन का साथ मिला। उन्होंने मिलकर पश्चिमी देशों से भारत में साइकिल, सुपारी, कागज़ का रंग वग़ैरह मँगवाने का काम शुरू किया।

फेविकॉल की शुरुआत कैसे हुई?: इसी दौरान बलवंत का संपर्क एक जर्मन कंपनी, होश्ट से हुआ। उन्हें जर्मनी जाने का मौका मिला, जहाँ उन्होंने बहुत कुछ सीखा। वापस आकर बलवंत पारेख ने अपने भाई के साथ मिलकर डाइकेम इंडस्ट्रीज़ नाम की कंपनी शुरू की। उनकी कंपनी मुंबई के जैकब सर्कल में रंग, औद्योगिक रसायन और पिग्मेंट बनाकर बेचती थी। लकड़ी के काम करने वालों के साथ काफी समय बिताने के बाद, उन्होंने देखा कि लकड़ी जोड़ना कितना मुश्किल होता है। इसका हल निकालने के लिए उन्होंने गोंद बनाने की कोशिश की और उसे फेविकॉल नाम दिया। बलवंत पारेख ने 1959 में भारत में फेविकॉल की शुरुआत की। बाद में कंपनी का नाम बदलकर पिडिलाइट कर दिया गया। बदलते समय के साथ यह भी बदलता गया। फेविकॉल से लेकर फेविक्विक, Mseal जैसे कई उत्पाद बाज़ार में आए। आज फेविकॉल दुनिया के 54 देशों में बिकता है। लगातार मेहनत के बाद, बलवंत के पास आज 56 हज़ार करोड़ रुपये की संपत्ति है।

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