जवाब: इंसानों में गुदगुदी हार्मोंस और नर्व सिस्टम के कारण होती हैं। अमरीका की मेरीलैंड यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर रॉबर्ट प्रोविन का कहना है कि गुदगुदी होने पर हंसी का आना विज्ञान में रिसर्च का एक बड़ा विषय रहा है। दो तरह की गुदगुदी होती है।
गुदगुदी का एक प्रकार है नाइस्मेसिस- इसमें बदन के कुछ ख़ास हिस्सों को धीरे-धीरे सहलाने पर आपको गुदगुदी होती है। जैसे पैर के निचले हिस्से को सहलाने पर या गर्दन पर उंगलियां फेरने से गुदगुदी महसूस होती है।
दूसरे प्रकार का नाम है गार्गालिसिस- इस गुदगुदी का एहसास स्तनधारी जीवों को ही होता है। इसमें खुलकर हंसी आती है, गुदगुदी का एहसास त्वचा में छुपी उन नसों को छूने से होता है जिन पर हम किसी भी चीज़ के लगने को महसूस करते हैं जबकि खिलखिलाकर हंसना एक सामाजिक बर्ताव है। 2009 में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक़ इंसान के हंसने की सलाहियत के तार हमारे दूसरे रिश्तेदारों यानी प्राइमेट्स के हंसने से जुड़े हैं।
जानवरों को भी होती है गुदगुदी?
इस रिसर्च में बंदरों के कुनबे के बहुत से सदस्यों की अलग-अलग आवाज़ों को रिकॉर्ड किया गया। कुछ आवाज़ें सिर्फ़ एक शोर की तरह सुनाई दीं जबकि कुछ आवाज़ें इंसान के हंसने की आवाज़ से मेल खाती थीं। इनमें गोरिल्ला और बोनोबो बंदरों की आवाज़ें इंसानों के सबसे क़रीब पाई गईं। लेकिन इससे सिर्फ़ एक अच्छा-सा एहसास होता है। खुलकर हंसी नहीं आती, इस गुदगुदी का एहसास छिपकली जैसे रेंगने वाले जीवों को भी होता है।