किसान नेता मंजीत सिंह: दूसरों को मुश्किलों से निकाला, खुद फंसे तो खुदकुशी कर ली, यहां कर्ज के आगे सस्ती जान?

किसान नेता मंजीत आत्महत्या ना करने के लिए हर किसी को प्रेरित करता था। वह दिन-रात इस काम में लगा रहता था। मुश्किल में फंसे कई किसानों की उसने मदद की। लेकिन, एक दिन वह खुद आत्महत्या कर लेता है।  मंजीत ने क्यों मौत को गले लगाया? यह जानने के लिए एशियानेट न्यूज हिंदी के संवाददाता मनोज ठाकुर इस गांव में गए और सच जानने की कोशिश की। 

भुच्चो खुर्द (बठिंडा)। ‘वह जो लाइन देख रहे हो, कर्ज में दबे दो भाइयों ने 6 माह पहले वहीं ट्रेन के नीचे आकर आत्महत्या की थी। मैं भी कर्ज में हूं। फिर भी जिंदा हूं। क्योंकि मुझे किसान नेता मंजीत सिंह ने बहुत समझाया। अफसोस द मंजीत सिंह दूसरों को जिंदगी के मायने बताता था, उस पर खुद अमल नहीं कर पाया। कर्ज में ऐसा फंसा कि पिछले साल दिसंबर में उसने खुदकुशी कर ली।’ अपने खेत के डेरे में बैठे गुरजंत सिंह की यह बोलते हुए आंखें नम हो जाती हैं। बाकी के शब्द उसके गले में फंस जाते हैं। अपनी आंखों की नमी को छुपाने के लिए चेहरा घुमा लेता है।

कर्ज में दबे पंजाब के किसान लगातार आत्महत्या कर रहे हैं। इसके बाद भी विधानसभा चुनाव में किसान कोई मुद्दा नहीं है। तीन कृषि कानूनों को लेकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पंजाब के किसानों की चर्चा हुई। तीन कृषि कानून रद्द होते ही अब किसानों की बात ही नहीं हो रही है। पंजाब चुनाव में किसान कहां है? इस तथ्य को जानने के लिए एशियानेट न्यूज हिंदी ने पंजाब के कई गांवों का दौरा किया। 

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किसानों को जिंदगी का पाठ पढ़ाते थे मंजीत सिंह
भुच्चो खुर्द गांव बठिंडा जिले का छोटा-सा गांव है। 1300 की आबादी वाले इस गांव में दो सालों में 35 किसान आत्महत्या कर चुके हैं। आत्महत्या का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। अब यहां आत्महत्या आम बात है। आत्महत्या कितनी बड़ी समस्या है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि भारतीय किसान यूनियन के नेता मंजीत सिंह लगातार किसानों को जान ना देने के लिए प्रेरित करते थे। लेकिन एक दिन वह खुद ही फांसी के फंदे पर झूल गए। 

मंजीत की कर्ज में पूरी जमीन बिकी
गांव में किसान बेअंत सिंह ने बताया कि मंजीत के घर का गांव में अब कोई नहीं रहता। उसका एक बेटा है जो गांव छोड़कर चला गया है। क्योंकि मंजीत की पूरी जमीन कर्ज में बिक गई थी, इसलिए अब गांव में उसका कुछ नहीं रहा। बेटे के बारे में पता नहीं है क्या करता है। मंजीत सिंह की पत्नी की भी मौत हो गई है।

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बेअंत कौर के पति, फिर बेटे ने फांसी लगाकर जान दी
बेअंत सिंह कहते हैं कि किसान कर्ज में दबकर आत्महत्या कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि मंजीत सिंह भी अभागा कर्ज में दब गया। उसकी जमीन भी बिक गई। जब कर्ज ना चुका पाया तो उसने फांसी लगा ली। गांव की 65 वर्षीय बेअंत कौर के पति ने पांच साल पहले आत्महत्या कर ली थी। एक साल पहले उनके 28 साल के बेटे ने फांसी लगा ली। बेअंत कौर ने बताया कि हमारे पास जमीन नहीं थी। ठेके पर लेकर खेती करते थे। कपास दो साल लगातार खराब हो गई। आढ़ती का कर्ज चढ़ता गया। 

