मरांडी, सोरेन से महतो तक, इन परिवारों के इर्द गिर्द है झारखंड की पूरी राजनीति

झारखंड के सियासी मैदान में मुख्यमंत्री रघुवर दास के नेतृत्व में बीजेपी 65 प्लस सीटें जीतने का टारगेट फिक्स किया है। लेकिन झारखंड की सियासत इतनी भी आसान नही है।

रांची: झारखंड के सियासी मैदान में मुख्यमंत्री रघुवर दास के नेतृत्व में बीजेपी 65 प्लस सीटें जीतने का टारगेट फिक्स किया है। लेकिन झारखंड की सियासत इतनी भी आसान नही है। झारखंड में विभिन्न दलों के ये नेता इस बार के विधानसभा चुनाव में जोर आजमाइश कर रहें है। आइए जानते है कुछ ऐसे नेताओं के बारे में जिनकी 2019 विधानसभा चुनाव में अहम भुमिका होने वाली है।

रघुवर दास

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लोकसभा चुनाव में झारखंड की 14 में 12 सीटों पर मिली जीत ने बीजेपी आलाकमान का रघुवर दास के प्रति भरोसा बढ़ाया है। संघ विचारक गोविंदाचार्य ने रघुवर दास को 1995 में चुनाव लड़ने के लिए प्रेरित किया और 1995 से ही वो लगातार जमशेदपुर पूर्व से चुनाव लड़ते आ रहे हैं और पांच दफे चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंच चुके हैं। हालांकि इस बार रघुवर को उनके ही मंत्री ने ताल ठोककर टेंशन बढ़ा दिया है।

शिबू सोरेन

शिबू सोरेन को झारखंड का गांधी कहा जाता है। प्रदेश के संथाल बेल्ट में शिबू सोरेन लोगों के दिलों में इस तरह राज करते रहे हैं कि लोग उनकी तुलना राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से करने में परहेज नहीं करते शिबू सोरेन कि दुमका से आठ बार लोकसभा जिताने की वजह रही है तो इसी ख्याति के चलते वो सूबे के मुख्यमंत्री के तौर पर वो तीन बार काबिज हुए हैं और मनमोहन सरकार में केंद्रीय मंत्री भी रहे हैं। 

सोरेन 1970 में आदिवासी नेता के तौर पर सुर्खियों में आए और साल 1975 में भी गैर-आदिवासियों को राज्य से बाहर खदेड़ने को लेकर मुहिम शुरू किए जाने को लेकर उन्हेम आपराधिक मुकदमा झेलना पड़ा था। इतना ही नहीं  झारखंड को अलग राज्य बनवाने में शिबू सोरेन पर अहम भूमिका रही है। वो आज भी आदिवासी समुदाय के सबसे बड़े नेता हैं। 1980 में जब इंदिरा गांधी की लोकप्रियता वापस चरम पर थी तब कांग्रेस के विजयी-रथ को शिबू सोरेन ने दुमका में रोक कर अपनी जीत का परचम लहराया था। फिलहाल, शिबू सोरेन की पार्टी जेएमएम की कमान उनके बेटे हेमंत सोरेन संभाल रहे हैं।

शिबू सोरेन की राजनीतिक विरासत संभाल रहे हेमंत सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष हैं। हेमंत सोरेन झारखंड के सीएम रह चुके हैं और संथाल समुदाय के दिग्गज नेता माने जाते हैं। साल 1975 में जन्मे हेमंत सोरेन कम उम्र में ही अपनी राजनीतिक सूझबूझ का परिचय दे चुके थे। मुख्यमंत्री बनने से पहले हेमंत सोरेन राज्य में अर्जुन मुंडा सरकार में उपमुख्यमंत्री पद पर भी काबिज रह चुके हैं। स्वभाव से बेहद सरल हेमंत सोरेन पिता की तरह ही लोगों से सीधा संवाद कायम रखने में विश्वास रखते हैं इस बार बदलाव यात्रा के जरिए एक बार फिर सत्ता में वापसी के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं।

