Rocketry: The Nambi Effect- मारपीट से अमानवीय कृत्य तक, पढ़ें नम्बी नारायणन की दिल दहलाने वाली कहानी

Published : Jul 01, 2022, 07:30 AM IST

एंटरटेनमेंट डेस्क. आर माधवन (R. Madhavan) स्टारर बहुप्रतीक्षित फिल्म 'रॉकेट्री : द नम्बी इफेक्ट' (Rocketry: The Nambi Effect) सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। फिल्म इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (ISRO) के पूर्व रॉकेट साइंटिस्ट नम्बी नारायणन (Nambi Narayanan) की बायोपिक है। लेकिन क्या आप यह जानते हैं कि 1994 में नम्बी नारायणन के साथ ऐसा कुछ घटित हुआ था कि उनकी जिंदगी हमेशा के लिए बदल गई। फिल्म की रिलीज के मौके पर आपको नम्बी नारायणन के साथ घटी उसी घटना के बारे में बता रहे हैं...

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 Rocketry: The Nambi Effect- मारपीट से अमानवीय कृत्य तक, पढ़ें नम्बी नारायणन की दिल दहलाने वाली कहानी

यह 1994 में तब की बात है, जब नम्बी नारायणन ISRO के क्रायोजेनिक रॉकेट इंजन प्रोजेक्ट को लीड कर रहे थे और रूस से तकनीक हासिल कर रहे थे। 30 नवम्बर 1994 को उनके घर तीन पुलिसवाले पहुंचे। उस वक्त नम्बी को बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि उनके साथ क्या होने वाला है। उन्होंने पुलिसवालों से पहला सवाल पूछा, 'क्या मैं गिरफ्तार हो गया हूं।' जवाब में पुलिसवालों ने कहा था, 'नहीं'। 

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मामले से पूरी तरह अनजान नम्बी को कोर्ट ले जाया गया और फिर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद मीडिया में खबर आग की तरह फैली और उन्हें देशद्रोही तक बता दिया गया। उन पर ISRO को धोखा देने, मालदीव की दो महिलाओं को रक्षा विभाग से जुड़ी जानकारी लीक करने और पाकिस्तान को रॉकेट तकनीक बेचने का आरोप लगाया गया।

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नम्बी को भारत के आधिकारिक गुप्त कानून के उलंघन और भ्रष्टाचार जैसे आरोपों के अंतर्गत 11 दिन की ज्यूडिशियल कस्टडी में भेजा गया। कई रिपोर्ट्स में दावा किया जाता है कि जांच अधिकारियों के कस्टडी के दौरान नम्बी नारायणन को मारा-पीटा, उन्हें बिस्तर पर लिटाकर उनके साथ अमानवीय कृत्य किए गए। उन्हें 30 घंटे तक सीधे खड़े रहकर सवालों के जवाब देने के लिए मजबूर किया गया। नम्बी नारायण का लाइ डिटेक्टर टेस्ट भी किया गया। लेकिन बताया जाता है कि इसकी रिपोर्ट कभी अदालत तक नहीं पहुंची।

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नम्बी की गिरफ्तारी के एक महीने बाद केस केरला इंटेलिजेंस ब्यूरो से सेंट्रल ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टीगेशन (CBI) के पास पहुंचा और 19 जनवरी 1995 को उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया। 1996 में CBI ने उन पर लगे आरोपों को झूठा करार दिया। इस दौरान ISRO द्वारा भी एक आंतरिक जांच की गई और पाया गया कि क्रायोजेनिक इंजन की कोई भी ड्राइंग गायब नहीं थी।

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सीबीआई ने इस मामले में 104 पेज की चार्जशीट दाखिल की थी, जिसमें उन्हें नम्बी के विरुद्ध कोई सबूत नहीं मिला था। 1998 में केरल सरकार ने इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाकर केस को फिर से ओपन कराने की कोशिश की थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने याचिका ठुकरा दी थी।

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क्लीन चिट मिलने के बाद नम्बी ने ISRO में एडमिन के तौर पर काम करना शुरू कर दिया था। 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने मामले की साजिश की जांच करने का आदेश दिया था।

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खुद नम्बी ने भी केरल सरकार के खिलाफ उन्हें झूठे केस में फंसाने का मुकदमा दर्ज कराया था। उन्हें 50 लाख रुपए का मुआवजा दिया गया। 2019 में केरल सरकार ने नम्बी नारायणन को उनकी गलत गिरफ्तारी और उनके उत्पीड़न के लिए अतिरिक्त एक करोड़ रुपए देने का एलान किया।

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नम्बी के खिलाफ साजिश किसने की थी, इसका पता आज तक नहीं चल पाया है लेकिन इस घटना से उनका सम्मान, गरिमा और ख़ुशी सबकुछ खो गया। नम्बी ने अपने मेमॉयर में पहली बार कोर्ट में पेश होने का दर्द बयां करते हुए लिखा है, "मैं सदमे में था और ऐसा लग रहा था, जैसे मैं कोई फिल्म देख रहा हूं और उसका किरदार मैं ही हूं।"

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