कोरोना ने छीनीं एक और नेता की सांसे: पूर्व PM अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी करुणा शुक्ला की मौत..

करुणा शुक्ला ने सोमवार देर रात राजधानी रायपुर के रामकृष्ण अस्पताल में आखिरी सांस ली। उनके निधन के बाद कांग्रेस में शोक की लहर दौड़ गई। राज्य के सीएम भूपेश बघेल से लेकर बीजेपी के नेताओं ने भी शोक जताया है। उनका करुणा शुक्ला का अंतिम संस्कार मंगलवार को बलौदाबाजार में होगा

Asianet News Hindi | Published : Apr 27, 2021 7:37 AM IST / Updated: Feb 05 2022, 03:26 PM IST

रायपुर (छ्त्तीसगढ़). कोरोना की दूसरी लहर ने सभी  रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। देश में तेजी से संक्रमण का ग्राफ बढ़ता जा रहा है। जिसकी चपेट में रोजाना हजारों लोगों की सांसे थम रही हैं। इसी बीच छ्त्तीसगढ़ से बड़ी खबर सामने आई है, जहां  पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी और कांग्रेस नेता करुणा शुक्ला की मौत हो गई। वह कोरोना से लड़ते-लड़ते जिंदगी की जंग हार गईं।

आधी रात के बाद ली आखिरी सांस
दरअसल, करुणा शुक्ला ने सोमवार देर रात राजधानी रायपुर के रामकृष्ण अस्पताल में आखिरी सांस ली। उनके निधन के बाद कांग्रेस में शोक की लहर दौड़ गई। राज्य के सीएम भूपेश बघेल से लेकर बीजेपी के नेताओं ने भी शोक जताया है। उनका करुणा शुक्ला का अंतिम संस्कार मंगलवार को बलौदाबाजार में होगा

'सीएम ने लिखा-मेरी करुणा चाची को कोरोना ने लील लिया'
 मुख्यमंत्री ने ट्वीट कर लिखा-''मेरी करुणा चाची यानी करुणा शुक्ला जी नहीं रहीं। निष्ठुर कोरोना ने उन्हें भी लील लिया। राजनीति से इतर उनसे बहुत आत्मीय पारिवारिक रिश्ते रहे और उनका सतत आशीर्वाद मुझे मिलता रहा। ईश्वर उन्हें अपने श्रीचरणों में स्थान दें और हम सबको उनका विछोह सहने की शक्ति''।

बीजेपी-कांग्रेस में संभाले कई बड़े पद
बता दें कि पूर्व सांसद करुणा शुक्ला अभी छत्तीसगढ़ समाज कल्याण बोर्ड की अध्यक्ष थीं। वह  बीजेपी में भी राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सहित तमाम बड़े पदों पर रही हैं। हालांकि उन्होंने 1982 से 2013 तक बीजेपी रहने के बाद कांग्रेस का दामन थाम लिया था। साल 2018 के छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में वह पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह के खिलाफ राजनांदगांव से चुनाव लड़ी थीं।

अटल जी से सीखे थे राजनीती के गुण
करुणा शुक्ला भारते पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी थीं। उनका जन्म एक अगस्त 1950 को ग्वालियर में हुआ था। उन्होंने अटल जी से राजनीति के गुण सीखे थे और 1983 में पहली बार बीजेपी के टिकट पर विधायक बनी थीं। इसके बाद भाजपा के टिकट पर ही 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के चरणदास महंत के खिलाफ हाथ अजमाया, लेकिन हार गई थीं।
 

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