गांव में हर घर की कहानी.... कर्ज और जिंदगी खत्म
अपनी बहन के घर पर रहने वाले कुलदीप सिंह ने बताया कि उसके जीजा खेती करते थे, लेकिन फसल खराब हो गई। इस वजह से वह तनाव में आ गए। एक दिन कीटनाशक दवा पी ली। उसने बताया कि अब बहन उनके साथ ही रह रही है। गांव की महिला चरणजीत कौर ने बताया कि उसके बड़े बेटे सरबजीत ने फांसी लेकर अपनी जिंदगी खत्म कर दी थी। उस पर कर्ज था। आढ़ती और बैंक वाले कर्ज के लिए परेशान करते थे। इस वजह से उसका बेटा तनाव में था। एक दिन जब घर पर कोई नहीं था तो उसने फांसी ले ली। 

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98 फीसदी ग्रामीण परिवार कर्ज में डूबे हैं
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, पंजाब विश्वविद्यालय और गुरु नानक देव विश्वविद्यालय ने एक संयुक्त सर्वे किया था। इस रिपोर्ट के अनुसार साल 2000 से लेकर 2010 तक पंजाब में 6926 किसानों ने आत्महत्या की थी। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय में प्रोफेसर किसानों की आत्महत्या के कारणों की पता लगाने वाली टीम के सदस्य प्रो. सुखपाल सिंह बताते हैं- ‘पंजाब के ग्रामीण इलाकों में हमारी रिपोर्ट के अनुसार, 35 हजार करोड़ रुपए का कर्ज है। किसानों की आय इतनी नहीं है कि वह कर्ज दे सकें। अधिकतर किसान आढ़तियों से भी कर्ज लिए हैं, जो उनके आत्महत्या का कारण बन रहा है।’

पंजाब में 98 फीसदी ग्रामीण कर्ज में डूबे
चंडीगढ़ स्थित ग्रामीण और औद्योगिक विकास अनुसंधान केंद्र की ओर से किए गए अध्ययन के अनुसार, पंजाब के 96 फीसदी ग्रामीण परिवारों की आय उनके खर्च की तुलना में कम है। 98 फीसदी ग्रामीण परिवार कर्ज में डूबे हैं। ऐसे में पंजाब की भयावह स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। कृषि मामलों के जानकार और पंजाब के अर्थशास्त्री सुच्चा सिंह बताते हैं- ‘पंजाब के कर्ज के कारण किसानों की आत्महत्या के मामले साल 1997 में तब शुरू हुए थे, जब पंजाब के कांटन बेल्ट में फसल बर्बाद होने पर कपास किसान कर्ज न चुकाने के कारण आत्महत्या करने लगे।’

प्रति हेक्टेयर उत्पादन अच्छा तो फिर आत्महत्या क्यों? 
पंजाब को हमारे देश का अनाज का कटोरा भी कहा जाता है, फिर भी वहां के किसान कर्ज में डूबे हुए हैं।  पंजाब में प्रति हेक्टेयर गेहूं की पैदावार 4,500 किलो के आसपास है जो कि अमेरिका में प्रति हेक्टेयर गेहूं की पैदावार के बराबर है, जबकि धान उगाने के मामले में पंजाब के किसान चीन को टक्कर देते हैं। फिर भी ये किसान आत्महत्या करने को मजबूर क्यों हो रहे है। इस सवाल के जवाब में  सेंटर फॉर रूरल स्टडी चंडीगढ़ के शोधार्थी राजेश ने बताया कि आसान कर्ज इसकी बड़ी वजह है। किसान क्रेडिट कार्ड से कर्ज एक साल के लिए मिलता है। एक साल के बाद सारा पैसा और ब्याज बैंक में जमा कराना पड़ता है। किसान क्रेडिट कार्ड को लेकर सरकार बहुत ही लचीला रुख अपना रही थी। इसलिए इसमें तेजी से उछाल आया। यह पैसा किसानों को एक साल के बाद बैंक में ब्याज समेत वापस जमा करना होता है। किसान क्रेडिट कार्ड देते वक्त ज्यादा औपचारिकता नहीं होती। इतना ही नहीं यदि किसी किसान के पास सात आठ एकड़ जमीन है तो वह एक से ज्यादा बैंकसे भी क्रेडिट कार्ड बनवा लेता है। इससे किसान कर्जदार होता गया। 

कर्ज का 70 फीसदी पैसा दूसरे कामों पर खर्च कर दिया जाता है
सेंटर फॉर रिसर्च इन रूरल एंड इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट सेंटर(क्रीड ) सीबीआई चेयर के प्रोफेसर एसएस सांगवान ने बताया कि किसान कर्ज के 50 से लेकर 70 फीसदी तक पैसे को कृषि के अलावा दूसरे कामों पर खर्च कर देता हैं जहां से उसे आमदनी नहीं होती।  स्टडी में पाया गया कि 37 फीसदी यह  पैसा शादी में खर्च होता है। 40 फीसदी किसान घर बनाने में खर्च कर दिया जाता है। कुछ किसान बीमारी के इलाज पर भी यह पैसा खर्चते हैं। फिर इस कर्ज को चुकाने के लिए दोबारा कर्ज ले लेते हैं। 

