ग्रंथों में रावण की पत्नी सहित इन 5 महिलाओं को कहा गया है पंचकन्या, जानिए कौन हैं ये और इनसे क्या सीखें?

उज्जैन. धर्म ग्रंथों के अनुसार, शक्ति के बिना शिव अधूरे हैं। आधुनिक संदर्भ में इसे देखें तो बिना नारी के नर का अस्तित्व ही नहीं है। स्त्री और पुरुष मिलकर ही सृष्टि की रचना और पालन करते हैं। इसमें से किसी एक को कम या ज्यादा नहीं आंका जा सकता। यही कारण है कि हिंदू धर्म में देवताओं के साथ-साथ देवियों को पूजे जाने की भी परंपरा है। धर्म ग्रंथों में ऐसी कई महिलाओं के बारे में बताया गया है, जिनका जीवन आदर्श के रूप में देखा जाता है। शास्त्रों में 5 ऐसी महिलाएं बताई गई हैं, जिनका विवाह हुआ था, लेकिन वे कन्याएं मानी गई हैं। इन पांच कन्याओं में 3 त्रेतायुग में और 2 द्वापर युग की महिलाएं शामिल हैं। त्रेतायुग यानी रामायण में अहिल्या, मंदोदरी, तारा और द्वापर युग यानी महाभारत में द्रौपदी, कुंती को माना गया है कन्या। 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (International Women's Day 2022) के मौके पर जानिए इन पंचकन्याओं से जुड़ी खास बातें और लाइफ मैनेजमेंट टिप्स...

 

Asianet News Hindi | Published : Mar 7, 2022 8:02 AM IST

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ग्रंथों में रावण की पत्नी सहित इन 5 महिलाओं को कहा गया है पंचकन्या, जानिए कौन हैं ये और इनसे क्या सीखें?

अहिल्या गौतम ऋषि की पत्नी थीं। उन्हें चीर यौवन रहने का वरदान ब्रह्माजी ने दिया था। देवराज इंद्र अहिल्या की सुंदरता पर मोहित हो गए थे। इंद्र ने छल करके गौतम ऋषि का रूप धारण किया और अहिल्या की सतीत्व भंग कर दिया था। क्रोधित होकर गौतम ऋषि ने अहिल्या को पत्थर हो जाने का श्राप दिया। श्रीराम के चरण लगते ही पत्थर बनी अहिल्या फिर से इंसान रूप में आ गई थीं।

लाइफ मैनेजमेंट
अहिल्या निर्दोष थी, लेकिन फिर भी उन्होंने अपने पति का श्राप सहर्ष स्वीकार कर लिया ताकि उनकी कही बात मिथ्या न साबित हो। उन्होंने कई युगों तक पत्थर बनकर श्रीराम का इंतजार किया और धैर्य का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया। महिलाओं में धैर्य आवश्यक रूप से होना चाहिए। तभी वे समाज को नई दिशा दे सकती हैं।

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महाभारत में स्वयंवर में द्रौपदी का विवाह अर्जुन से हुआ था, लेकिन बाद में वह पांचों पांडवों की पत्नी बन गई। इसके बाद द्रौपदी एक-एक साल एक-एक पांडव के साथ रहती थीं। कौरवों की भरी सभा में दुर्योधन और दुशासन ने द्रौपदी का चीरहरण किया था। इस अधर्म की वजह से पूरे कौरव वंश का नाश हो गया।

लाइफ मैनेजमेंट
द्रौपदी के एक नहीं पांच पति थे और सभी आपस में भाई थे। ऐसे में किसी भी स्त्री के लिए पति धर्म का पालन करना बहुत ही मुश्किल था, लेकिन द्रौपदी ने इसे पूरी निष्ठा के साथ निभाया। महल में महारानी का जीवन हो या वन में वनवासी का। द्रौपदी ने हर परिस्थिति में अपने पति धर्म का पालन किया। 
 

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महाभारत के अनुसार, कुंती महाराज पांडु की पत्नी पांडवों की माता थीं। जब पांडव बाल्यकाल में थे, तभी उनके पिता का निधन हो गया। उसके बाद भी वन में रहते हुए कुंती ने अपने बच्चों को धर्म का ज्ञान दिया और नैतिक शिक्षा का पाठ पढ़ाया। इसी परवरिश की वजह से सभी पांडवों को श्रीकृष्ण की विशेष कृपा मिली। अभाव में रहते हुए भी कुंती ने हमेशा अपने बच्चों को धर्म के मार्ग पर चलने की ही शिक्षा दी।

लाइफ मैनेजमेंट
बच्चों की पहली गुरु उनकी मां ही होती है, ये बात कुंती ने सिद्ध की। जब पांडु की मृत्यु हुई तब उनके पुत्र बहुत छोटे थे और सभी वन में रहते थे। कुंती ने अकेले ही उनका पालन-पोषण किया और समाज के सामने एक आदर्श प्रस्तुत किया।
 

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मंदोदरी रावण की पत्नी थीं। उन्हें रावण की हर बुराई का ज्ञान था लेकिन फिर उनके मन में रावण के लिए उसका प्रेम अटूट था। मंदोदरी धर्म जानती थी, इसीलिए वह रावण को बचाने की कोशिश करती रहीं। रावण अहंकार की वजह से मंदोदरी की बातें नहीं मानता था। अंत तक रावण मंदोदरी की नहीं माना और श्रीराम के हाथों उसका वध हो गया। 

लाइफ मैनेजमेंट
मंदोदरी राक्षस कुल की थी, जहां अधर्म का बोलबाला था, लेकिन फिर भी उनका मन हमेशा धर्म में ही लगा रहता था। उन्होंने रावण से भी अधर्म के मार्ग से हटने को कहा, लेकिन रावण नहीं माना। मंदोदरी ने न सिर्फ पत्नी धर्म बल्कि ईश्वर धर्म का भी पूरी तरह से पालन किया।
 

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तारा वानरराज बाली की पत्नी थी। जब बाली ने अपने भाई सुग्रीव को राज्य से निकाल दिया तो तारा ने उसे समझाने की कोशिश की। बाद में जब सुग्रीव ने भगवान श्रीराम का आश्रय पाकर बाली को ललकारा तो भी तारा ने उसे समझाने की कोशिश की, लेकिन, बाली ने उसकी बात नहीं मानी। श्रीराम के हाथों बाली मारा गया तो तारा दुखी हो गई थी। तब श्रीराम ने उसे धर्म-अधर्म की नीति का ज्ञान दिया।

लाइफ मैनेजमेंट
श्रीराम ने तारा के पति बाली का वध कर दिया, लेकिन फिर भी तारा ने उन्हें क्षमा कर दिया। साथ ही अपने पुत्र अंगद को भी उनकी सेवा में समर्पित कर दिया, क्योंकि तारा में क्षमा और धर्म के प्रति निष्ठा दोनों ही गुण थे।
 

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