Guru Purnima 2022: जहां श्रीकृष्ण ने पाई शिक्षा, आज ऐसा दिखाई देता है वो आश्रम, ये हैं Exclusive तस्वीरें

उज्जैन. मध्य प्रदेश के मध्य में स्थित है उज्जैन (Ujjain)। इस शहर को मध्य प्रदेश की धार्मिक राजधानी भी कहा जाता है क्योंकि यहां है 12 ज्योतिर्लिगों में से एक महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग (Mahakaal temple Ujjain), 52 शक्तिपीठों में से एक हरसिद्धि शक्तिपीठ (Harsiddhi Shaktipeeth)। उज्जैन में ही स्थित है सांदीपनि आश्रम। धर्म ग्रंथों के अनुसार, यहां भगवान श्रीकृष्ण शिक्षा प्राप्त करने उज्जैन आए थे। गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima 2022) के अवसर पर हम आपको बता रहे हैं, वर्तमान में गुरु सांदीपनि (Sandipani Ashram Ujjain) का आश्रम कैसा दिखाई देता है व इसके बारे में अन्य रोचक बातें। आगे देखिए गुरु सांदीपनि आश्रम की तस्वीरें… 
 

Manish Meharele | Published : Jul 12, 2022 1:38 PM IST
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Guru Purnima 2022: जहां श्रीकृष्ण ने पाई शिक्षा, आज ऐसा दिखाई देता है वो आश्रम, ये हैं Exclusive तस्वीरें

उज्जैन के अंकपात क्षेत्र में मंगलनाथ रोड पर गुरु सांदीपनि का आश्रम स्थित है। यहां रोज हजारों लोग उस स्थान को देखने आते हैं जहां स्वयं संसार को शिक्षा देने वाले भगवान श्रीकृष्ण को शिक्षा प्राप्त करने आना पड़ा। आश्रम चारों तरफ से ऊंची दीवारों से संरक्षित है और अंदर ही दाईं ओर एक कमरे में गुरु सांदीपनि की प्रतिमा स्थापित है और सामने की दीवार पर भगवान श्रीकृष्ण और बलराम की प्रतिमा है। ऐसा लगता है कि जैसे आज भी गुरु सांदीपनि अपने शिष्यों को शिक्षा प्रदान कर रहे हैं।
 

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आश्रम के अंदर ही एक कुंड है, जिसे गोमती कुंड कहते है। इसके बारे में कहा जाता है कि गुरु सांदीपनि रोज गोमती नदी में स्नान करने जाते थे। एक दिन श्रीकृष्ण ने अपने गुरु से कहा कि “आप रोज इतनी दूर गोमती नदी में स्नान करने जाते हैं, इससे आपको काफी कष्ट होता होगा। मैं इसी आश्रम में गोमती नदी प्रकट कर देता हूं, जिससे आप यहीं गोमती के जल में स्नान कर पुण्य प्राप्त कर सकते हैं। ऐसा कहकर श्रीकृष्ण ने गोमती नदी का स्मरण कर धरती पर एक बाण चलाया और वहां एक जलधारा फूट पड़ी। ये गोमती कुंड आज भी आश्रम में भक्तों के आकर्षण का केंद्र है।
 

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मान्यताओं के अनुसार, गुरु सांदीपनि काशी छोड़कर उज्जैन आए थे। उस समय यहां सिंहस्थ का मेला लगा हुआ था लेकिन सूखा और अकाल की वजह से यहां की जनता त्राहि-त्राहि कर रही थी। जब लोगों को पता चला कि काशी के प्रकांड विद्वान महर्षि सांदीपनि उज्जैन आए हैं तो सभी ने उनके पास जाकर अपनी समस्या बताई। तब गुरु सांदीपनि ने भगवान शिव को तपस्या से प्रसन्न कर उज्जयिनी के लोगों को इस समस्या से मुक्ति दिलाई।
 

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कंस का वध करने और पिता वसुदेव-माता देवकी को कारागार से मुक्त करवाने के बाद श्रीकृष्ण और बलराम कुछ दिनों तक मथुरा में ही रहे। इसके बाद पिता की आज्ञा से वे उज्जयिनी में गुरु सांदीपनि के आश्रम में शिक्षा प्राप्त करने आए। धर्म ग्रंथों के अनुसार, जब श्रीकृष्ण उज्जैन आए थे, तब उनकी उम्र मात्र 11 वर्ष और 7 दिन की थी। भगवान श्रीकृष्ण ने मात्र 64 दिनों में ही 16 विद्याओं और 64 कलाओं का ज्ञान प्राप्त कर लिया था।
 

