
Audi Germany Layoffs: जर्मनी की मशहूर कार निर्माता कंपनी Audi ने एक बड़ा फैसला लिया है। कंपनी 2029 तक 7,500 नौकरियों में कटौती करने जा रही है। यह छंटनी मुख्य रूप से एडमिनिस्ट्रेशन और डेवलपमेंट सेक्शन में होगी, जबकि फैक्ट्री कर्मचारियों की नौकरियां सुरक्षित रहेंगी। इस कदम के पीछे कारण इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) की घटती मांग और चीन से बढ़ती प्रतिस्पर्धा को माना जा रहा है। Audi का यह कदम मध्यम अवधि में हर साल 1 अरब यूरो (लगभग 9,000 करोड़ रुपये) बचाने के मकसद से उठाया गया है। हालांकि, कंपनी अगले चार वर्षों में अपने जर्मनी स्थित प्लांट्स में 8 अरब यूरो निवेश भी करेगी।
Audi में इस छंटनी के बाद, Volkswagen ग्रुप के कुल 48,000 कर्मचारियों की नौकरियां खतरे में हैं। वहीं Porsche में 3,900 पदों की कटौती की जा रही है। VW के सॉफ्टवेयर डिवीजन Cariad में 1,600 कर्मचारियों की छंटनी होगी। बता दें कि EV शिफ्ट के नाम पर पहले भी नौकरियां जा चुकी हैं। Audi ने पहले भी 2019 से अब तक 9,500 उत्पादन (प्रोडक्शन) नौकरियों में कटौती की है। उस समय कंपनी ने कहा था कि इस छंटनी से EV प्रोडक्शन के लिए निवेश और मुनाफा बढ़ाने में मदद मिलेगी। लेकिन इसके बावजूद, कंपनी की स्थिति बिगड़ती जा रही है।
Audi को 2024 के पहले नौ महीनों में केवल 4.5% ऑपरेटिंग मार्जिन ही मिला है, जबकि 2023 में यही मार्जिन 7% था। कमजोर बिक्री और ब्रसेल्स प्लांट बंद होने के कारण यह नुकसान बढ़ता जा रहा है। हालांकि, Audi जर्मनी में अपनी नई एंट्री-लेवल इलेक्ट्रिक कार बनाने जा रही है। कंपनी अपनी दूसरी जर्मन फैक्ट्री Neckarsulm में एक और EV मॉडल प्रोड्यूस करने पर विचार कर रही है।
हालांकि, Audi ने अपने जर्मन प्लांट्स में कर्मचारियों की नौकरी सुरक्षा को 2033 तक बढ़ाने का समझौता किया है। इस पर कंपनी और कर्मचारियों के प्रतिनिधियों के बीच गहन चर्चा हुई। Audi के वर्क काउंसिल हेड जोर्ग श्लागबाउर ने कहा, बातचीत मुश्किल थी, लेकिन समाधान निकालने पर जोर दिया गया। हमें कुछ समझौते करने पड़े, ताकि कंपनी भविष्य में और निवेश कर सके।
Audi और Volkswagen ग्रुप में हो रही भारी छंटनी ऑटोमोबाइल सेक्टर में मंदी, EV शिफ्ट और बढ़ती प्रतिस्पर्धा को दिखाती है। एक तरफ कंपनियां लागत घटाने के लिए कर्मचारियों की छंटनी कर रही हैं, तो दूसरी तरफ EV प्रोडक्शन बढ़ाने के लिए भारी निवेश भी कर रही हैं। आने वाले वर्षों में यह देखना दिलचस्प होगा कि जर्मन ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री इन चुनौतियों से कैसे निपटती है।