Swatantrya Veer Savarkar Review: बेजान और बोरिंग है रणदीप हु्ड्डा की फिल्म, ढेरों खामियां

Swatantrya Veer Savarkar Review. रणदीप हुड्डा की फिल्म स्वातंत्र्य वीर सावरकर शुक्रवार को सिनेमाघरों में रिलीज हुई। हालांकि, फिल्म में ढेरों कमियों की वजह से इसे क्रिटिक्स के साथ जनता से भी अच्छा रिव्यू नहीं मिला है। फिल्म के डायरेक्टर रणदीप ही है।

एंटरटेनमेंट डेस्क. रणदीप हुड्डा (Randeep Hooda) की मोस्ट अवेटेड फिल्म स्वातंत्र्य वीर सावरकर (Swatantrya Veer Savarkar) शुक्रवार को सिनेमाघरों में रिलीज हुई। फिल्म को लेकर दर्शकों के मन में जो उत्साह था, इसे देखने के बाद खत्म हो गया। फिल्म एकदम बेजान और बहुत ज्यादा बोरिंग है, साथ ही इसमें ढेरों खामियां भी हैं। क्रिटिक्स से फिल्म को अच्छे रिव्यू नहीं मिले हैं। रणदीप द्वारा निर्देशित फिल्म इतिहास के लंबे पाठों से भरी हुई है, जो दर्शकों को बोर करती है। हालांकि, फिल्म में रणदीप ने अपने किरदार के साथ पूरा न्याय किया है।

क्या है Swatantrya Veer Savarkar की कहानी

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रणदीप हुड्डा कि फिल्म स्वातंत्र्य वीर सावरकर की कहानी की बात करें तो इसमें इतिहास को काफी खींचकर दिखाने की कोशिश की गई है। फिल्म के शुरू में दिखाया कि विनायक दामोदर सावरकर (रणदीप हुड्डा) के सिर से बचपन में ही मां का साया उठा जाता है। जब वे थोड़े बड़े होते है तो उनके पिता दामोदर राव सावरकर की भी एक महामारी के कारण मौत हो जाती है। हालांकि, मरने से पहले वह अपने बेटे को चेतवानी देते हुए कहते है कि अंग्रेज बड़े और शक्तिशाली हैं और क्रांति से कुछ हासिल नहीं होगा। लेकिन विनायक पिता की बातों को अनसुना कर देते हैं क्योंकि उन्होंने पहले ही ठान लिया था कि वो एक क्रांतिकारी बनेंगे। फिल्म में आगे दिखाया कि विनायक ब्रिटिशों की नजरों से बचकर फर्ग्युसन कॉलेज में अभिनव भारत सोसायटी की शुरुआत करते हैं। बड़ा भाई गणेश दामोदर सावरकर हर पल उन्हें सपोर्ट करता है। छोटे भाई के बैरिस्टर बनने का सपना पूरा करने के लिए बड़ा भाई उनकी शादी के लिए पैसे वाला ससुराल ढूंढता है। विदेश में पढ़ाई फिर जेल, जेल से कालापानी की सजा और आखिरकार सालों बाद विनायक दामोदर सावरकर का घर पहुंचना। इसमें आगे और क्या होता है इसके लिए फिल्म देखनी पड़ेगी।

फिल्म स्वातंत्र्य वीर सावरकर का डायरेक्शन

रणदीप हुड्डा ने फिल्म स्वातंत्र्य वीर सावरकर के जरिए डायरेक्शन की दुनिया में कदम रखा है। फिल्म में उन्होंने एक्टिंग तो जोरदार की लेकिन डायरेक्शन में मात खा गए। फिल्म में कुछ ऐसे सीन्स ऐसे भी दिखाए हैं जो सिर्फ सावरकर के बारे में जानने वाले ही समझ सकते हैं। फिल्म में कई सीन्स ऐसे भी हैं जो कन्फ्यूज करते हैं और देखने वालों के मन में कई सवाल छोड़ते है। इतना ही नहीं फिल्म में इतिहास दिखाने के चक्कर में इसे बहुत ज्यादा लंबा खींच दिया गया, जो दर्शकों को बोर करता है।

स्वातंत्र्य वीर सावरकर में कलाकारों की एक्टिंग

स्वातंत्र्य वीर सावरकर में जो अच्छी बात देखने को मिली वो है कलाकारों की एक्टिंग। हर बार की तरह इस बार भी रणदीप हुड्डा ने अपने किरदार को जबरदस्त तरीके से निभाया है। उन्होंने खुद को फिल्म की डिमांड के हिसाब से ढालने की कोशिश की है। फिल्म में उनका शानदार बॉडी ट्रांसफॉर्मेशन देखने को मिला। फिल्म में अंकिता लोखंडे ने रणदीप हुड्डा की पत्नी यमुनाबाई सावरकर का रोल प्ले किया। हालांकि, उन्हें स्क्रीन स्पेस कम मिला। अमित सियाल ने भी बेहतरीन काम किया है। राजेश खेरा ने महात्मा गांधी के किरदार के साथ पूरा न्याय किया है।

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