मूंगफली बेच पाई पाई जोड़ पिता ने भरी थी कोचिंग की फीस, दिव्यांग हुई बेटी फिर भी बनी IAS अफसर

नई दिल्ली. शरीर से अपंग लोगों को बेकार और बोझ समझा जाता है। समाज में उन्हें सिर्फ लोगों की आचोलना, फूहड़ मजाक और दया ही मिलती है। इसके साथ ही अगर वो बच्चा गरीब हो तो ये दुख और बढ़ जाता है। ऐसे ही सड़कों पर मूंगफली बेचने वाले एक गरीब की बेटी ने अपनी शरीर की हर कमी को मुंह चिढ़ाकर देश की बड़ी अधिकारी के पद को पाया है। आज हम आपको आईएएस उम्‍मुल खेर की कहानी सुना रहे हैं जिन्हें 16 फ्रैक्चर और 8 ऑपरेशन भी हरा नहीं पाए और उन्होंने आईएस बनकर दिखाया। आइए जानते हैं पिता के सिर का ताज बन चुकी इस बेटी के संघर्ष की कहानी- 

Asianet News Hindi | Published : Feb 6, 2020 6:30 AM IST / Updated: Feb 06 2020, 12:04 PM IST
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मूंगफली बेच पाई पाई जोड़ पिता ने भरी थी कोचिंग की फीस, दिव्यांग हुई बेटी फिर भी बनी IAS अफसर
राजस्थान के पाली की रहने वाली उम्मुल खेर ने की जिंदगी में दुख ही दुख थे। कभी पढ़ने के लिए तो कभी अपने जीवन को बचाए रखने के लिए। उनके पिता सड़कों पर रेहड़ी लगाकार मूंगफली बेचते थे। पर पिता चाहते थे कि बिटिया पढ़े और पढ़ लिखकर नौकरी करे। इसलिए वो उसे कुछ भी कर पढ़ा रहे थे।
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परिवार में सबकुछ ठीक था इसी बीच उम्मुल की मां का देहांत हो गया। पिता ने बच्ची के लिए दूसरी शादी कर ली लेकिन सौतली मां ने बिटिया को कभी नहीं अपनाया। पिता बेटी को पढ़ा रहे थे और सौतली मां उसे पीटती रहती थी।
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हालात ये हो गए कि उम्मुल को घर छोड़कर कभी झुग्गियों में तो कभी सड़क पर रहना पड़ा। इतना ही नहीं मां के मरने के बाद सौतली मां के जुल्म और आठवीं के बाद पढ़ाई न करने के फैसले ने उन्हें घर से अलग रहने पर मजबूर कर दिया। उनके लिए जीवन में पढ़ना और खुद के पैरों पर खड़े होने के आगे जीवन में कुछ नहीं चाहिए था।
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उम्मुल 28 साल की उम्र में 16 बार फ्रैक्चर और 8 बार ऑपरेशन झेल चुकी हैं। 2012 में हुए एक्सीडेंट में वह ऐसी घायल हुईं की व्हीलचेयर पर आ गईं। वह इससे घबराई नहीं बल्कि अपने लक्ष्य की ओर बढ़ती रहीं। उम्मुल का बचपन संघर्ष से भरा था। 2001 में झुग्गियों के टूटने के बाद उनका परिवार त्रिलोकपुरी में आ गया।
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सौतेली मां का व्यवहार अच्छा नहीं था तो वह घर छोड़ कर किराए के मकान में रहने लगीं। और अपना खर्च निकालने के लिए ट्यूशन पढ़ाने लगीं। ट्यूशन पढ़ाने पर फीस के तौर पर उन्हें मात्र 50 रुपये ही मिलते थे। पर उन्होंने हार नहीं मानी।
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इसी बीच 2012 में उनका एक्सीडेंट हुआ और वे अस्पताल में बिस्तर पर आ गईं। उनके शरीर में गहरी चोटें आई उनका ट्यूशन छूट गया। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और जेएनयू के इंटरनेशनल स्टडीज स्कूल से पहले एमए किया और फिर इसी यूनिवर्सिटी में एमफिल/पीएचडी कोर्स में एडमिशन ले लिया।
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2013 में उम्मुल जेआरएफ क्रैक किया। जिसके बाद उन्हें 25,000 रुपए प्रति महीना मिलने लगा। यहीं से एमफिल के बाद वो पीएचडी करने लगीं और इसी दौरान उन्होंने आईएएस भी क्रैक किया।
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उम्मुल को अब तक 16 फ्रैक्चर हो चुके हैं और 8 बार उनकी सर्जरी हो चुकी है। बावजूद इसके उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा दी और खुद को साबित कर दिया। उनके जूनुन के आगे अपंगता ने घुटने टेक दिए और 2016 में पहले प्रयास में ही यूपीएससी में 420वां रैक पाने वाली कैंडिडेट बनीं। उम्मुल ने आईएएस बन न सिर्फ अपने पिता का नाम रोशन किया बल्कि वो हजार मुश्किलों को पार दूसरों के लिए प्रेरणा बन गईं।
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