इनके एक थप्पड़ से एक्ट्रेस को मार गया था लकवा, दो दिन तक रही थी कोमा में

1 अगस्त, 1913 को टेक्सटाइल मिल मजदूर के घर जन्मे भगवान दादा का पूरा नाम भगवान आभाजी पालव था। भगवान दादा की पहली फिल्म 1934 में आई 'हिम्मत-ए-मर्दां' थी।

Asianet News Hindi | Published : Aug 1, 2019 7:31 AM IST

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इनके एक थप्पड़ से एक्ट्रेस को मार गया था लकवा, दो दिन तक रही थी कोमा में
इंडियन फिल्मों के पहले डांसिंग और एक्शन स्टार भगवान दादा को बॉलीवुड का भगवान भी कहा जाता है। फिल्म 'अलबेला' (1951) के गीत 'शोला जो भड़के' से भगवान दादा काफी पॉपुलर हुए थे। 1 अगस्त, 1913 को टेक्सटाइल मिल मजदूर के घर जन्मे भगवान दादा का पूरा नाम भगवान आभाजी पालव था। उनका रुझान शुरू से ही एक्टिंग की ओर था। शुरुआती दिनों में उन्होंने मजदूरी भी की, लेकिन फिल्मों का मोह छोड़ नहीं सके। भगवान दादा के थप्पड़ से ललिता पवार को हो गया था फेशिअल पैरालिसिस...
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भगवान दादा की पहली फिल्म 1934 में आई 'हिम्मत-ए-मर्दां' थी। इसमें उनकी हीरोइन ललिता पवार थीं, जो उस दौर की ग्लैमरस एक्ट्रेस में से एक थीं। फिल्म के सेट पर को-एक्टर भगवान दादा ने उन्हें ऐसा थप्पड़ मारा कि वो दो दिन तक कोमा में रहीं। दरअसल, भगवान दादा ने ललिता को इतनी जोर से थप्पड़ मारा था कि वो फर्श पर गिर पड़ीं और उन्हें फेशिअल पैरालिसिस हो गया। इसके बाद चार साल तक उनका इलाज चला और वो पूरी तरह से फिल्मों से दूर हो गईं। इसके साथ ही उनका ग्लैमरस करियर भी बर्बाद हो गया।
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हिंदी फिल्मों में लाए डांस का अलग स्टाइल... हिन्दी फ़िल्मों में डांस का एक अलग ही स्टाइल शुरू करने वाले भगवान दादा ऐसे 'अलबेला' सितारे थे, जिनसे अमिताभ बच्चन सहित आज की पीढ़ी तक के कई एक्टर्स मोटिवेट हुए। मगर कभी सितारों से अपने इशारों पर काम कराने वाले भगवान दादा का करियर एक बार जो फिसला तो फिर फिसलता ही गया। आर्थिक तंगी का हाल यह था कि उन्हें रोजी-रोटी के लिए छोटे-छोटे रोल तक करने पड़े।
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- म्यूजिक डायरेक्टर सी. रामचंद्र उनके बेहद अच्छे दोस्त थे। उन्होंने ही भगवान दादा को पहला ब्रेक भी दिया था। भगवान दादा ने 1949 में भारत की पहली हॉरर मूवी 'भेड़ी बंगला' बनाई थी। भगवान दादा शेवरले कार के बहुत बड़े फैन थे। यही वजह थी कि उन्होंने 'शेवरले' टाइटल वाली फिल्म में भी काम किया था।
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- चेंबूर के आशा स्टूडियो कैंपस में भगवान दादा का एक बंगला था, लेकिन उसमें वो कुछ ही दिन रहे। भगवान दादा अपने मरते दम तक दादर स्थित अपने पुराने मकान में ही रहे। दरअसल उन्हें यहां रहना बेहद पसंद था। भगवान दादा द्वारा बनाई गई एक फिल्म के सीन में उन्हें नोटों की बारिश दिखानी थी। इसके लिए उन्होंने असली नोटों का ही इस्तेमाल किया था।
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