National Postal Worker Day: इंग्लैंड नहीं पटना में ईजाद हुआ था पोस्टल स्टांप, जानें 1774 से जुड़ा अनोखा इतिहास

किताबों में आपने पढ़ा होगा कि दुनिया के पहले पोस्टल स्टांप की शुरुआत 1840 में इंग्लैंड में हुई थी। लेकिन एक रिसर्च में किए गए दावे के सामने इतिहास की यह बात फीकी सी लगती है। चलिए आपको नेशनल पोस्टल वर्कर डे में इस बात की जानकारी देते हैं कि विश्व का पहला पोस्टल स्टांप भारत में कहां बना था। 

बिजनेस डेस्कः विश्व इतिहास में दर्ज है कि पोस्टल स्टांप की शुरुआत 1840 में इंग्लैंड से हुई थी। अगर हम कहें कि स्टांप का पहला कॉन्सेप्ट पटना ने दिया था, तो आप हैरान जरूर होंगे। लेकिन यह सच है। दुनिया का पहला स्टांप कॉपर टिकट था। जिसका मुद्रण अजीमाबाद (तब का पटना) मिंट में होता था। अक्सर देखा जाता था कि पोस्टेज शुल्क को लुटेरे लूट ले जाते थे। कई पोस्टल तो अपने जगह पर पहुंचता भी नहीं था। इससे बचने के लिए कॉपर टिकट की व्यवस्था की गई थी। 

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- पटना (तब का अजीमाबाद) में बने कॉपर टिकट की तस्वीर।

टोकन की तरह शुरू हुआ था कॉपर टिकट
पोस्टल सेवा की शुरुआत या यूं कहें पोस्टल तकनीक का अविष्कार 1774 में हुआ था। बंगाल के तत्कालीन गवर्नर जनरल वोरेन हेस्टिंग्स ने पोस्टेज व्यवस्था शुरू की थी। उन्होंने घोषणा की थी कि पोस्टेज शुल्क देकर कोई भी व्यक्ति पूरे देश में कहीं भी चिट्ठी या कोई सामान भिजवा सकता है। इसमें सबसे बड़ी चिंता पोस्ट करने के लिए दी जानेवाली रकम को लेकर थी। जमींदार या कोई अधिकारी नौकरों को जब पत्र या सामान और रुपए लेकर पोस्ट ऑफिस भेजते थे तो, डर सताता था कि कहीं नौकरों से कोई रुपए ना लूचट ले। इससे बचने के लिए टोकन के रूप में कॉपर टिकट की शुरुआत की गई।  

पोस्ट ऑफिस में लगता था पेड मुहर
जमींदार जब भी पोस्ट ऑफिस की तरफ जाते थे तो बड़ी संख्या में कॉपर टिकट खरीद कर अपने पास रख लेते थे। जब भी पत्र या कोई सामान भेजना होता तो नौकर को जरूरत के अनुसार टोकन दे दिया जाता था। कॉपर टिकट को देखकर पोस्ट ऑफिस के कर्मचारी कॉपर टिकट अपने पास रख कर चिट्टी या सामान के पैकेट पर पोस्टेज चार्ज का पेड मुहर लगा देते थे। 

- यह तस्वीर रेड स्किंद डॉक की है। दावा है कि यही पहला कॉपर टिकट था। 

फर्जी कॉपर टिकट ढलवाने लगे थे व्यवसायी
फर्जीवाड़ा तो हर जगह है। इस सदी में भी है और उस सदी में भी था। 1774 और 1785 तक पटना (तब का अजीमाबाद) में इसका मुद्रण होता था। बंगाल प्रेसीडेंसी में कॉपर टिकट चलन में था। उस दौरान बंगाल प्रेसीडेंसी में बिहार और ओडिशा भी शामिल था। बाद के दिनों में व्यवसायी लोकल सोनारों की मदद लेकर जाली कॉपर टिकट ढलवाने लगे थे। जब ब्रिटिश सरकार को इसकी जानकारी मिली तो काफी दबिश देने की कोशिश की गई, लेकिन वे सफल ना हुए। 

- बायीं तस्वीर में 1774 के कॉपर टिकट का कागजी प्रारूप, दायीं तस्वीर में 1840 में ब्रिटेन से जारी हुआ स्टांप ब्लैक पेनी (एक पेनी पोस्टेज)

लॉर्ड डलहौजी ने की बेहतरीन व्यवस्था
नकली कॉपर टिकट से ब्रिटिश सरकार को राजस्व का काफी नुकसान हो रहा था। काफी मशक्कत के बाद कॉपर टिकट के चलन को रोक दिया गया। कॉपर टिकट तो बंद हो गया लेकिन इसकी सुविधा लोगों के जेहन से नहीं गई। इसकी सुविधाओं से प्रेरणा लेकर 1840 में ब्रिटेन में पहला स्टांप जारी किया गया। भारत में 1852 में सिंध से पेपर स्टांप शुरू हुआ। 1854 में लॉर्ड डलहौजी ने आधा, एक, दो और चार आना के पोस्टल स्टांप जारी करते हुए घोषणा की कि पूरे भारत में इनसे कहीं भी चिट्ठी भेजी जा सकती है। 

- कॉपर स्टांप की तस्वीर कुछ जानकारियों के साथ।

विश्व के पहले डाक टिकट की दावेदारी पेश की
जानकारी दें कि इस बारे में मशहूर फिलाटेलिस्ट प्रदीप जैन ने शोध भी किया है। शोध में पता चला कि गुलजारबाग में गवर्नमेंट प्रेस जहां है, उसे ही अजीमाबाद मिंट कहते थे। अजीमाबाद पटना को कहते थे। उनके मुताबिक कुछ ही वक्त पहले उन्होंने पटना के कॉपर टिकट को दुनिया के पहले डाक टिकट घोषित करने की दावेदारी पेश की थी।  

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