पंजाब चुनाव: वोटर्स के मन में झूठी उम्मीद जगाने का जरिया बने घोषणा पत्र, 10 साल के वादे आज भी अधूरे, पढ़ें

अब जबकि 2022 के विधानसभा चुनाव हो रहे हैं तो इस बार भी विभिन्न दल अपने चुनावी घोषणा पत्र जारी करेंगे। मतदाताओं को लुभाने के लिए विकास के बड़े-बड़े वादे किए जाएंगे। सेंटर फॉर सोशल साइंस इंस्टीट्यूट चंडीगढ़ में समाज विज्ञान के प्रोफेसर डॉक्टर नीरज शर्मा कहते हैं कि घोषणा पत्र को लेकर राजनीतिक दल गंभीर नहीं हैं।

Asianet News Hindi | Published : Feb 14, 2022 5:23 AM IST

मनोज ठाकुर, चंडीगढ़। चुनाव में घोषणा पत्र में खूब वादे होते हैं। हकीकत यह है कि मतदान खत्म होते ही घोषणा पत्र को नेता रद्दी की टोकरी में डाल देते हैं। मतदाता भी भूल जाते हैं। यह सिलसिला लंबे समय से चलता आ रहा है। इस बार हालांकि पंजाब में विधिवत घोषणा पत्र जारी करने को लेकर पार्टियां ज्यादा उत्साहित तो नहीं हैं। फिर भी मंच से इस तरह की घोषणाएं जरूरी हो रही हैं, जो शायद ही कभी पूरा हो सकें। एशियानेट न्यूज हिंदी ने 2012 और 2017 के घोषणा पत्र का अध्ययन किया तो पाया कि वोटर्स से जो वादे किए गए थे, वे ज्यादातर पूरे नहीं नहीं हुए हैं। 

ये हैं शिअद-भाजपा और कांग्रेस द्वारा 2012 और 2017 के चुनावी घोषणापत्र में मतदाताओं से किए गए वादे...

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वोटर्स भी नेताओं का झूठ सुनकर खुश हो जाते हैं
अब जबकि 2022 के विधानसभा चुनाव हो रहे हैं तो इस बार भी विभिन्न दल अपने चुनावी घोषणा पत्र जारी करेंगे। आज पंजाब कांग्रेस के सीएम चरणजीत सिंह चन्नी ने भी बड़ी घोषणा की। उन्होंने कहा कि सत्ता में आने पर हम राज्य के युवाओं को एक लाख सरकारी नौकरी देंगे। इस चुनाव में भी मतदाताओं को लुभाने के लिए विकास के बड़े-बड़े वादे किए जाएंगे। सेंटर फॉर सोशल साइंस इंस्टीट्यूट चंडीगढ़ में समाज विज्ञान के प्रोफेसर डॉक्टर नीरज शर्मा कहते हैं कि घोषणा पत्र को लेकर राजनीतिक दल गंभीर नहीं हैं। खासतौर पर जब से चुनाव में प्रोफेशनल मैनेजर आए हैं, तब से तो घोषणा पत्र भ्रमाने वाले वादों का दस्तावेज बन कर रह गया है। यह लोकतंत्र और चुनाव के लिए अच्छी बात तो नहीं है। दिक्कत यह है कि मतदाता भी नेता का झूठ सुन कर खुश हो जाते हैं। 

मन में झूठी उम्मीद लेकर खुश होते रहते हैं वोटर्स
उन्हें पता है कि ऐसा कुछ होगा नहीं, फिर भी सुनने में अच्छा लगता है। एक झूठी उम्मीद उनके मन में बनी रहती है। मतदाता को इस बारे में जागरूक होना चाहिए। मीडिया का भी दायित्व बनता है कि वह जिस तरह से बजट पर समीक्षा करता है, इसी तरह से घोषणा पत्र की भी समीक्षा करें। इसमें वह बताएं कि जो वादे किए जा रहे हैं, वह पूरे नहीं हो सकते। डॉक्टर शर्मा ने बताया कि जो पार्टी हार जाती है, वह भी बहुत ही आराम से बोल देती है कि उनकी सरकार ही नहीं है, लेकिन वह वह यह नहीं बताते कि उनके जो विधायक चुने गए, उन्होंने अपने घोषणा पत्र के वायदे विधानसभा में उठाए कितने?

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2017 में कांग्रेस वादों की दम पर ही सरकार बनाई थी
डॉक्टर नीरज ने बताया कि पिछले विधानसभा में पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह ने जो वादे किए थे, वह प्रशांत किशोर की टीम ने तैयार किए थे। इन वायदों के बाद कांग्रेस का ग्राफ तेजी से बढ़ा। लेकिन हुआ क्या? चुनाव के बाद कैप्टन खुद अपने वायदे भूल गए। इस बार पंजाब कांग्रेस के प्रधान नवजोत सिंह सिद्धू पंजाब मॉडल लेकर आए, यह क्या है? क्या यह संभव है? इस पर कोई चर्चा नहीं हो रही है। मीडिया में सिद्धू के पंजाब मॉडल की चर्चा तो होती है, लेकिन यह कितना कारगर है, इस पर एक भी समीक्षा नहीं आई। 

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पंजाब में अब बदलाव, युवाओं ने सवाल करना सीख लिया
आम आदमी को कैसे पता चलेगा? इसलिए घोषणा पत्र और वायदों पर मीडिया की भी जिम्मेदारी बनती है। ऐसा नहीं है कि नेता ने जो बोल दिया, मीडिया से उसे प्रकाशित कर दिया। यह ठीक नहीं है। इसलिए मीडिया को भी अपनी भूमिका बदलनी चाहिए। उन्होंने बताया कि हालांकि इस बार पंजाब में एक बदलाव देखने को मिल रहा है, वह यह है कि अब युवा सवाल करने लगे हैं। वह राजनीतिक दल के नेता से पूछते हैं। अब ज्यादातर जगह ऐसा नहीं है कि घर या परिवार के सीनियर सदस्य ने तय कर लिया कि किसे वोट देना है। युवा अपनी राय रख रहे हैं। यह अच्छी बात है। लेकिन इसमें अभी और ज्यादा जागरूकता की जरूरत है।

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