30 रुपए लेकर हीरो बनने आया था ये एक्टर, एक एक्ट्रेस पर हुआ था फिदा लेकिन शादी में आड़े आया धर्म

मुंबई. देव आनंद की आज 8वीं डेथ एनिवर्सरी है। पंजाब के गुरदासपुर में जन्मे देव आनंद की मौत 3 दिसंबर, 2011 को लंदन में हार्ट अटैक की वजह से हुई थी। यूं तो उनकी लाइफ से जुड़े कई किस्से सुनने को मिले हैं। लेकिन अभी भी कुछ किस्से ऐसे है जिन्हें कम ही लोग जानते हैं। ग्रैजुएट करने के बाद देव आनंद आगे पढ़ना चाहते थे। लेकिन पिता ने उन्हें आगे पढ़ाने से मना कर दिया था। पिता ने कहा था वे आगे पढ़ना चाहते हैं तो नौकरी कर लें। यहीं से उनका बॉलीवुड का सफर भी शुरू हो गया। 1943 में वे मुंबई पहुंचे। तब उनके पास मात्र 30 रुपए थे और रहने के लिए कोई ठिकाना नहीं था। देव आनंद ने मुंबई पहुंचकर रेलवे स्टेशन के समीप ही एक सस्ते से होटल में कमरा किराए पर लिया। 

Asianet News Hindi | Published : Dec 3, 2019 8:14 AM IST

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30 रुपए लेकर हीरो बनने आया था ये एक्टर, एक एक्ट्रेस पर हुआ था फिदा लेकिन शादी में आड़े आया धर्म
लाहौर कॉलेज में पढ़ाई के दौरान देव आनंद, एक एंग्लो इंडियन लड़की जिसका नाम ऊषा चोपड़ा के प्रति अट्रैक्ट हुए थे। हालांकि, इंडस्ट्री में उनके अफेयर के किस्से भी कम नहीं थे। सुरैया से उनका अफेयर सबसे ज्यादा चर्चा में रहा। हालांकि, दोनों की शादी सिर्फ अलग-अलग धर्मों की वजह से नहीं हो पाई थी। इसके अलावा देव आनंद का नाम जीनत अमान, टीना मुनीम के साथ भी जोड़ा गया। 1954 में उन्होंने अपने जमाने की मशहूर एक्ट्रेस कल्पना कार्तिक से शादी की थी।
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बता दें कि देव आनंद के ड्रेसिंग सेंस सभी को प्रभावित करता था। उनके पास तकरीबन 800 जैकेट थी और उनका फेरवेट कलर येलो, ब्राउन और ब्लैक था। वे लाल रंग कभी कभार ही पहनना पसंद करते थे। व्हाइट शर्ट और ब्लैक कोट के फैशन को देव आनंद ने पॉपुलर बनाया था। इसकी वजह बेहद दिलचस्प और थोड़ी अजीब भी थी। दरअसल कुछ लड़कियों के उनके काले कोट पहनने के दौरान आत्महत्या की घटनाएं सामने आईं। इस घटना के बाद कोर्ट ने उनके ब्लैक कोट को पहन कर घूमने पर पाबंदी लगा दी थी।
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'जाल' (1952) फिल्म की शूटिंग के लिए जब देव आनंद और गीता बाली ट्रैवल कर रहे थे तो दोनों का कार एक्सीडेंट हो गया था। इसमें गीता के माथे पर चोट लगी थी और कई फैक्चर भी हुए थे। बता दें कि देव आनंद ने अपनी लाइफ में कई फिल्मों में अभिनय किया, लेकिन 'गाइड' एकमात्र ऐसी फिल्म थी, जिसके अंत में उनकी मौत हो जाती है। इसके अलावा उन्हें किसी भी फिल्म में मरा हुआ नहीं दिखाया गया।
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एक बार वाकया है, देव आनंद फिल्म टैक्सी ड्राइवर (1954) की शूटिंग कर रहे थे। फिल्म के सीन के हिसाब ने उन्हें कुछ लोगों को अपनी टैक्सी से ताज महल होटल के सामने उतारना था। फिल्म का शॉट शुरू हुआ और देव आनंद ने टैक्सी होटल के सामने आकर रोक दी ताकि पेसेंजर उतर सके। शॉट खत्म होते ही एक फॉरेनर उनकी टैक्सी में बैठ गया और उन्हें रेड लाइट एरिया ले जाने को कहा। देव साहब उसे हैरानी से देखने लगे। इतने में क्रू मेंबर ने आकर उस फॉरेनर को बताया कि वो एक्टर है और यहां फिल्म की शूटिंग चल रही है।
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देव आनंद ने 'जिद्दी' (1948), 'जीत' (1949), 'दो सितारे' (1951), 'तमाशा' (1952), 'इंसानियत' (1955), 'पॉकेट मार' (1956), 'काला पानी' (1958), 'काला बाजार' (1960), 'जब प्यार किसी से होता है' (1961), 'तेरे घर के सामने' (1963), 'प्रेम पुजारी' (1970), 'जॉनी मेरा नाम' (1970), 'मन पसंद' (1980) सहित कई फिल्मों में काम किया है।
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देव आनंद को एक्टिंग के लिए दो बार फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उनको सबसे पहला फिल्म फेयर पुरस्कार 1950 में प्रदर्शित फिल्म 'काला पानी' के लिए दिया गया। इसके बाद 1965 में देव आनंद को फिल्म 'गाइड' के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 2001 में उनको पद्मभूषण सम्मान प्राप्त हुआ। 2002 में उनको दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
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