...तो दिल्ली में सरकार बनाने नहीं सिर्फ महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए चुनाव लड़ रही है कांग्रेस

आगामी विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस अपनी साख बचाने की हर संभव कोशिश में है पार्टी चाहती है कि 2015 के मुक़ाबले इस बार नतीजे अच्छे आएं पिछली बार दिल्ली में कांग्रेस का खाता भी नहीं खुल पाया था 2019 के विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी ने दिल्ली के इतिहास में पहली बार गठबंधन में चुनाव लड़ने जा रही है
 

नई दिल्ली। आगामी विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस अपनी साख बचाने की हर संभव कोशिश में है। पार्टी चाहती है कि 2015 के मुक़ाबले इस बार नतीजे अच्छे आएं। पिछली बार दिल्ली में कांग्रेस का खाता भी नहीं खुल पाया था। 2019 के विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी ने दिल्ली के इतिहास में पहली बार गठबंधन में चुनाव लड़ने जा रही है। बिहार के मतों को आकर्षित करने के लिए पार्टी ने लालू यादव की आरजेडी को चार सीटें भी दी हैं। लेकिन ये सारी कवायद दिल्ली जीतने यानी सरकार बनाने के लिए नहीं है। बल्कि चुनाव में इतनी सीटें जुटाना है ताकि अगली सरकार में पार्टी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकें।

रविवार को न्यूज एजेंसी पीटीआई/भाषा से पूर्व केंद्रीय मंत्री और दिग्गज कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने दावा किया, "कांग्रेस निश्चित ही चुनाव में अहम भूमिका निभाएगी। सरकार गठन में कांग्रेस निर्णायक भूमिका निभा सकती है।" सिब्बल के बयान से साफ है कि दिल्ली में कांग्रेस को बहुत ज्यादा उम्मीदें नहीं हैं। बल्कि ये कोशिश है कि इतनी सीटें जीत लें कि चुनाव बाद सरकार बनाने-बिगाड़ने में अहम भूमिका निभा सकें।

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इस मुद्दे पर दिल्ली में साख बचाने की कोशिश

कांग्रेस ने नेता ने यह भी साफ किया कि केंद्र सरकार के नागरिकता कानून (सीएए) और एनआरसी के मुद्दे पर ही चुनाव लड़ा जाएगा। दरअसल, सीएए-एनपीआर-एनआरसी को लेकर देशभर में कांग्रेस ने मुहिम चलाई है। अल्पसंख्यकों में काफी विरोध भी देखने को मिला। अब कांग्रेस इस विरोध को भुनाने की कोशिश में है।

अवसरवादी हैं अरविंद केजरीवाल

कपिल सिब्बल ने कहा, "सीएए-एनपीआर-एनआरसी को लेकर हंगामा, जामिया यूनिवर्सिटी-जेएनयू हिंसा दिल्ली विधानसभा चुनाव में मुख्य मुद्दा रहेंगे।" नागरिकता कानून के विरोध को लेकर सिब्बल ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर दोहरा रुख अपनाने का आरोप भी लगाया। उन्होंने कहा, "दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की सीएए-एनपीआर-एनआरसी, जामिया-जेएनयू हिंसा पर कमजोर प्रतिक्रिया से अवसरवादिता की बू आती है।" 

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