ये हैं हनुमानजी के 7 प्रसिद्ध मंदिर, सभी से जुड़ी हैं अलग-अलग मान्यताएं और परंपराएं
उज्जैन. वैसे तो पूरे देश में में हनुमानजी के लाखों मंदिर हैं, लेकिन उनमें से कुछ मंदिरों की अपनी खास विशेषता है, जिसके चलते यहां हनुमानजी के दर्शनों के लिए भक्तों का सैलाब उमड़ता है। हनुमान जयंती (8 अप्रैल, बुधवार ) के मौके पर हम आपको ऐसे ही कुछ मंदिरों की जानकारी दे रहे हैं, जो इस प्रकार है-
बड़ा हनुमान मंदिर, प्रयागराज (उत्तर प्रदेश): प्रयागराज किले से सटे इस मंदिर में हनुमान की लेटी हुई प्रतिमा स्थापित है। यह सम्पूर्ण भारत का एकमात्र मंदिर है, जिसमें हनुमानजी की प्रतिमा लेटी हुई मुद्रा में हैं। यह प्रतिमा लगभग 20 फीट लंबी है। जब वर्षा के दिनों में बाढ़ आती है और यह सारा स्थान जलमग्न हो जाता है, तब हनुमानजी की इस मूर्ति को कहीं ओर ले जाकर सुरक्षित रखा जाता है। उपयुक्त समय आने पर इस प्रतिमा को पुन: यहीं लाकर स्थापित कर दिया जाता है।
हनुमानगढ़ी, अयोध्या (उत्तर प्रदेश): धर्म ग्रंथों के अनुसार, अयोध्या भगवान श्रीराम की जन्मस्थली है। यहां का सबसे प्रमुख श्रीहनुमान मंदिर हनुमानगढ़ी के नाम से प्रसिद्ध है। यह मंदिर राजद्वार के सामने ऊंचे टीले पर स्थित है। इसमें 60 सीढिय़ां चढऩे के बाद श्रीहनुमानजी का मंदिर आता है। यह मंदिर काफी बड़ा है। मंदिर के चारों ओर निवास योग्य स्थान बने हैं, जिनमें साधु-संत रहते हैं। हनुमानगढ़ी के दक्षिण में सुग्रीव टीला व अंगद टीला नामक स्थान हैं। इस मंदिर की स्थापना लगभग 300 साल पहले स्वामी श्रीअभयारामदासजी ने की थी।
सालासर हनुमान मंदिर, सालासर(राजस्थान): हनुमानजी का यह मंदिर राजस्थान के चूरू जिले में है। गांव का नाम सालासर है, इसलिए सालासर वाले बालाजी के नाम यह मंदिर प्रसिद्ध है। हनुमानजी की यह प्रतिमा दाड़ी व मूंछ से सुशोभित है। यह मंदिर पर्याप्त बड़ा है। चारों ओर यात्रियों के ठहरने के लिए धर्मशालाएं बनी हुई हैं। दूर-दूर से श्रद्धालु यहां अपनी मनोकामनाएं लेकर आते हैं और मनचाहा वरदान पाते हैं।
हनुमान धारा, चित्रकूट: उत्तर प्रदेश के सीतापुर नामक स्थान के समीप यह हनुमान मंदिर स्थापित है। सीतापुर से हनुमानधारा की दूरी तीन मील है। पहाड़ के सहारे हनुमानजी की एक विशाल मूर्ति के ठीक सिर पर दो जल के कुंड हैं, जो हमेशा जल से भरे रहते हैं। इस धारा का जल हनुमानजी को स्पर्श करता हुआ बहता है। इसीलिए इसे हनुमान धारा कहते हैं। इस स्थान के बारे में एक कथा इस प्रकार प्रसिद्ध है- श्रीराम के अयोध्या में राज्याभिषेक होने के बाद एक दिन हनुमानजी ने भगवान श्रीरामचंद्र से कहा- हे भगवन। मुझे कोई ऐसा स्थान बतलाइए, जहां लंका दहन से उत्पन्न मेरे शरीर का ताप मिट सके। तब भगवान श्रीराम ने हनुमानजी को यह स्थान बताया था।
संकटमोचन मंदिर, वाराणसी (उत्तर प्रदेश): यह मंदिर उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में है। इस मंदिर के चारों ओर एक छोटा सा वन है। मंदिर के प्रांगण में श्रीहनुमानजी की दिव्य प्रतिमा स्थापित है। इस मूर्ति में हनुमानजी दाएं हाथ में भक्तों को अभयदान कर रहे हैं एवं बायां हाथ उनके ह्रदय पर स्थित है। प्रत्येक कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को हनुमानजी की सूर्योदय के समय विशेष आरती एवं पूजन समारोह होता है। उसी प्रकार चैत्र पूर्णिमा के दिन यहां श्रीहनुमान जयंती महोत्सव होता है। इस अवसर पर श्रीहनुमानजी की बैठक की झांकी होती है और चार दिन तक रामायण सम्मेलन महोत्सव एवं संगीत सम्मेलन होता है।
बेट द्वारका, गुजरात: बेट द्वारका से चार मील की दूरी पर मकरध्वज के साथ में हनुमानजी की मूर्ति स्थापित है। कहते हैं कि पहले मकरध्वज की मूर्ति छोटी थी परंतु अब दोनों मूर्तियां एक सी ऊंची हो गई हैं। अहिरावण ने भगवान श्रीराम और लक्ष्मण को इसी स्थान पर छिपा कर रखा था। जब हनुमानजी श्रीराम-लक्ष्मण को लेने के लिए आए, तब उनका मकरध्वज के साथ घोर युद्ध हुआ। अंत में हनुमानजी ने उसे परास्त कर उसी की पूंछ से उसे बांध दिया। उनकी स्मृति में यह मूर्ति स्थापित है। कुछ धर्म ग्रंथों में मकरध्वज को हनुमानजी का पुत्र बताया गया है, जिसका जन्म हनुमानजी के पसीने द्वारा एक मछली से हुआ था।
बालाजी हनुमान मंदिर, मेहंदीपुर (राजस्थान): यह मंदिर जयपुर-बांदीकुई-बस मार्ग पर जयपुर से लगभग 65 किलोमीटर दूर है। जनश्रुति है कि यह मंदिर करीब 1 हजार साल पुराना है। यहां पर एक बहुत विशाल चट्टान में हनुमान जी की आकृति स्वयं ही उभर आई थी। इसे ही हनुमान जी का स्वरूप माना जाता है। कहा जाता है कि मुगल साम्राज्य में इस मंदिर को तोडऩे के अनेक प्रयास हुए परंतु चमत्कारी रूप से यह मंदिर को कोई नुकसान नहीं हुआ। इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है कि यहां ऊपरी बाधाओं के निवारण के लिए आने वालों का तांता लगा रहता है।