अर्जुन मुंडा

झारखंड में बीजेपी का सबसे बड़ा आदिवासी चेहरा अर्जुन मुंडा है। वो तीन बार झारखंड में सीएम रह चुके हैं मौजूदा नरेंद्र मोदी सरकार में जनजातीय मंत्री की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। अर्जुन मुंडा ने मुख्यमंत्री रहने के दौरान जिन योजनाओं को झारखंड में शुरू किया उनकी गूंज देश के दूसरे राज्यों में भी खूब हुई। इनमें गरीबों के लिए कन्यादान योजना, मुख्यमंत्री लाडली लक्ष्मी योजना,दाल भात योजना की शुरूआत प्रमुख रही है। 2014 में खरसांवा विधानसभा सीट पर चुनाव हार जाने के चलते सीएम नहीं बन सके थे अर्जुन मुंडा पहली बार साल 1995 में झारखंड मुक्ति मोर्चा के टिकट पर विधायक बने थे और पृथक राज्य झारखंड बनवाने के लिए बेहद सक्रिय थे। इसके बाद उन्होंने 2000 में बीजेपी का दामन थाम लिया और फिर पलटकर नहीं देखा।

बाबूलाल मरांडी

झारखंड में नक्सली हमले में बेटे को गवां चुके बाबूलाल मरांडी ने सरकारी स्‍कूल के टीचर की नौकरी छोड़कर सियासत में कदम रखा और फिर पलटकर नहीं देखा झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बनने में खिताब बाबूलाल मरांडी के नाम दर्ज है। एक दौर में आरएसएस के निष्‍ठावान स्‍वयंसेवक और समर्पित भाजपाई रहे बाबूलाल मरांडी इस बार के विधानसभा चुनाव में किंगमेकर बनने की चाहत लेकर सियासी किस्मत आजमा रहे हैं।  संथाल समुदाय से आने वाले मरांडी बीजेपी के बड़े नेता रहे हालांकि 2006 में बीजेपी में मनमुटाव के बाद राजनीति में अपना एक अलग मुकाम बनाने के लिए उन्होंने पार्टी से नाता तोड़ लिया था। और झारखंड विकास मोर्चा (जेवीएम) नाम से अपनी अलग पार्टी बना ली इस बार उन्होंने झारखंड की सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे हैं।

मधु कोड़ा 

झारखंड में खदान में मजदूरी करने वाले एक शख्स के झारखंड का मुख्यमंत्री मधु कोड़ा बनने तक का सफर बेहद रोमांचक है। झारखंड की सियासत में 2006 में ऐसा राजनीतिक उलटफेर हुआ और रातोरात एक निर्दलीय विधायक मधु कोड़ा सीएम बन जाते हैं। कोड़ा इस बार झारखंड विधानसभा चुनाव नहीं लड़ पाएंगे हालांकि चुनाव लड़ने के लिए उन्होंने हाई कोर्ट से लेकर देश की शीर्ष अदालत तक दस्तक दी, लेकिन राहत नहीं मिली।
मधु कोड़ा का जन्म 6 जनवरी, 1971 को हुआ।  मधु कोड़ा का शुरुआती जीवन संघर्षों से भरा रहा। इसके बाद आजसू से अपना सियासी सफर शुरू किया, लेकिन पहली बार बीजेपी से विधायक बने। लेकिन 2005 में बीजेपी से नाता तोड़ लिया और निर्दलीय विधायक बनकर सीएम बने उनकी पत्नी मौजूदा समय में सासंद है और वो कांग्रेस का दामन थाम चुके हैं।

सुबोधकांत सहाय

झारखंड में कांग्रेस का सबसे बड़ा चेहरा सुबोधकांत सहाय हैं सुबोधकांत सहाय को पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का करीबी नेता माना जाता है। सुबोधकांत सहाय वीपी सिंह सरकार से लेकर मनमोहन सरकार में केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं। सहाय छात्र जीवन से ही राजनीति के मैदान में कूद पड़े थे। झारखंड बनने से पहले वो बिहार के प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं। 1977 से लेकर अभी तक सक्रीय है और इस बार कांग्रेस की जीत दिलाने की जिम्मेजारी उन्हीं के कंधों पर है।

सुदेश महतो

झारखंड में किंगमेकर बनने का ख्वाब लेकर ऑल झारखंड स्टूडेंट युनियन (आजसू) प्रमुख सुदेश महतो ने बीजेपी से नाता तोड़ लिया है और अकेले चुनावी मैदान में उतरे हैं। सुदेश महतो पहली बार साल 2000 में महज 26 साल की उम्र में सिल्ली से विधायक बने थे मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाले सुदेश अपने सियासी सफर में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। सुदेश महतो का जन्म 21 जून 1974 को सिल्ली में हुआ 1991 में उन्होंने अपने सियासी करियर की शुरुआत आजसू पार्टी में एक कार्यकर्ता के रूप में की थी लेकिन कुशल नेतृत्व क्षमता की वजह से वो आजसू के अध्यक्ष पद तक पहुंचे। सुदेश झारखंड के कद्दावर युवा नेता माने जाते हैं और उपमुख्यमंत्री भी रह चुके हैं।

 

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