प्राइवेट सेक्टर की जॉब छोड़कर शुरू की तैयारी, नतीजा- तीसरे अटेम्प्ट में आशीष में क्रैक किया UPSC 2020

Asianetnews Hindi संघ लोक सेवा आयोग (UPSC 2020) में सिलेक्ट हुए 100 कैंडिडेट्स की सक्सेज जर्नी (Success Journey) पर एक सीरीज चला रहा है। इसी कड़ी में हमने आशीष से बातचीत की। आइए जानते हैं उनकी सक्सेज जर्नी। 

Asianet News Hindi | Published : Dec 20, 2021 1:06 PM IST

करियर डेस्क.  संघ लोक सेवा आयोग (UPSC 2020) एग्जाम में आशीष की 226 वीं रैंक आई है। उन्होंने एमबीए करने के बाद तीन साल तक फ्लिपकार्ट और मारुति सुजुकी में नौकरी भी की लेकिन मन सिविल सर्विस की तरफ ही लगा रहा। उनके दोस्त लगातार सिविल सर्विस परीक्षा देने के लिए उत्साहित करते थे। उन्होंने अपने पेरेंट्स से भी इस बारे में बात की तो सपोर्ट मिला और फिर आशीष ने प्राइवेट सेक्टर की नौकरी छोड़कर परीक्षा की तैयारी करने का निर्णय लिया, घर पर रहकर ही पूरी तैयारी की। यह उनका तीसरा अटेम्प्ट था। पहला अटेम्पट उन्होंने जॉब के दौरान ही दिया था। उन्हें भारतीय पुलिस सेवा ( IPS) कैटेगरी मिलने की संभावना है। संघ लोक सेवा आयोग (UPSC 2020) के नतीजे 24 सितंबर, 2021 को जारी किए गए। फाइनल रिजल्ट (Final Result) में कुल 761 कैंडिडेट्स को चुना गया। Asianetnews Hindi संघ लोक सेवा आयोग (UPSC 2020) में सिलेक्ट हुए 100 कैंडिडेट्स की सक्सेज जर्नी (Success Journey) पर एक सीरीज चला रहा है। इसी कड़ी में हमने आशीष से बातचीत की। आइए जानते हैं उनकी सक्सेज जर्नी। 

दोस्तों ने किया प्रेरित तो जॉब छोड़ी और जुट गए तैयारी में
आशीष की शुरुआती शिक्षा बेगूसराय, बिहार स्थित इटवा के डीएवी कॉलेज से हुई। वहां उन्होंने 10वीं कक्षा तक पढ़ाई की और सेंट जोसेफ पब्लिक स्कूल बेगूसराय से 12वीं पास किया। आशीष ने वर्ष 2013 में मौलाना आजाद नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (NIT), भोपाल से 2013 में बीटेक किया। एनर्जी इंजीनियरिंग से बीटेक के बाद इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेन ट्रेड, नई दिल्ली से वर्ष 2015 में एमबीए किया। एमबीए करने के बाद आशीष ने फ्लिपकार्ट और मारुति सुजूकी में करीब तीन साल तक काम किया। जॉब के दौरान भी उनके दोस्त उन्हें सिविल सर्विस परीक्षा में अटेम्प्ट देने के लिए उत्साहित करते रहे। नतीजतन, उन्होंने अभिभावकों से बात करने के बाद वर्ष 2018 में जॉब छोड़ दी और पूरी तरह तैयारी में जुट गए।

2019 में थोड़े अंकों के अंतर से चूके
आशीष ने जुलाई 2018 से यूपीएससी परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी। चूंकि उन्होंने अपना पहला अटेम्प्ट जॉब में रहने के दौरान ही दिया था। उस वक्त उन्होंने बिना तैयारी के ही परीक्षा दी थी। उसमें उनका प्रीलिम्स नहीं निकला। आशीष ने पूरी तैयारी के साथ वर्ष 2019 में दूसरा अटेम्प्ट दिया लेकिन बहुत ही कम अंकों के अंतर से प्रीलिम्स नहीं निकला। उन्होंने हार नहीं मानी और परीक्षा की तैयारी में जुट गए। आशीष कहते हैं कि जब नौकरी छोड़कर परीक्षा की तैयारी शुरू की पर 2019 की परीक्षा में प्रीलिम्स नहीं निकला तो उसके बाद फिर जीरो से पढ़ाई शुरू की और इस मोटिवेशन के साथ शुरू की कि अगर इस बार नहीं निकलता है तो परीक्षा नहीं दूंगा। यह बहुत बड़ा मोटिवेटिंग फैक्टर था। अच्छा लग रहा है कि जो भी स्ट्रेटजी बनाई थी, वह चल रही थी। आखिरकार अंत सुखद हुआ, सफलता मिली।

