गुजरात का चुनाव हो और 80 के दशक में पूरे गुजरात में अपनी धाक जमाने वाले अंडरवर्ल्ड डॉन अब्दुल लतीफ़ की बात न हो तो चर्चा कैसे पूरी हो सकती है। गुजरात का किंग कहे जाने वाला लतीफ़ अहमदाबाद के दरियापुर इलाके का रहने वाला था।
अहमदाबाद(Gujrat). अंडरवर्ल्ड और खादी का रिश्ता काफी पुराना रहा है। अंडरवर्ल्ड के कई ऐसे डॉन रहे हैं जिन्होंने आगे चल कर राजनीति का दामन थाम लिया और राजनेता बन गए। हम आज ऐसे ही डॉन की चर्चा कर रहे हैं। गौरतलब है कि गुजरात में विधानसभा का चुनाव आने वाला है। तारीखों का ऐलान भी हो चुका है। लेकिन गुजरात का चुनाव हो और 80 के दशक में पूरे गुजरात में अपनी धाक जमाने वाले अंडरवर्ल्ड डॉन अब्दुल लतीफ़ की बात न हो तो चर्चा कैसे पूरी हो सकती है। गुजरात का किंग कहे जाने वाला लतीफ़ अहमदाबाद के दरियापुर इलाके का रहने वाला था।
अंडरवर्ल्ड डॉन अब्दुल लतीफ का जन्म अहमदाबाद के दरियापुर इलाके में हुआ था। उसके परिवार की आर्थिक हालत ठीक नहीं थी। परिवार बड़ा था इसलिए घर के सभी लोग काम किया करते थे। मुश्किल हालात और आर्थिक कमजोरी ने अब्दुल लतीफ को ज्यादा पढ़ने का मौका नहीं दिया। छोटी उम्र में ही अब्दुल को पेट भरने के लिए काम करना पड़ा, पैसे की तंगी और बड़ा बनने की चाह उसे ऐसे रास्ते पर ले गई जहां से वह पूरे गुजरात में अपनी धमक कायम करने में कामयाब हो गया। हांलाकि यही रास्ता उसे मौत की ओर भी ले कर चला गया।
ऐसे रखा जुर्म की दुनिया में कदम
अब्दुल लतीफ़ का जन्म एक ऐसे घर में हुआ था जहां शुरू से ही पैसे का अभाव रहा था। इससे उबरने के लिए 80 के दशक में उसने कालूपुर ओवरब्रिज के पास अवैध रूप से देशी शराब बेचने की शुरुआत कर दी। बस यहीं से उसने जरायम की दुनिया में पहला कदम रखा था। धीरे-धीरे उसने ये व्यवसाय बढ़ाना शुरू किया। इस काम से उसकी अच्छी कमाई होने लगी थी। इसके बाद लतीफ की जान-पहचान हथियार सप्लाई करने वाले बदमाश शरीफ खान से हुई तो उसने इस शातिर से हाथ मिला लिया। इसके बाद लतीफ शराब के साथ-साथ हथियारों की तस्करी करने लगा।
पैसा आया तो बन बैठा गरीबों का मसीहा
कहा जाता है कि लतीफ ने अपना पूरा जीवन बेहद गरीबी में काटा था, यही कारण है कि वह किसी गरीब को देखकर उसका दर्द बर्दाश्त नहीं कर पाता था। शहर के कमजोर वर्गों व मुस्लिम इलाकों में लतीफ गरीबों के लिए मसीहा बन बैठा था। धीरे-धीरे पैसा कमाने के साथ ही वह राजनीति की ओर बढने लगा। उसके साथ युवाओं की अच्छी-खासी फ़ौज तैयार हो चुकी थी। पूरे गुजरात में उसके चर्चे होने लगे, गरीबों की बेटियों की शादी हो या फिर कोई बीमारी लतीफ़ हर किसी की मदद को खड़ा रहता। तमाम अवैध धंधों को बढाने के साथ ही उसने बेशुमार दौलत भी कमा ली थी।
1985 में राजनीति में रखा कदम, मिली बड़ी सफलता
अब्दुल लतीफ़ ने साल 1985 में उसने जेल में बंद रहते हुए निकाय चुनाव में पांच सीटों पर चुनाव लड़ा। वह जेल में रहते हुए भी सभी सीटों पर चुनाव जीत गया। जो कि अपने आप में एक रिकॉर्ड था। उसकी इस जीत से बड़े बड़े नेता परेशान हो गए थे। अब उसका रुझान विधानसभा और लोकसभा चुनाव की ओर था। उसने जेल में रहते हुए भी इसकी तैयारी शुरू कर दी।
दाउद भी खाने लगा खौफ
अब्दुल लतीफ के तेजी से बढ़ते क़दमों ने उसकी दुश्मनियां भी बढ़ा दीं। अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम भी गुजरात के वडोदरा में ड्रग्स का नेटवर्क खड़ा कर चुका था। इसी दौरान एक बार दाऊद और लतीफ के बीच गैंगवार छिड़ गई। लतीफ के गुर्गों ने दाऊद को घेर लिया और दाऊद को वडोदरा से भागना पड़ा था। लेकिन बाद में इस तरह की खबरें आई थी कि दाऊद और लतीफ के बीच दोस्ती हो गई । यही वजह थी कि मुंबई के सीरियल ब्लास्ट मामले में अब्दुल लतीफ का नाम भी आया था।
अब्दुल लतीफ़ के खिलाफ दर्ज हैं 80 से अधिक मामले
अब्दुल लतीफ पर अकेले गुजरात में 40 से भी अधिक हत्या के मामले दर्ज थे। इसके आलावा अपहरण, फिरौती, व अन्य अपराधों के 40 से अधिक मामले उस पर दर्ज थे। लतीफ को 1995 में दिल्ली से गिरफ्तार किया गया। इसके बाद उसे साबरमती जेल अहमदाबाद में रखा गया। नवंबर 1997 में अब्दुल लतीफ ने एक बार भागने की कोशिश की, जिस दौरान गुजरात पुलिस से एनकाउंटर में वह मारा गया।