KYC: क्या बला है KYC? जानिए सभी बैंक क्यों मांगते हैं?

डिजिटल युग में KYC एक आम जरूरत बन गई है। KYC का मतलब है 'अपने ग्राहक को जानो' (Know Your Customer)। यह अलग-अलग सर्विस प्रोवाइडर्स अपने ग्राहकों के बारे में जानकारी इकट्ठा करने की एक प्रक्रिया है। 

बिजनेस डेस्क : डिजिटल होती हमारी दुनिया में KYC बेहद जरूरी हो गई है, लेकिन KYC वास्तव में क्या है? KYC का मतलब है 'अपने ग्राहक को जानो' (Know Your Customer)। यह बैंकों और वित्तीय संस्थानों द्वारा अपने ग्राहकों के बारे में जानकारी इकट्ठा करने की एक प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया मनी लॉन्ड्रिंग और अन्य अवैध गतिविधियों को रोकने में मदद करती है।  KYC का उपयोग खाताधारक, उसकी कमाई के तरीकों और लेनदेन जैसी जानकारी को वैरिफाई करने के लिए किया जाता है।

केवाईसी (KYC) क्या है?

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KYC बैंक को किसी भी ग्राहक से जुड़ी समस्या से निपटने में मदद करता है। KYC वित्तीय लेनदेन में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करता है। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के दिशानिर्देशों के अनुसार, बैंकों को अपने ग्राहकों के पहचान और पते के प्रमाण को जमा करना और बनाए रखना आवश्यक है। पहचान प्रमाण आमतौर पर स्थिर होता है, जबकि एड्रेस बदलता रहता है, इसलिए, बैंक समय-समय पर इसे वैरिफाई करने की अपील करते हैं। इसके लिए पैन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, पासपोर्ट आदि जैसे दस्तावेज जरूरी होते हैं। 

क्या है आरबीआई का नियम

रिज़र्व बैंक के 1949 के बैंकिंग विनियमन अधिनियम की धारा 7 बैंकों को ग्राहकों की पहचान और पते को सत्यापित करने का अधिकार देती है। RBI ने बैंक जमा की परिभाषा भी स्पष्ट रूप से प्रदान की है। हालांकि, निवेश करने वाले ग्राहक की पहचान और पते का सत्यापन बैंकों पर छोड़ दिया गया है। अधिकांश बैंक KYC सत्यापन के नियमों का पालन करते हैं।

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