तो क्या दिल्ली में ध्रुवीकरण की राजनीति से कांग्रेस पर मंडराने लगा है सूपड़ा साफ होने का खतरा?

प्रदेश कांग्रेस के नेता आपसी बातचीत में मान रहे हैं कि विधानसभा की 70 सीटों में इस बार कुछ एक को छोड़ लगभग सभी जगह आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के मुकाबले वह संघर्ष में ही नहीं है

Asianet News Hindi | Published : Feb 3, 2020 12:25 PM IST / Updated: Feb 03 2020, 06:01 PM IST

नई दिल्ली: पांच वर्ष पहले दिल्ली विधानसभा चुनाव में एक भी सीट पर जीत हासिल न कर पाने वाली कांग्रेस के सामने एक बार फिर खराब प्रदर्शन का खतरा मंडरा रहा है। प्रदेश कांग्रेस के नेता आपसी बातचीत में मान रहे हैं कि विधानसभा की 70 सीटों में इस बार कुछ एक को छोड़ लगभग सभी जगह आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के मुकाबले वह संघर्ष में ही नहीं है।

विधानसभा चुनावों की रणनीति व प्रबंधन से जुड़े प्रदेश कांग्रेस के एक नेता का कहना था कि एक समय दिल्ली में सबसे मजबूत राजनीतिक दल के तौर पर स्थापित और लगातार 15 वर्षों तक शासन कर चुकी कांग्रेस मुश्किल से पांच या छह विधानसभा क्षेत्रों में ही ठीक से चुनाव लड़ रही है।

मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में

सूत्रों के मुताबिक जिन सीटों पर कांग्रेस की मौजूदगी दिख रही है उनमें ओखला, बल्लीमारान, सीलमपुर और मुस्तफाबाद की सीटें शामिल हैं। इन सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं। इनके अलावा पार्टी गांधीनगर और बादली जैसे क्षेत्रों में भी खुद को लड़ाई में मान रही है।

ओखला इलाके में सामाजिक कार्यकर्ता मोहम्मद अहमद कहते हैं, ‘‘कुछ हफ्ते पहले तक यहां कांग्रेस की स्थिति मजबूत थी, लेकिन अब यहां के लोगों में यह माहौल बनता दिख रहा है कि वो भाजपा विरोधी वोटों का बंटवारा नहीं करेंगे। ऐसी स्थिति में कांग्रेस के लिए यहां से जीतना काफी मुश्किल नजर आ रहा है।’’

सीलमपुर विधानसभा सीट पर भी हालात मुश्किल

ओखला से कांग्रेस ने अपने वरिष्ठ नेता व पूर्व सांसद परवेज हाशमी को उम्मीदवार बनाया है। प्रदेश में संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ धरना प्रर्दशन का केंद्र बना शाहीन बाग इसी विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है। इसी तरह, सीलमपुर विधानसभा सीट पर भी पांच बार के विधायक रहे मतीन अहमद की उम्मीदवारी के मद्देनजर खुद को मजबूत मानकर चल रही कांग्रेस के लिए मतदान से कुछ दिनों पहले तक हालात मुश्किल नजर आ रहे हैं।

सीलमपुर निवासी मोहम्मद सलीम कहते हैं, ‘‘आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार बदलने और भाजपा विरोधी मतों के बंटवारे के डर से कांग्रेस लिए लड़ाई कठिन हो गई है।’’ हालांकि, सलीम का कहना था कि ‘‘ पूरी तस्वीर मतदान से एक-दो दिन पहले ही साफ होगी।’’ सीएसडीएस के निदेशक और राजनीतिक विशेषज्ञ संजय कुमार का मानना है कि कांग्रेस दिल्ली की लड़ाई से बाहर हो चुकी है।

