HP polls: ऐसा क्या हुआ कि रिकॉर्ड वोटिंग के बाद भी BJP का वोट बैंक कांग्रेस के खाते में चला गया?

हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव ने भाजपा को यह सोचने पर विवश कर दिया है कि आखिर वहां गलती क्या हुई? वहीं, देशभर के लोग भी यह जानना चाहते हैं कि गुजरात में धमाकेदार वापसी करने वाली भाजपा के साथ हिमाचल में 'खेला' कैसे हो गया? 

शिमला. हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव(Himachal Pradesh elections) ने भाजपा को यह सोचने पर विवश कर दिया है कि आखिर वहां गलती क्या हुई? वहीं, देशभर के लोग भी यह जानना चाहते हैं कि गुजरात में धमाकेदार वापसी करने वाली भाजपा के साथ हिमाचल में 'खेला' कैसे हो गया? वैसे हिमाचल प्रदेश में सरकार बदलने की परंपरा रही है। इस बार राज्य की 68 सीटों में से कांग्रेस ने 40 सीटें जीतकर सरकार बनाने के लिए जादुई आंकड़ा 35 पार कर लिया। वहीं, भाजपा 25 सीटों पर सिमट गई। पिछले चुनाव की तुलना में उसे 19 सीटों का नुकसान हुआ है। यहां 3 सीटों पर निर्दलियों की जीत हुई है। आइए जानते हैं कि भाजपा की हार की वजह क्या रही?


पहले बता दें कि इस चुनाव में हिमाचल में रिकॉर्ड 76% वोटिंग हुई है। इसे अब तके चुनावों का रिकॉर्ड माना जा रहा है। लेकिन यह भी संयोग है कि पिछले 37 साल में हिमाचल में वोट प्रतिशत बढ़ने पर सत्ताधारी पार्टी को नुकसान उठाना पड़ा है। माना जा रहा है कि सरकारी कर्मचारियों और सेब किसानों की नाराजगी भाजपा सरकार पर भारी पड़ी। पिछले चुनाव की तुलना में उसे इस बार 6% कम वोट मिले। इनमें से 2% वोट बैंक का फायदा कांग्रेस को हुआ।4% निर्दलीय और आम आदमी पार्टी के खाते में जाने का भी भाजपा को नुकसान हुआ। इस बार जितनी सीटों का भाजपा को नुकसान हुआ, उतन की कांग्रेस को फायदा। निर्दलीय पिछली बार की तरह ही इस बार भी 3 सीट जीतने में सफल रहे। पहली बार चुनाव लड़ने वाली आम आदमी पार्टी को 1.1% वोट मिले।

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भाजपा को पहाड़ी राज्य के शिमला, हमीरपुर और कांगड़ा संसदीय क्षेत्रों के अंतर्गत आने वाले विधानसभा क्षेत्रों में करारा झटका लगा है।   हालांकि, पार्टी ने मंडी लोकसभा क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन किया। पुरानी पेंशन योजना(old pension scheme) बहाल करने का वादा कांग्रेस के हाथ में लड्डू साबित हुआ, जबकि सेब उत्पादकों के मुद्दों ने करीब 20 सीटों पर भाजपा की संभावनाओं पर पानी फेर दिया। राजनीतिक पर्यवेक्षकों (political observers) ने कहा कि मतदाता बढ़ती बेरोजगारी और महंगाई से नाराज थे और सरकार के खिलाफ एक मजबूत सत्ता विरोधी लहर( strong anti-incumbency against the government) थी।

नाम न छापने की शर्त पर हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर ने कहा, "पुरानी पेंशन योजना की बहाली कर्मचारियों की प्रमुख मांग रही है। इसके अलावा, लोग वस्तुओं की बढ़ती कीमतों से परेशान हैं।"


मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर की लोकप्रियता ने बीजेपी को मंडी निर्वाचन क्षेत्र में विधानसभा क्षेत्रों में जीत हासिल करने में मदद की। पिछले साल मंडी लोकसभा सीट जीतने वाली कांग्रेस को यहां झटका लगा। वह 17 सीटों में से केवल पांच सीटों पर ही जीत हासिल कर सकी थी। मंडी संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले 17 विधानसभा क्षेत्रों में रामपुर (एससी), किन्नौर (एसटी), लाहौल और स्पीति (एसटी), भरमोर (एसटी), मनाली, कुल्लू, बंजर, अन्नी (एससी), करसोग (एससी), सुंदरनगर, नाचन शामिल हैं। , (एससी), सिराज, द्रंग, जोगिंदरनगर, मंडी, बल्ह (एससी) और सरकाघाट शामिल हैं।


हमीरपुर संसदीय क्षेत्र में बेरोजगारी, महंगाई, खराब प्रशासन और ऊना से हमीरपुर तक ट्रेन सेवा प्रमुख मुद्दे थे। हमीरपुर को मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व नहीं दिए जाने और पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल को दरकिनार कर दिए जाने से भी लोग नाखुश थे, जिसकी कीमत भाजपा को भारी पड़ी। इस संसदीय क्षेत्र की 17 विधानसभा सीटों में से 13 पर कांग्रेस और निर्दलीयों ने जीत हासिल की।

हमीरपुर संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली विधानसभा सीटों में धरमपुर, देहरा, ज्वालामुखी, भोरंज (एससी), सुजानपुर, हमीरपुर, बरसर, नादौन, चिंतपूर्णी (एससी), गगरेट, हरोली, ऊना, कुटलेहड़, घुमारवीं, बिलासपुर, श्री नैना देवी जी और जनदत्ता (एससी) शामिल हैं।


कांगड़ा संसदीय क्षेत्र में जनता से संपर्क न होना और ब्राह्मणों की अनदेखी (जो क्षेत्र के 20-21 फीसदी मतदाता हैं) टिकट आवंटन में मतदाताओं को रास नहीं आया। 15 विधानसभा सीटों वाला कांगड़ा हिमाचल चुनाव में निर्णायक कारक है और मंडी जिले में विकास कार्य केंद्रित होने के कारण लोग नाराज थे। इस संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस और भाजपा को क्रमश: 11 और छह सीटें मिलीं।

कांगड़ा लोकसभा क्षेत्र में चुराह (एससी), चंबा, डलहौजी, भट्टियात, नूरपुर, इंदौरा (एससी), फतेहपुर, ज्वाली, जसवां-परागपुर, जयसिंहपुर, सुलह, नगरोटा, कांगड़ा, शाहपुर, धर्मशाला, पालमपुर और बैजनाथ (एससी) विधानसभा सेगमेंट्स शामिल हैं।


शिमला संसदीय क्षेत्र में भाजपा का लगभग सफाया हो गया और वह केवल तीन सीटों पर जीत हासिल कर सकी, जबकि कांग्रेस ने 13 सीटों पर जीत दर्ज की और एक सीट पर निर्दलीय जीता।

इस निर्वाचन क्षेत्र में अर्की, नालागढ़, दून, सोलन (एससी), कसौली (एससी), पच्छाद (एससी), नाहन, श्री रेणुकाजी, (एससी), पांवटा, शिलाई, चौपाल, ठियोग, कुसुम्पटी, शिमला (शहरी), शिमला (नगरीय) शामिल हैं। ग्रामीण), जुब्बल-कोटखाई और रोहरू (एससी) विधानसभा सीटें  शामिल हैं।

यहां सेब पर 100 प्रतिशत आयात शुल्क(import duty  और पैकेजिंग सामग्री पर 18 प्रतिशत जीएसटी के साथ उत्पादन लागत में वृद्धि प्रमुख चुनावी मुद्दे थे। 

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