जवान बेटे की मौत पर ठीक से रो भी ना सका पिता, मां ने गाना गाकर दी थी अंतिम विदाई

'भगवान ऐसे दिन किसी को भी न दिखाए!' जो भी इस परिवार से मिलता है, वो ऊपरवाले से यही प्रार्थना करता है। पिता लकवाग्रस्त, आय का कोई साधन नहीं, ऊपर से जवान बेटे की असमय मौत। यह परिवार है राजनांदगांव के रहने वाले मशहूर रंगकर्मी सूरज तिवारी उर्फ वीरू का है। वीरू का पिछले दिनों निधन हो गया था। पिता खुद भी एक समय के जाने-माने कलाकार रहे हैं।

Asianet News Hindi | Published : Nov 7, 2019 10:46 AM IST / Updated: Nov 07 2019, 05:09 PM IST

राजनांदगांव. वक्त कब और किस करवट बैठ जाए, कोई नहीं कह सकता! इस तस्वीर में जो मायूस शख्स दिखाई दे रहा है, वो पिछले 11 सालों से बीमार है। कुछ दिन पहले तक जीने का जज्बा था, लेकिन अब वो भी दिखाई नहीं देता। लकवे के कारण पहले से ही ठीक से चलना-फिरना और बोलना बंद हो चुका था, रही सही कसर जवान बेटे की मौत ने पूरी कर दी। आंखों से आंसू झरते हैं, लेकिन जुबान अपनी पीड़ा बयां नहीं कर सकती। यह हैं राजनांदगांव के जाने-माने रंगकर्मी सूरज तिवारी उर्फ वीरू(30) के पिता दीपक विराट तिवारी। दीपक खुद भी अपने समय के ख्यात रंगकर्मी रहे हैं। जानिए बेटे की मौत के बाद एक पिता की अनकही पीड़ा...

एक बड़ा नाम, अब बदहाली में जी रहा

दीपक तिवारी हबीब तनवीर के नाटक 'चरणदास चोर' में चोर का किरदार जीवंत करते थे। दीपक 1980 से 90 के दशक में हबीब तनवीर के थियेटर से जुड़े रहे। इस दौरान उन्होंने चरणदास चोर के अलावा, लाला शोहरत राय, मिट्टी की गाड़ी, आगरा बाजार, कामदेव का अपना बसंत ऋतु का सपना, देख रहे हैं नैन,  'जिन लाहौर नहीं वेख्या वो जन्म्या ही नहीं' और हिरमा की अमर कहानी जैसे नाटकों में यादगार अभिनय किया। हाल में उन्हें राष्ट्रपति ने सम्मानित किया था। उल्लेखनीय है कि इनके बेटे वीरू का कुछ दिन पहले असमय निधन हो गया था। उनकी अर्थी पर मां पूनम ने जब गीत गाया, तो मामला मीडिया की सुर्खियों में आया। एक मां के लिए बेटे की अर्थी पर लोकगीत गाना असाधारण कृत्य था। लेकिन मां अपने रंगकर्मी बेटे को उसकी इच्छा के अनुरूप विदा करना चाहती थी। 

(रंगकर्मी सूरज तिवारी, जिनका 3 नवंबर को निधन हो गया था)

 

कोई नहीं मदद करने वाला..
राजनांदगांव के ममता नगर की गली नंबर-7 की एक संकरे एरिया में स्थित है पूनम और दीपक तिवारी का घर। एक असाधारण रंगकर्मी सूरज का घर एकदम साधारण है। न किसी को बैठाने के लिए सोफे और न आवभगत के लिए अच्छी क्रॉकरी या अन्य चीजें। ये वो ही पुराना और बदरंग घर है, जहां से 3 नवंबर की दोपहर रंगकर्मी सूरज की अर्थी उठी थी। तब मां पूनम ने जिंदगी की सच्चाई बयां करता लोकगीत  'चोला माटी के हे राम, एखर का भरोसा..' पूरी संगत के साथ गाया था। लेकिन इस बार किसी ने तालियां नहीं बजाई थीं। बल्कि सबने आंसुओं के जरिये अपनी अभिव्यक्ति की थी। यह वीडियो मीडिया में जबर्दस्त वायरल हुआ था।

देखें वीडियो

Video: जवान बेटे की अर्थी के सामने गाना गाने लगी मां, वजह जानकर आप भी हो जाएंगे भावुक

हबीब तनवीर के संग काम चुके हैं पिता..
इन दिनों घर पर सूरज के बड़े भाई गोपाल तिवारी और छोटी बहन दिव्या तिवारी अपने 8 साल के बेटे साही के साथ मां-पिता की देखभाल करने मौजूद हैं। पिता कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं है। उनके करीबी बताते हैं कि सूरज के पिता दीपक मशहूर रंगकर्मी हबीब तनवीर के साथ काम करते थे। ये लोकप्रिय नाटक चरणदास चोर में चोर का किरदार निभाते थे।

 

इसी साल फरवरी में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें सम्मानित किया था। वर्ष 2008 में दीपक लकवाग्रस्त हो गए थे। अब बेटे की मौत ने दीपक को और कमजोर कर दिया है। उनका दिमाग पहले से ही ठीक से काम नहीं करता था, अब और सुन्न पड़ गया है। दीपक 26 साल पहले जनसंपर्क में नौकरी करते थे। साथ ही हबीब तनवीर के संग नाटक। सरकार इससे नाराज हो गई और उनके सामने दो शर्तें रख दीं- नौकरी करो या नाटक। दीपकजी ने नौकरी छोड़कर नाटक करना गौरव समझा। लेकिन आज शायद परिवार को इसका पछतावा है। उन्होंने दुबारा नौकरी के लिए कोशिश की, लेकिन बात नहीं बनी। पूनम तिवारी बताती हैं कि उनकी बीमारी के इलाज पर ही हर महीने 5-6 हजार रुपए खर्च हो जाते हैं, जबकि आय कुछ भी नहीं। रमन सरकार ने इस परिवार के लिए एक लाख रुपए की मदद की थी, लेकिन बीमारी ने आर्थिक संकट से नहीं उबरने दिया। इस परिवार को अब यही उम्मीद है कि शायद कोई फरिश्ता मदद के लिए हाथ बढ़ाए।

 

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