दिल्ली का चुनावी मुकाबला पूरी तरह से द्वि-दलीय

उन्होंने कहा, 'दिल्ली का चुनावी मुकाबला पूरी तरह से द्वि-दलीय हो गया है। ऐसी स्थिति में कांग्रेस के वोट प्रतिशत का दहाई के अंक में पहुंचना भी मुश्किल नजर आ रहा है ।' शीला दीक्षित के नेतृत्व में 15 साल तक सत्ता में रही कांग्रेस को पिछले विधानसभा चुनाव में कोई सीट नहीं मिली थी और उसे करीब 10 प्रतिशत वोट मिले थे। हालांकि 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में उसे 22.46 फीसदी वोट मिले थे और वह दूसरे स्थान पर रही थी। पार्टी के चुनाव प्रबंधक भी यह मान रहे हैं कि हालात को ध्यान में रखते हुए ही कांग्रेस के बड़े नेताओें को प्रचार अभियान में नहीं उतारा गया है। प्रदेश कांग्रेस के एक नेता ने कहा, एक तो हमारी हालत अच्छी नहीं है और दूसरा सभी (गैर भाजपा ताकतें) मान रहे हैं कि कांग्रेस यदि आक्रामक होगी तो उससे भाजपा को ही फायदा होगा।

दिल्ली में चुनावी सभा से गांधी परिवार का परहेज 

पार्टी के रणनीतिकार आम आदमी पार्टी के साथ किसी तरह की रणनीतिक समझ से इनकार कर रहे हैं पर संभवत यही कारण है कि अब तक कांग्रेस के शीर्ष नेताओं सोनिया गांधी, राहुल गांधी व प्रियंका गांधी वाड्रा ने दिल्ली में चुनावी सभा से परहेज किया है और तीनों शायद मतदान के ठीक पहले ही प्रचार में उतरेंगे। वैसे, पार्टी के दिल्ली प्रभारी पीसी चाको का दावा है कि पार्टी चौंकाने वाले नतीजे देगी और चुनाव प्रचार के आखिरी दिनों में सभी शीर्ष नेता जनता के बीच होंगे।

आप और भाजपा के बीच मुकाबला 

चाको ने कहा, 'यह धारणा बनाई जा रही है कि आप और भाजपा के बीच मुकाबला है। जबकि भाजपा की हालत बहुत खराब है। सोचिए, अमित शाह हर जगह रोडशो कर रहे हैं। कांग्रेस की स्थिति भाजपा से बेहतर है और हम केजरीवाल को चुनौती दे रहे हैं।" सूत्रों के मुताबिक संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) विरोधी प्रदर्शनों का खुलकर समर्थन कर रही कांग्रेस को उम्मीद थी कि उसे मुस्लिम वोटरों का भरपूर समर्थन मिलेगा और ऐसे में वह पिछले चुनाव के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन करेगी, लेकिन अब भाजपा एवं आप के बीच तीखी बयानबाजी से कथित तौर पर बन रही ध्रुवीकरण की स्थिति में उसे नुकसान का डर सता रहा है।

भाजपा एवं आप की तल्ख बयानबाजी से बदले हालात

कुछ समय पहले तक कांग्रेस के लिए संभावना वाली सीटें बताई जा रही करीब आधा दर्जन विधानसभा सीटों में पार्टी के नेताओं ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर यह स्वीकार किया कि जमीनी स्तर पर कुछ हफ्ते पहले वाले उत्साह की अब कमी है और इसकी वजह शाहीन बाग के प्रदर्शन और भाजपा एवं आप नेताओं की तल्ख बयानबाजी से बने सियासी हालात हैं।

दिल्ली कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘निश्चित तौर पर इस धारणा को लगातार बल मिल रहा है कि ध्रुवीकरण के कारण दिल्ली का चुनावी मुकाबला द्विदलीय हो गया है। शायद इससे हमें नुकसान हो। वैसे, हमारे उम्मीदवार और कार्यकर्ता पूरी कोशिश कर रहे हैं और उम्मीद है कि 2015 के चुनाव के मुकाबले इस बार हमारा प्रदर्शन बेहतर रहेगा।’

(यह खबर समाचार एजेंसी भाषा की है, एशियानेट हिंदी टीम ने सिर्फ हेडलाइन में बदलाव किया है।)

(प्रतीकात्मक फोटो)

Share this article
click me!