जानिए उन 10 ऐतिहासिक कविताओं के बारे में, जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम और राजनीति में गहरी छाप छोड़ी। 'सरफरोशी की तमन्ना', 'झाँसी की रानी' जैसी कविताएं आज भी प्रेरणा देती हैं।
World Poetry Day: कविता केवल वियोग में ही नहीं पढ़ी जाती है बल्कि दुनिया की तमाम लड़ाई में एक क्रांतिकारी हथियार भी रही है। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और देश की राजनीति में कविता का बड़ा योगदान रहा है। स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आधुनिक राजनीतिक आंदोलनों तक में कई कविताओं ने न केवल देश की जनता को जागरूक किया बल्कि नई दिशा भी दी है। आइए जानते हैं 10 कविताओं के बारे में जिन्होंने आजादी और भारतीय राजनीति में गहरी छाप छोड़ी।
'सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-कातिल में है।'
यह कविता भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की पहचान बनी। इसे शहीद राम प्रसाद बिस्मिल ने लिखा था। इस कविता को क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ अपने जोश को बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया। अंग्रेजों ने भारत मां के इस वीर सपूत को फांसी पर लटका दिया था।
'खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।'
यह कविता 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की नायिका रानी लक्ष्मीबाई की वीरता का जीवंत चित्रण करती है। यह कविता न केवल भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम को अमर बनाती है बल्कि यह देशभक्ति का भी प्रतीक है।
'हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।'
आपातकाल के दौरान दुष्यंत कुमार की ये ग़ज़ल राजनीतिक आंदोलनकारियों की आवाज बन गई थी। यह आज भी समाज में बदलाव की मांग करने वालों के लिए प्रेरणा है।
'वंदे मातरम्'
बंकिम चंद्र चटर्जी का यह गीत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का राष्ट्रीय गीत बन गया था। इसे आंदोलनकारियों ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ जोश भरने के लिए गाया। बाद में इसे राष्ट्रीय गीत का दर्जा मिला।
'जन गण मन अधिनायक जय हे, भारत भाग्य विधाता।'
रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा रचित यह कविता भारत का राष्ट्रगान बनी। यह भारत की एकता और अखंडता का प्रतीक है।
'उठो, मेरे देश, नए सूर्य की नई रश्मियाँ पहनने को।'
यह कविता स्वतंत्र भारत को अपने सपनों को साकार करने की प्रेरणा देती है। हरिवंश राय बच्चन की रचनाएं राजनीतिक और सामाजिक बदलाव को बढ़ावा देने वाली रही हैं।
'कौन कहता है कि आसमान में सुराख नहीं हो सकता,
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों।'
यह कविता आम आदमी को संघर्ष की प्रेरणा देती है और राजनीतिक व्यवस्था में बदलाव की आवश्यकता पर जोर देती है।
'चल रे, चल शिखा मशाल, आगे बढ़ बंदे मातरम।'
काजी नजरुल इस्लाम की यह कविता क्रांतिकारियों के संघर्ष का प्रतीक रही है। यह बंगाल के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लोगों की भावनाओं को जगाने में अहम रही।
'सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।'
रामधारी सिंह दिनकर की यह कविता लोकतंत्र और जनशक्ति की ताकत को दर्शाती है। यह भारत में राजनीति और सामाजिक बदलाव का प्रेरणास्रोत रही है।
'हम कौन थे, क्या हो गए हैं, और क्या होंगे अभी।'
यह कविता देशप्रेम को समर्पित है और हमें अपने गौरवशाली इतिहास की याद दिलाती है। इसे आज भी स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर पढ़ा जाता है।