क्योंकि दूसरे कामों के लिए किसानों को लंबी अवधि के कर्ज नहीं मिलते 
क्रेडिट कार्ड के पैसे को दूसरे कामों में इसलिए किसान खर्च कर देते हैं क्योंकि किसानों को दूसरे कामों के लिए लंबी अवधि का कर्ज नहीं मिलता। उदाहरण के लिए अर्बन एरिया में मकान के लिए लंबी अवधि का कर्ज मिल जाता है। लेकिन गांवों में यह सुविधा नहीं है। इसी तरह से गाड़ी लेने मकान की रिपेयर के लिए व अचानक आए खर्च को चलाने के लिए बैंकों से कर्ज नहीं मिलता। इस तरह की स्थिति में काम चलाने के लिए किसान क्रेडिट कार्ड का आसान रास्ता अपना लेते हैं। इससे दिक्कत यह आती है जहां लंबी अवधि के कर्ज में किसान किस्तों में पैसा वापस कर सकते हैं। लेकिन किसान क्रेडिट कार्ड में सारी रकम और ब्याज वापस करना पड़ता है। 

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एक कर्ज उतारने को ले लेते हैं दूसरा कर्ज 
बदहाल किसान एक कर्ज से निपटने के लिए दूसरा कर्ज ले रहा है। कर्ज का यह सिलसिला तब तक चलता है, जब तक किसान को कर्ज मिलता रहता है। और जब कर्ज मिलना बंद हो जाता है तो ज्यादातर किसान आर्थिक बदहाली का शिकार होकर आत्महत्या का रास्ता चुन लेते हैं। किसान कोऑपरेटिव बैंक हर साल किसानों को 10 हजार करोड़ रुपए का कर्ज देते हैं। इसमें से औसतन 42 फीसदी किसान डिफॉल्टर रहते हैं। 52 फीसदी किसान ही संस्थागत बैंकों से जुड़े हैं। बाकी के किसान तो आढ़ती के कर्ज ले रहे हैं। क्रीड ने हरियाणा और पंजाब के 65 बैंक ब्रांच के ग्रामीण क्षेत्र के ऋण के तरीके की स्टडी की तो इसमें पाया कि प्राइवेट बैंक एक एकड़ के किसान को औसतन एक लाख रुपए तक का किसान क्रेडिट कार्ड दे दिया गया। जबकि आरबीआई की गाइड लाइन है कि जिला स्तर की टैक्निकल कमेटी उस क्षेत्र की फसलों में खर्च के हिसाब से क्रेडिट कार्ड की लिमिट तय करेगी। लेकिन देखने में आया कि इस ओर ध्यान ही नहीं दिया गया।

यहां किसान आत्महत्या एक आंकड़े भर से ज्यादा नहीं 
पंजाब के सीनियर पत्रकार हरपाल सिंह चीमा थोड़ा गुस्से में कहते हैं कि यहां किसान आत्महत्या एक आंकड़ा भर है। चुनाव के दिनों में भी किसान आत्महत्या कर रहे हैं। एक भी दल इस पर बात नहीं कर रहा है बात हो रही है कर्ज माफी की। इससे होगा क्या? अव्वल तो कर्ज माफ होगा नहीं। यदि हो भी गया तो अगले ही दिन वह किसान दोबारा से फिर कर्ज ले लेगा। इस समस्या का स्थाई समाधान होना चाहिए। इसके लिए खेती के तौर तरीके में बदलाव लाना चाहिए। बीटी कॉटन के नाम पर किसानों को जो हाइब्रीड बीज दिए जा रहे हैं, इसमें कई बार नकली बीज होते हैं। कीटनाशक नकली है। इससे किसानों को नुकसान होता है। 

किसानों की आय बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए
किसानों की आय कैसे बढ़े, इस पर विचार किया जाना चाहिए। नशा खत्म करने और हेल्थ की ओर भी ध्यान देना होगा। क्योंकि कैंसर और दूसरी बीमारी का इलाज कराने में भी किसान कर्जदार हो रहे हैं। इसके लिए कोई योजना बननी चाहिए। किसी  भी दल का घोषणा पत्र उठा लीजिए, इसमें इस बात का जिक्र नहीं है। फिर कैसे किसान को आत्महत्या से रोका जा सकता है। वह तो मरेगा ही, क्योंकि वह मरने के लिए ही तो खेती करता है।

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