रावण की वजह से चलता है इस परिवार का खर्च, पुतला बनाकर चार पीढ़ियों से कमा रहे लाखों रूपये

छतीसगढ़ के दुर्ग जिले का एक परिवार ऐसा भी है जहां पिछले चार पीढ़ियों मुख्य व्यवसाय रावण का पुतला बनाकर बेचना है। यही नहीं यह परिवार रावण व उसके परिवार के पुतले बनाकर ये परिवार लाखों रूपये की आमदनी भी करता है। 

Ujjwal Singh | Published : Oct 3, 2022 7:23 AM IST

दुर्ग(Chhattisgarh). दो दिन बाद पूरे देश में विजयादशमी का त्यौहार बड़ी धूम-धाम से मनाया जाएगा। लोगों ने पखवारे भर पूर्व से इसकी तैयारियां भी शुरू कर दी हैं। बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक इस त्यौहार का मुख्य आकर्षण रावण का पुतला दहन होता है। पूरे देश में तमाम जगह इस दिन बेचने के लिए रावण का पुतला भी बनाया जाता है। लेकिन छतीसगढ़ के दुर्ग जिले का एक परिवार ऐसा भी है जहां पिछले चार पीढ़ियों से सिर्फ यही मुख्य व्यवसाय है। यही नहीं यह परिवार रावण व उसके परिवार के पुतले बनाकर ये परिवार लाखों रूपये की आमदनी भी करता है। 

दुर्ग जिले का कुथरेल गांव महज इसलिए प्रसिद्द है क्योंकि यहां रावण व उसके परिवार के पुतले बनाए जाते हैं। साढ़े चार हजार की आबादी वाले इस गांव के रहने वाले बिसोहाराम साहू पेशे से बढ़ई थे और गांव की रामलीला में रावण का किरदार निभाते थे। रामलीला के लिए रावण के भीमकाय पुतले बनाने की शुरुआत इन्हीं बिसोहाराम साहू ने ही की थी। लेकिन अब गांव में चौथी पीढ़ी रावण, मेघनाथ, कुंभकरण के पुतले बना रहे हैं। पिछले 50 सालों से एक ही परिवार इसी तरह रावण के विशालकाय पुतले बनाकर अपनी पारिवारिक परम्परा का निर्वहन कर रहे है।

चार पीढ़ी पहले हुई थी शुरुआत 
रावण का किरदार निभाने वाले बिसोहा राम साहू ने रामलीला में रावण के पुतले बनाने के साथ ही धीरे-धीरे ये काम दशहरे के लिए भी करना शुरू कर दिया। वह अपने किरदार में इतने रम गए कि उन्होंने दशहरे के लिए रावण का पुतला बनाने की विशेष कला सीखा। धीरे-धीरे उनके बनाए पुतलों की मांग बढ़ती गई। तब उनके ही परिवार के लोमन सिंह साहू ने यह काम सीखा और आज इस परंपरा को स्व. लोमन सिंह के बेटे डॉ जितेन्द्र साहू आगे बढ़ा रहे है।

परिवार के बच्चे भी सीख गए पुतला बनाने की कला 
डॉ जितेन्द्र ने मीडिया को बताया कि अब उनके परिवार के बच्चे भी रावण का पुतला बनाना सीख गए है। इस पूरे काम मे साहू परिवार की महिलाएं भी साथ मे बढ़ चढ़कर हिस्सा लेती है। इस काम में घर की महिलाएं पुरुष कारीगरों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करती है। एक पुतले की कीमत करीब 25 हजार रुपए तक होती है। 

10 से ज्यादा जिलों में जाते हैं पुतले 
साहू परिवार द्वारा निर्मित रावण के पुतले छत्तीसगढ़ के 10 से ज्यादा जिलों में जाते हैं। जिसमें दुर्ग, रायपुर, बिलासपुर, सहित करीब 10 जिले शामिल है। उनके पास ही इस बार 25 जगहों से रावण, मेघनाथ और कुंभकरण के पुतले तैयार करने का आर्डर आया है। 50 ,70 और अधिकतम 90 फीट के रावण इस बार बनाए जा रहे है। वे भिलाई-दुर्ग सहित रायपुर के बीरगांव और आसपास के कई जिलों और गांवों की समितियों के लिए भी पुतले तैयार कर रहे हैं। 
 

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