अमेरिकी कंपनी ने किया था अपमान, 9 साल बाद टाटा ने ऐसे लिया 'बदला'
मुंबई: साइरस मिस्त्री का विवाद एक बार फिर चर्चा में है। दरअसल, 2012 में रतन टाटा के रिटायर होने के बाद मिस्त्री को उनकी जगह चेयरमैन बनाया गया था, मगर 2016 में बड़े निवेशकों और बोर्ड को मिस्त्री पर भरोसा नहीं रह गया था। हटाए जाने के बाद मिस्त्री ने टाटा नेशनल कंपनी लॉ अपीलीय ट्रिब्यूनल (एनसीएलएटी) में याचिका दायर कर खुद को हटाए जाने को चुनौती दी थी। अब एनसीएलएटी ने इसी फैसला देते हुए मिस्त्री को हटाए जाने को गलत कहा है।
Asianet News Hindi | Published : Dec 19, 2019 5:49 AM IST / Updated: Dec 19 2019, 11:25 AM IST
कारोबारी जगत में ये विवाद एक लंबे समय से चर्चा में रहा है। कहा यह भी गया कि रतन टाटा के साथ कथित विवाद की वजह से मिस्त्री को हटाया गया था। बहरहाल, बेहद शांत और गरिमाशाली नजर आने वाले रतन टाटा के बारे में कहा यह भी जाता है कि वो कारोबारी दुश्मनी भी अलग अंदाज में निभाते हैं। पांच साल पहले टाटा ग्रुप के एक अफसर ने रतन टाटा से जुड़े ऐसे ही एक कारोबारी किस्से का जिक्र किया था।
किस्से के मुताबिक मामला साल 1999 का है। रतन ऑटो बिजनेस बेचने के लिए 'फोर्ड' के पास गए थे। रतन टाटा और उनकी टीम इस डील की कोशिश में अपमान का सामना करना पड़ा था। हालांकि नौ साला बाद इस कारोबारी दिग्गज ने अपने तरीके से फोर्ड से बदला ले लिया था। वक्त ने टाटा समूह को ऐसा मौका दिया कि उन्होंने अमेरिकी कंपनी के सबसे अहम ब्रांड जगुआर और लैंड रोवर (JLR) को खरीद लिया। फोर्ड ने इस कारोबारी डील को टाटा की ओर से किया गया अहसान भी करार दिया था।
टाटा ग्रुप के अफसर प्रवीण काडले ने एक कार्यक्रम में किस्सा सुनाते हुए कहा था कि 1999 में जब रतन टाटा ऑटो बिजनेस डील के लिए गए थे उन्हें बेइज्जती का सामना करना पड़ा। रतन टाटा वापसी की उड़ान में काफी उदास भी दिखे। लेकिन नौ साल 9 साल बाद कारोबारी जगत के हालात बदल गए। 2008 में वैश्विक मंदी के दौरान फोर्ड दिवालिया होने के कगार तक पहुंच गया।
वैश्विक मंदी के वक्त टाटा ग्रुप ने फोर्ड से जगुआर लैंड रोवर का ब्रांड 2.3 अरब डॉलर में खरीदने की पेशकश की। डील पक्की हो गई। इस बड़े कारोबारी अधिग्रहण के कुछ साल बाद जेएलआर ब्रांड को मजबूती मिली। बाद में यह टाटा मोटर्स का अहम ब्रांड भी बना।
रतन टाटा, टाटा संस के पांचवें चेयरमैन थे। 2012 में वो अपने पद से रिटायर हुए थे। उनके रिटायर होने के बाद साइरस मिस्त्री उनकी जगह छठा चेयरमैन बनाया गया था।
हालांकि 2016 में साइरस मिस्त्री को लेकर विवाद बढ़ें। कहा जाता है कि चार साल के दौरान मिस्त्री के काम करने के रवैये से ग्रुप के बड़े निवेशक और बोर्ड खुश नहीं था। दबी जुबान यह भी कहा जाता है कि खुद रतन टाटा भी मिस्त्री के काम से संतुष्ट नहीं थे। तमाम चीजों को लेकर दोनों के बीच विवाद होने लगे।
2016 में इसका नतीजा यह हुआ कि मिस्त्री को उनके पद से हटा दिया गया। ये मामला उस वक्त काफी सुर्खियों में रहा था। इसी मामले को लेकर मिस्त्री ने एनसीएलएटी में अपील की थी। अब फैसला मिस्त्री के पक्ष में आया है। ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा कि रतन टाटा-मिस्त्री विवाद आगे कहां तक जाता है।