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आश्रम परिसर में ही प्रभु वल्लभाचार्य की बैठक भी है। ये भक्तिकालीन सगुणधारा की कृष्णभक्ति शाखा के आधार स्तंभ एवं पुष्टिमार्ग के प्रणेता माने जाते हैं। देश भर में जहां-जहां ये रूके और धर्मोपदेश दिए, वहां-वहां इनके अनुयायियों ने इनकी बैठक यानी पूजा स्थान बनाए। माना जाता है कि गुरु सांदिपनि आश्रम में स्थित ये बैठक लगभग 500 साल पुरानी है।  

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वर्तमान समय में गुरु सांदीपनि आश्रम में और भी कई मंदिर हैं। इन सभी का अपना अलग-अलग महत्व है। ऐसा ही एक मंदिर है श्री सर्वेश्वर महादेव मंदिर। ये उज्जैन के 84 महादेव मंदिरों में से एक है। यानी इस मंदिर के दर्शन के बिना 84 महादेव यात्रा पूरी नहीं होती। सावन में यहा भक्तों की भीड़ उमड़ती है।

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धर्म ग्रंथों के अनुसार, श्रीकृष्ण ने मात्र 64 दिनों में ही 64 कलाओं का ज्ञान प्राप्त कर लिया। जानिए कौन-सी हैं वो 64 कलाएं…
1. ध्यान, प्राणायाम, आसन आदि की विधि
2. हाथी, घोड़ा, रथ आदि चलाना
3. मिट्टी और कांच के बर्तनों को साफ रखना
4. लकड़ी के सामान पर रंग-रोगन सफाई करना
5. धातु के बर्तनों को साफ करना औरउन पर पालिश करना
6. चित्र बनाना
7. तालाब, बावड़ी, कमान आदि बनाना
8. घड़ी, बाजों और दूसरी मशीनों को सुधारना
9. वस्त्र रंगना
10. ज्योतिष, व्याकरण सीखना
11. नाव, रथ, आदि बनाना
12. प्रसव विज्ञान
13. कपड़ा बुनना, सूत कांतना, धुनना
14. रत्नों की परीक्षा करना
15. वाद-विवाद, शास्त्रार्थ करना
16. रत्न एवं धातुएं बनाना
17. आभूषणों पर पालिश करना
18. चमड़े की मृदंग, ढोल नगारे, वीणा वगैरह तैयार करना
19. वाणिज्य
20. दूध दुहना
21. घी, मक्खन तपाना
22. कपड़े सीना
23. तैरना
24. घर को सुव्यवस्थित रखना
25. कपड़े धोना
26. केश-श्रृंगार
27. मृदु भाषण वाक्पटुता
28. बांस के टोकने, पंखे, चटाई आदि बनाना
29. कांच के बर्तन बनाना
30. बाग बगीचे लगाना, वृक्षारोपण, जल सिंचन करना
31. शस्त्रादि निर्माण
32. गादी गोदड़े-तकिये बनाना
33. तेल निकालना
34. वृक्ष पर चढ़ना
35. बच्चों का पालन पोषण करना
36. खेती करना
37. अपराधी को उचित दंड देना
38. भांति भांति के अक्षर लिखना
39. पान सुपारी बनाना 
40. प्रत्येक काम सोच समझकर करना
41. समयज्ञ बनना
42. रंगे हुए चांवलों से मंडल मांडना
43. सुगन्धित इत्र, तैल-धूपादि बनाना
44. हस्त कौशल-जादू के खेल से मनोरंजन करना
45. नृत्य
46. वादन
47. श्रृंगार
48. आभूषण,
49. हास्यादि हाव-भाव
50. शय्या-सजाना
51. शतरंज आदि कौतुकी क्रीड़ा करना
52. आसव, सिर्का, आचार, चटनी, मुरब्बे बनाना
53. कांटा-सूई आदि शरीर में से निकालना, आंख का कचरा कंकर निकालना,
54. पाचक चूर्ण बनाना
55. औषधि के पौधे लगाना
56. पाक बनाना
57. धातु, विष, उपविष के गुण दोष जानना
58. भभके से अर्क खीचना
59. रसायन-भस्मादि बनाना
60. लड़ाई लड़ना
61. कुश्ती लड़ना
62. निशाना लगाना
63. व्यूह प्रवेश-निर्गमन एवं रचना
64. हाथी, घोड़े, मेंढे सांड, लड़ाना
 

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आश्रम परिसर में गुरु सांदीपनि की मुख्य बैठक के ठीक सामने एक शिवलिंग स्थित है। इसके गर्भग्रह में चारों ओर देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं। इनमें से एक प्रतिमा कुबेरदेव की भी है जो अपने हाथों में धन की पोटली लिये हुए हैं। ऐसी मान्यता है कि श्रीकृष्ण और बलराम की गुरु दक्षिणा देने के लिए स्वयं कुबेरदेव यहां आए थे। ये प्रतिमा उसी का प्रतीक है।

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