कभी काम के लिए तरस गए थे ऋषि कपूर के दादा, बाद में बने बॉलीवुड के 'मुगल ए आजम'

जीवन में काफी मुश्किलों का सामना करते हुए पृथ्वीराज कपूर 1929 में काम की तालाश में मुंबई आ गए और इंपीरियल फिल्म कंपनी में बिना वेतन के एक्स्ट्रा कलाकार बन गए।

Asianet News Hindi | Published : Nov 2, 2019 1:10 PM IST

मुंबई. सिनेमाजगत में कपूर खानदान का लंबा इंतहास रहा है। मूक सिनेमा से लेकर ब्लैक एंड व्हाइट और रंगीन सिनेमा के बीच जिन एक्टर्स ने इंडस्ट्री में अपनी अलग पहचान बनाई है, उसमें से एक राजकपूर के पिता पृथ्वीराज कपूर भी थे, जो कि ऋषि कपूर के दादा थे। दरअसल, पृथ्वीराज कपूर के बारे में उनकी 113 वीं जन्मतीथि पर बता रहे हैं। एक्टर का जन्म 3 नवंबर, 1906 को पाकिस्तान के समुंदरी में हुआ था। 

ऋषि के परदादा एक पुलिस अधिकारी थे

मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो कहा जाता है कि पृथ्वीराज कपूर के पिता बशेश्वरनाथ कपूर इंडियन इंपीरियल पुलिस में अधिकारी के तौर पर पदस्थ थे। एक्टर जब 3 साल की थीं तब उनकी मां का निधन हो गया था। पृथ्वीराज कपूर जन्मे तो पाकिस्तान में थे लेकिन भारत में आकर चमके, जहां उन्हें एक अलग पहचान 'मुगल ए आजम' मिली। ऋषि के दादा को बचपन से ही एक्टिंग का काफी शौक रहा था। उन्होंने लायलपुर और पेशावर के थिएटर से अपने एक्टिंग में करियर की शुरुआत की थी। 8 साल की उम्र में उन्होंने उस वक्त स्कूली नाटक में हिस्सा लिया था। बैचलर की डिग्री लेने तक नाटकों से उनका लगाव और भी बढ़ गया। इसके बाद वे अपने रंगमंच प्रेम के चलते लाहौर (जो कि अब पाकिस्तान का हिस्सा है।) आए लेकिन किसी नाटक मंडली में काम नहीं मिला क्योंकि वो पढ़े-लिखे थे।

1929 में काम की तालाश में आए थे मुंबई

जीवन में काफी मुश्किलों का सामना करते हुए पृथ्वीराज कपूर 1929 में काम की तालाश में मुंबई आ गए और इंपीरियल फिल्म कंपनी में बिना वेतन के एक्स्ट्रा कलाकार बन गए। इसके बाद 1931 में आई फिल्म 'आलमआरा' में उन्होंने 24 साल की उम्र में जवानी से लेकर बुढ़ापे तक की भूमिका निभाई थी। बाद में उन्हें फिल्म 'मुगल ए आजम' में रोल प्ले करने के लिए मिला, जिसके बाद से उन्हें इंडस्ट्री जाना-जाने लगा और वहीं से ही उन्होंने अपनी एक अलग-पहचान बनाई। पृथ्वीराज कपूर को आज भी उनके इसी किरदार से याद किया जाता है। 

थिएटर के बाहर झोली फैलाकर मांगते थे पैसे

इंडस्ट्री में वे 'पापाजी' के नाम से काफी मशहूर रहे। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो कहा जाता है कि अपने थिएटर के तीन घंटे के शो के खत्म होने के बाद वे गेट पर एक झोली फैलाकर खड़े हो जाते थे ताकि शो देखकर बाहर निकलने वाले लोग उनकी झोली में कुछ पैसे डाल दें। इन पैसों के जरिए पृथ्वीराज कपूर ने एक वर्कर फंड बनाया था जिससे वो पृथ्वी थिएटर में काम कर रहे सहयोगियों को जरूरत के समय मदद किया करते थे। सिनेमाजगत में तो उन्होंने काफी नाम कमाया। इंडस्ट्री में महत्वपूर्ण योगदान के नाते पृथ्वीराज कपूर को 1969 में भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। इसके साथ ही उन्हें 1972 में इंडस्ट्री के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया। पृथ्वीराज कपूर ने 65 साल की उम्र में 29 मई 1972 को दुनिया को अलविदा कह दिया था।

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