राजा और योद्धाओं के ये वचन-प्रतिज्ञा बन गई मुसीबतों की वजह, न चाहते हुए भी करने पड़े ये काम

उज्जैन. हिंदू धर्म ग्रंथों जैसे रामायण (Ramayan) और महाभारत (Mahabharat) में कई ऐसे प्रसंगों का वर्णन मिलता है जब किसी का दिया गया वचन और ली गई प्रतिज्ञ ही उसकी परेशानियों का कारण बन गई और न चाहते हुए भी उन्हें काम करने पड़े, जो वो नहीं चाहते थे। कई बार इन प्रतिज्ञा और वचन के कारण बड़े युद्ध हुए तो कई बार न चाहते हुए भी अपनों का त्याग करना पड़ा। आज हम आपको कुछ ऐसे ही वचन और प्रतिज्ञाओं के बारे में बता रहे हैं, जो बाद में परेशानियों का कारण बनी…

 

Manish Meharele | Published : Jan 18, 2023 11:10 AM IST / Updated: Jan 18 2023, 04:41 PM IST
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राजा और योद्धाओं के ये वचन-प्रतिज्ञा बन गई मुसीबतों की वजह, न चाहते हुए भी करने पड़े ये काम

राजा दशरथ का वचन
वाल्मीकि रामायण के अनुसार, एक बार राजा दशरथ ने अपने पत्नी कैकयी को 2 मनोकामना पूरी करने का वचन दिया था। जब राजा दशरथ अपने पुत्र श्रीराम को राजा बनाना चाहते थे, उस समय कैकयी ने उनसे वो वर मांगे। पहले वर में उन्होंने मांगा की आयोध्या का राजा भरत के बनाया जाए राम को नहीं। और दूसरे वचन में उन्होंने श्रीराम के लिए 14 वर्ष का वनवास मांगा। राजा दशरथ को न चाहते हुए भी ये बातें माननी पड़ी, जबकि वे ऐसा बिल्कुल नहीं चाहते थे। बाद में अपने पुत्र श्रीराम के वन जाने के कारण ही उनकी मृत्यु हुई। 
 

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श्रीराम का काल को वचन
वाल्मीकि रामायण के अनुसार, एक बार ब्रह्मदेव की आज्ञा से काल श्रीराम से मिलने आया। काल ने श्रीराम से वचन लिया कि हम दोनों की बातचीत के दौरान कोई तीसरा इस कक्ष में नहीं आना चाहिए। ऐसा हुआ तो उसे मृत्युदंड देना होगा। श्रीराम ने काल को ये वचन दे दिया और लक्ष्मण को द्वार पर खड़ा कर दिया। कुछ देर बाद वहां ऋषि दुर्वासा आ गए, वे उसी समय श्रीराम से मिलना चाहते थे, लेकिन लक्ष्मण ने उन्हें प्रतिक्षा करने को कहा। ऋषि दुर्वासा बहुत क्रोधी थे, लक्ष्मण नहीं चाहते कि वे कोई श्राप श्रीराम को दें उन्होंने स्वयं जाकर श्रीराम को ये बात बताई। बाद में जब लक्ष्मण को मृत्युदंड देने की बात आई तो कुलगुरु वशिष्ठ ने कहा कि अपने प्रिय का त्याग करना उसे मृत्युदंड देने के समान ही है। तब श्रीराम को न चाहते हुए भी लक्ष्मण का त्याग करना पड़ा।   
 

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भीष्म की प्रतिज्ञा
महाभारत के अनुसार, अपने पिता राजा शांतनु और सत्यवती का विवाह करवाने के लिए भीष्म ने आजीवन ब्रह्मचारी रहने और हस्तिनापुर की सेवा करने की प्रतिज्ञा ली थी। जब धृतराष्ट्र हस्तिनापुर के राजा बने तो उन्होंने पुत्र मोह में कई बार गलत निर्णय, लेकिन प्रतिज्ञाबद्ध होने के कारण भीष्म कुछ नहीं कर पाए, जिसका नतीजा ये निकला कि कौरवों और पांडवों के बीच भयंकर युद्ध हुआ और न चाहते हुए भी भीष्म को कौरवों का साथ देना पड़ा।
 

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अर्जुन की प्रतिज्ञा
महाभारत के अनुसार, अर्जुन ने एक प्रतिज्ञा ली थी कि अगर को उन्हें अपने शस्त्र रखने को कहेगा तो वे उसका वध कर देंगे। युद्ध के दौरान एक बार क्रोधित होकर ये बात युधिष्ठिर ने उनसे कह दी। प्रतिज्ञाबद्ध होने के कारण जैसे ही अर्जुन ने युधिष्ठिर का वध करने के लिए तलवार उठाई श्रीकृष्ण ने उन्हें रोक लिया और कहा कि सम्मान करने योग्य व्यक्ति का अपमान करना उसका वध करने जैसा ही है। तब अर्जुन ने न चाहते हुए भी युधिष्ठिर को बहुत भला-बुरा कहा। 
 

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श्रीकृष्ण की प्रतिज्ञा 
कौरव-पांडवों का युद्ध शुरू होने से पहले श्रीकृष्ण ने शस्त्र न उठाने का वचन दिया था। जब युद्ध हो रहा था, उस समय अर्जुन प्रेमवश भीष्म के सामने अपनी पूर्ण योग्यता के साथ नहीं लड़ रहे थे। ये देखकर श्रीकृष्ण को बहुत क्रोध आया और न चाहते हुए भी अपनी प्रतिज्ञा को तोड़कर वे भीष्म को मारने रणभूमि में उतर पड़े। तब अर्जुन के कहने पर उन्होंने भीष्म का वध करने का विचार त्याग दिया।
 

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राजा शल्य का वचन
महाभारत के अनुसार, मद्रदेश के राजा शल्य पांडवों के मामा थे। जब वे युद्ध में पांडवों का साथ देने आ रहे थे, तब रास्ते में दुर्योधन ने उनके लिए आराम करने के लिए पड़ाव लगवा दिए और उनकी सेना के लिए भोजन की व्यवस्था भी की। इतनी अच्छी व्यवस्था देखकर राजा शल्य ने बिना सोच-समझे कह दिया कि जिसमें भी ये काम किया है, वे उसी के पक्ष में युद्ध करेंगे। बाद में जब उन्हें सच्चाई का चला तो वचनबद्ध होने के कारण उन्हें न चाहते हुए भी कौरव की ओर से युद्ध करना पड़ा।


 

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