Published : Jul 31, 2025, 06:45 AM ISTUpdated : Jul 31, 2025, 09:25 AM IST
Mohammed Rafi Death Anniversary: बॉलीवुड के मोस्ट पॉपुलर सिंगर मो.रफी की गुरुवार 31 जुलाई को 45वीं डेथ एनिवर्सरी है। उनका निधन 1980 में हुआ था। इस मौके पर आपको उनसे जुड़े कुछ अनसुने किस्से बताने जा रहे हैं।
1924 को अमृतसर के पास कोटला सुल्तान सिंह गांव में जन्मे मोहम्मद रफी एक फकीर की वजह से गाना गाने के लिए इंस्पायर्ड हुए थे। फकीर जब सड़कों पर गाता था तो वे भी उसके पीछे-पीछे दूर तक जाते थे और उसका गाना सुनते थे। फिर उनके पिता लाहौर शिफ्ट हो गए है। वे वहां नाई की दुकान पर काम करने लगे और बाल काटते-काटते गुनगुनाते भी थे। बाद में उन्होंने उस्ताद अब्दुल वाहिद खान, पंडित जीवन लाल मट्टू और फिरोज निजामी से शास्त्रीय संगीत सीखा।
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13 साल की उम्र में इत्तेफाक से मिला था स्टेज पर गाने का मौका
बात 1937 की है, मो.रफी महज 13 साल थे और उन्हें इत्तेफाक से पब्लिक में परफॉर्मेंस देने का मौका मिला था। दरअसल, ऑल इंडिया एग्जीबिशन, लाहौर में एक संगीत प्रोग्राम था। स्टेज पर बिजली नहीं होने की वजह से सिंगर कुंदनलाल सहगल ने परफॉर्मेंस देने से मना कर दिया था। फिर आयोजकों ने रफी साहब को गाने का मौका दिया। 13 साल की उम्र में उन्होंने अपनी गायिकी से ऐसा समां बांधा कि लोग देर रात तक उनके गाने सुनते रहे। उनकी गायिकी सुनकर सहगल ने कहा था- ये लड़का एक दिन बहुत बड़ा सिंगर बनेगा। डायरेक्टर श्याम सुंदर की मदद से रफी साहब फिल्मों में आए। उनका पहला गल बलोच फिल्म का परदेसी..सोनिए ओ हीरिए था। ये एक पंजाबी फिल्म थी।
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100 रुपए लेकर मुंबई आए थे रफी साहब
बताया जाता है कि एक्टर और प्रोड्यूसर नजीर ने रफी साहब को 100 रुपए और एक टिकट भेजकर मुंबई बुलाया था। यहां आकर उन्होंने अपना पहला हिंदी गाना हिंदुस्तान के हम हैं.. फिल्म पहले आप के लिए रिकॉर्ड किया था। ये मूवी 1944 में आई थी। सालों पहले एक इंटरव्यू में संगीतकार नौशाद ने इस गाने से जुड़ा एक सुनाया था। उन्होंने बताया था कि ये देशभक्ति से जुड़ा गाना था और इसमें साउंड इफेक्ट लाने के लिए सिंगर्स और कोरस में गाने वालों को मिलिट्री वाले जूते पहनाए थे। गाना पूरा होने के बाद इन जूतों की वजह से रफी साहब के पैरों से खून निकलने लगा था, लेकिन उन्होंने कोई शिकायत नहीं की थी, बल्कि अपना पहला हिंदी गाना रिकॉर्ड कर वे बेहद खुश थे।
रफी साहब से जुड़ा एक किस्सा और भी है। कहा जाता है कि वे अपने इमोशन किसी के सामने दिखाते नहीं थे। लेकिन फिल्म नील कमल का गाना बाबुल की दुआएं लेती जा.. की रिकॉर्डिंग के दौरान वे अपने इमोशन्स पर कंट्रोल नहीं रख पाए थे और फूट-फूटकर रोने लगे थे। कहा जाता है इस गाने की रिकॉर्डिंग के एक दिन पहले उनकी बेटी की सगाई हुई थी और कुछ दिन बाद उसकी शादी होने वाली थी। यहीं सोचकर वे इमोशनल हो गए थे।
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मो.रफी-लता मंगेशकर में झगड़ा
बताया जाता है कि एक गाने की रिकॉर्डिंग के दौरान रफी साहब और लता मंगेशकर में गायकों की रॉयल्टी को लेकर बहस हो गई। रफी साहब इसके पक्ष में नहीं थे लेकिन लता अपनी बात पर अड़ी रही थीं। बाद में रफी साहब ने लता के साथ गाना गाने से मना कर दिया था। तकरीबन 4 साल बाद दोनों में सुलह हुई थी और फिल्म ज्वेल थीफ के लिए दोनों ने साथ गाना गाया था।