Kanshi Ram Jayanti : 20 साल में BSc की डिग्री, DRDO में सरकारी नौकरी, कहानी बसपा संस्थापक कांशीराम की
कांशीराम जब 22 साल के थे, तभी उनकी सरकारी नौकरी डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (DRDO) में लग गई थी। 6 साल नौकरी करने के बाद उन्होंने रिजाइन कर दिया और अपनी अलग राह बना ली।
करियर डेस्क : बसपा संस्थापक कांशीराम की आज जयंती (Kanshi Ram Jayanti 2023) है। कांशीराम ने दलित राजनीति की अगुवाई की. दलितों की आवाज बनकर ओबीसी और अल्पसंख्यक समाज के वैचारिक नेताओं को साथ लाकर बहुजन समाज पार्टी की स्थापना की।1993 में समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर बीएसपी ने यूपी में सरकार बनाई और यहीं से बसपा का जनाधार मजबूत हुआ और मजबूत हुए कांशीराम। कांशीराम बीएससी में ग्रेजुएट थे और 22 साल में ही उनकी सरकारी नौकरी लग गई थी। आइए जानते हैं कांशीराम की लाइफ से जुड़े फैक्ट्स..
15 मार्च, 1934 में कांशीराम का जन्म पंजाब के रोपड़ जिले के खवासपुर गांव में हुआ था। कांशीराम की चार बहनें और दो भाई थे। इनमें से सिर्फ कांशीराम ही ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर सकें। उन्होंने रोपड़ गवर्नमेंट कॉलेज से बीएससी में ग्रेजुएशन किया था।
1956 में बीएससी की डिग्री हासिल करने के दो साल बाद 1958 में सिर्फ 22 साल की उम्र में ही डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (DRDO) में कांशीराम की सरकारी नौकरी लग गई। उन्होंने हाई एनर्जी मैटिरियल्स रिसर्च लैबोरेटरी में बतौर असिस्टेंट जॉइन किया।
कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, नौकरी के दौरान उनके साथ जातीय भेदभाव हुआ, इससे आहत होकर 6 साल बाद 1964 में उन्होंने नौकरी छोड़ दी। इसके बाद वे पुणे के बाकी इलाको में निकलकर दलितों की स्थिति देखी।
1965 से कांशीराम ने दलितों की लड़ाई शुरू की और भारत की जाति व्यवस्था को पढ़ना शुरू किया। इसके बाद बीआर अंबेडकर के साथ काम भी किया।
नौकरी छोड़ने के बाद कांशीराम ने अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर शेड्यूल कास्ट, शेड्यूल ट्राइब्स, ओबीसी एंड माइनॉरिटी वेलफेयर एसोसिएशन बनाया और दलितों के उत्थान में जुटे गए।
1973 में साथियों के साथ मिलकर उन्होंने बैकवर्ड एंड माइनॉरिटी कम्युनिटीज एंप्लाइज फेडरेशन (BAMCEF) की स्थापना की। इसका पहला ऑफिस 1976 में दिल्ली में खोला गया। इस फेडरेशन का काम बीआर अंबेडकर और उनके विचारों को जन-जन तक पहुंचाना था। यहां से कांशीराम की अलग पहचान बन गई।
1981 में उन्होंने 'दलित शोषित समाज संघर्ष समिति' की शुरुआत की, जो BAMCEF के साथ ही काम करती रही। इस समिति का काम जाति व्यवस्था को लेकर जागरुकता फैला रहे कार्यकर्ताओं की सुरक्षा करना था। यह रजिस्टर्ड ऑर्गेनाइजेशन नहीं था।
1986 में कांशीराम ने खुद के कार्यकर्ता से राजनेता बनने का ऐलान किया और यहां से उनकी राजनीतिक पारी शुरू हुई।
बाकी नेताओं की तरह कांशीराम सफेद कुर्ता नहीं पहनते थे। वह साधारण पैंट-शर्ट पहनना पसंद करते थे। कभी-कभी सफारी सूट भी पहन लेते थे। उनका जीवन बिल्कुल साधारण रहा। वह ज्यादातर साइकिल से सफर करते थे।
दलित समाज को आगे ले जाने के लिए उन्होंने परिवार से भी नाता तोड़ लिया था। न उन्होंने अपना घर बसाया और ना ही बसपा में कभी किसी रिश्तेदार को कोई पद दिया। अपने पिता के अंतिम संस्कार में भी कांशीराम नहीं शामिल हुए थे।
9 अक्टूबर, 2006 को लंबी बीमारी के बाद उनका निधन हो गया। अपने आखिरी दिनों में कांशीराम नई दिल्ली में रहा करते थे।