इस तरह आसान बन सकती है आपकी जर्नी
आशीष कहते हैं कि यह बहुत लम्बा सफर है। खासकर कोविड महामारी की वजह से यह परीक्षा हमारे लिए बहुत ही लम्बी हो गयी थी। उस समय बार बार यह ख्याल आते थे कि क्या जॉब छोड़कर सही किया या नहीं? परीक्षा को लेकर बहुत अनिश्चितता रहती है। यह जर्नी मानसिक तौर पर बहुत ही चुनौतीपूर्ण है। परीक्षा के हर चरण की अपनी आवश्यकताएं हैं। एस्पिरेंट्स को यह समझना चाहिए कि पूरी प्रक्रिया के दौरान मानसिक बल की बहुत ज्यादा आवश्यकता होती है। पर यदि पैरेंट्स और दोस्तों का साथ रहे और वह लोग आपका उत्साह बढाते रहें, आपकी ताकत बनें तो यह जर्नी काफी आसान हो जाएगी। ऐसा मुझे लगता है, मेरे मामले में ऐसा ही रहा।

जीवन की अनिश्चितता बढा रही थी परीक्षा की अनिश्चितता
आशीष ने परीक्षा की पूरी तैयारी घर पर ही रहकर की। हालांकि कोरोना महामारी के दौरान तैयारी पर असर पड़ा। चूंकि वह शुरू से ही घर पर रह रहे थे। इसलिए उन्हें बहुत ज्यादा बदलाव देखने को नहीं मिला। पर उस वक्त माहौल पैनिक था, डर का माहौल बना हुआ था। उस माहौल ने उन्हें प्रभावित किया। उस वक्त आमतौर पर परिवार में दूर दराज रहने वाले सगे संबंधियों को लेकर चिंता बनी रहती थी। इसकी वजह से एकाग्र होना मुश्किल था, क्योंकि जीवन की अनिश्चितता, परीक्षा की अनिश्चितताओं को और बढ़ा दे रही थी।

पेरेंट्स ही एस्पिरेंट्स के लिए होते हैं हौसला
वह अपनी सफलता का श्रेय अपने पेरेंट्स व दोस्तों को देते हुए कहते हैं कि माता पिता ने मेरी आकांक्षाओं को कम करने की कोशिश नहीं की बल्कि बढ़ावा ही दिया। मेरी बहन अंजलि और दोस्तों ने तैयारी के दौरान मुझे मोटिवेट किया। यह इन लोगों का कंबाइंड प्रयास रहा। जिसके सहारे परीक्षा निकल सकी। वह कहते हैं कि मैं खुद को खुशकिस्मत समझता हूं कि मेरे दोस्त और मां ने हमेशा पॉजिटिव एप्रोच के साथ मेरा साथ दिया। मां ने सहारा दिया है। उनका कहना है कि पेरेंट्स ही किसी एस्पिरेंट्स के लिए हौसला होते हैं। वह उनके हौसलों को कम मत होने दे। उनके पिता अजीत कुमार रिटायर जूनियर इंजीनियर हैं। वर्तमान में नगर निगम बेगूसराय से जुड़े हुए हैं। मां बबीता गृहिणी हैं। उनके दोस्त संगम का उनकी सफलता में अहम योगदान है।

इन वजहों से हुए प्रेरित
आशीष की एक दोस्त का पूर्व में यूपीएससी परीक्षा तैयारी का अनुभव था। वह हमेशा आशीष को तैयारी के लिए प्रेरित करती रहती थीं। जब वह जॉब में थे। तब भी वह उन्हें अटेम्प्ट देने के लिए कहती थी। उनके पिता जब रिटायर हुए तो आशीष ने अपने पेरेंट्स से बात की। उसके अलावा उन्होंने अपने पिता की सर्विस के दौरान यह भी सुना था कि उनके कार्यों से कई सारे गांवों को कितना फायदा होता था। इन दोनों चीजों की वजह से उनके मन में विचार उत्पन्न हुआ कि लोगों की सेवा सिविल सर्विस के माध्यम से किया जा सकता है। इसलिए वह सिविल सर्विस की तरफ बढें।

सवालों का जवाब नहीं आए तो भी डरना नहीं
आपने एनर्जी इंजीनियरिंग की फिर एमबीए में इकनॉमिक्स भी पढ़ी अब आप पॉलिटिक्स पढ़ रहे हैं, आपने कुछ छोड़ा नहीं। जब बेगुसराय, बिहार के आशीष इंटरव्यू बोर्ड के समक्ष पहुंचे तो कुछ ऐसे कमेंट के साथ वह इंट्रोडयूस हुए। बोर्ड कैंडिडेट की पर्सनालिटी का टेस्ट लेता है, उनकी कोशिश यह जानने और समझने की भी होती है कि कहीं कैंडिडेट इमोशनल होकर जवाब तो नहीं दे रहा है। आशीष इंटरव्यू से पहले खुद को यही समझा रहे थे कि बोर्ड के पूछे गए सवालों के जवाब नहीं आए तो यह सोचकर नहीं डरना है कि क्या होगा। सकारात्मक बने रहना है। उसको अपने फॉलो थ्रू में लेकर अगले प्रश्न को अप्रोच करना है। उनका कहना है कि इंटरव्यू के पहले खुद को यही कन्वींस करना होता है कि पूरे विश्वास के साथ अंदर जाएं। लोगों को खुद से बात करनी चाहिए। अगर लोग खुद को मिरर के सामने समझाए की अंडर कॉन्फिडेंस नहीं होना है। तो यह फायदेमंद होता है। जिन लोगों से आपको पॉजिटिव वाइब्स मिलते हैं। उनसे बात करके भी आपको फायदा हो सकता है। उनका इंटरव्यू लगभग आधे घंटे तक चला था।

स्वयं से ही करिए खुद की तुलना
आशीष कहते हैं कि सीमित सोर्सेज से पढ़ाई करें। बार-बार रिवीजन करें, जितना रिवीजन करेंगे, उतना बेहतर होगा। मेंस परीक्षा के लिए ज्यादा से ज्यादा प्रश्नों के उत्तर लिखिए, यह बहुत जरूरी है। दूसरे लोगों से बात करें। पर अपने मनोबल को दूसरे लोगों की राय से प्रभावित नहीं होने दें। दूसरे लोगों से कि वह क्या पढ़ रहे हैं। इस बारे में बहुत ज्यादा सवाल नहीं करने चाहिए। बहुत सारे लोगों का अपना पढ़ने का तरीका होता है। उसको देखकर बहुत सारे लोग हतोत्साहित भी होते हैं। यह नहीं करना चाहिए। हमें खुद की तुलना अपने आप से करनी चाहिए न कि दूसरों से। नकारात्मक विचार आएंगे। पर उनको लेकर बैठना नहीं है कि क्या हो गया। उनको किनारे करते हुए आगे बढ़ते रहना है। नेगेटिव को पॉजिटिव में कन्वर्ट करने की कोशिश करें।

सोशल मीडिया दोधारी तलवार
आशीष खुद सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर नहीं हैं। उनका कहना है कि वह किसी को सुझाव नहीं देंगे कि वह सोशल मीडिया छोड़ दे, आपको यह देखना होता है कि आपके लिए क्या फायदेमंद है। मौजूदा समय में सोशल मीडिया इतना डिस्ट्रैक्शन क्रिएट करता है कि आपके साथ वाले कुछ और कर रहे हैं, अपनी जिंदगी एन्जॉय कर रहे हैं और आप अभी पढ़ाई करने में लगे हैं तो यह देखकर बहुत सारे निगेटिव विचार पढ़ाई को लेकर आ सकते हैं। बिल्कुल हटना भी सही नहीं रहेगा। इसको कम करके रखें,  ताकि आपको यह सकारात्मक रूप से इफेक्ट करे, ना कि निगेटिव। सोशल मीडिया दोधारी तलवार है। जब तक उसको कंट्रोल कर रहे हैं, तब तक तो ठीक है। जिस दिन सोशल मीडिया आपको कंट्रोल करना शुरू कर देगा। उस दिन आप तैयारी में पीछे चले जाएंगे।

हॉबीज ऐसी हो जिससे तैयारी में मिले मदद
आशीष कहते हैं कि उन्हें अपनी हॉबीज से काफी मदद मिली है। वह बहुत ज्यादा समय देकर पढ़ाई करने वालों में से नहीं थे तो उनके पास काफी टाइम रहता था। उन्हें ट्रैवल डॉक्यूमेंट्री देखना, अलग अलग देशों के बारे में जानना पसंद है। फुटबॉल और टेस्ट क्रिकेट देखना बहुत पसंद है। इन सब चीजों के बारे में इंटरनेट पर आर्टिकल आते हैं। वह उनको पढ़ते थे। उनका कहना है कि हॉबी ऐसी होनी चाहिए जो आपकी सहायता करे। पढ़ने की आदत ने परीक्षा में हेल्प किया। फुटबॉल और क्रिकेट के आर्टिकल पढ़ रहा हूं, तो किताब पढ़ता था तो कम समय में ज्यादा कुछ ग्रहण कर पाता था।

परीक्षा की तरह देखें, जीने मरने का सबब न बनाएं
उनका कहना है कि मानसिक स्वास्थ्य के साथ शारीरिक स्वास्थ्य भी बहुत जरूरी है। यदि पढ़ाई के साथ इनका सामंजस्य बनाकर चला जाए तो बहुत फायदा होगा। सिविल सर्विस एग्जाम को परीक्षा की तरह लें। इसे जीने मरने का सबब ने बनाएं। इसे जितना ज्यादा हम परीक्षा की तरह देखेंगे। हमें इसे क्लियर करने में उतनी ही ज्यादा आसानी होगी। आशीष कहते हैं कि देश की सेवा करने के बहुत सारे तरीके होते हैं। सिविल सर्विसेज बहुत बड़ा साधन है। सीमित सीट है, तो हर कोई नहीं बन सकता है पर हतोत्साहित न हों। अगर अटेम्प्ट हैं तो लगे रहें नहीं तो देश की सेवा के बहुत सारे तरीके हैं। इसमें आपके लिए क्या सही राह है। यह तलाशने की कोशिश करें और आगे बढें।

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