कभी लोग देते थे ताने...लड़की है बाहर खेलने क्यों भेजते हो, आज वही बन गई इंटरनेशनल स्टार

Published : Feb 12, 2020, 02:48 PM IST

करियर डेस्क.  फरवरी में CBSE बोर्ड के साथ अन्य बोर्ड के एग्जाम भी स्टार्ट हो जाते हैं। इसके साथ ही बैंक, रेलवे, इंजीनियरिंग, IAS-IPS के साथ ही खेल के क्षेत्र में तैयारी करने वाले तैयारी के सही टिप्स को लेकर कन्फ्यूज रहते है। यह भी देखा जाता है कि रिजल्ट को लेकर बहुत सारे छात्र-छात्राएं व खिलाड़ी निराशा और हताशा की तरफ बढ़ जाते हैं। इन सबको ध्यान में रखते हुए एशिया नेट न्यूज हिंदी ''कर EXAM फतह...'' सीरीज चला रहा है। इसमें हम अलग-अलग सब्जेक्ट के एक्सपर्ट, IAS-IPS के साथ अन्य बड़े स्तर पर बैठे ऑफीसर्स की सक्सेज स्टोरीज, डॉक्टर्स के बेहतरीन टिप्स के साथ ही खेल की दुनिया में नाम रोशन करने वाले लोगों से बात कर उनकी सक्सेज टिप्स बताएंगे। इस कड़ी में आज हम भारतीय महिला क्रिकेट टीम की स्टार खिलाड़ी एकता सिंह बिष्ट के संघर्षों की कहानी शेयर करने जा रहे हैं। इसके लिए हमने एकता के इकलौते भाई विनीत सिंह बिष्ट से बात की। 

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कभी लोग देते थे ताने...लड़की है बाहर खेलने क्यों भेजते हो, आज वही बन गई इंटरनेशनल स्टार
एकता सिंह बिष्ट मूलतः उत्तराखंड के अल्मोड़ा की रहने वाली हैं। उनके पिता कुंदन सिंह बिष्ट 1988 में आर्मी से हवलदार पद से रिटायर हुए थे। एकता दो बहनो व एक भाई में सबसे छोटी हैं। उनसे बड़ी बहन श्वेता बिष्ट एक कालेज में जॉब करती हैं।
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एकता के भाई विनीत बताते हैं "पापा 1988 में रिटायर हुए थे। उस समय आर्मी में पेंशन मात्र 1500 रूपए महीने थी। उस पैसे को दोनों बहनो की शादी के लिए बचाकर रखा जाता था। घर का खर्च चलाने में मुश्किल होने लगी तो पापा ने घर से नजदीक ही एक चाय की दुकान खोल ली। जिसके बाद उसी से होने वाली कमाई से किसी तरह घर खर्च चलने लगा।"
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एकता जब 5 साल की थी तभी से उसका मन खेलने में ज्यादा लगता था। हमारे घर के सामने छोटा सा मैदान था। वहां अधिकतर लड़के ही क्रिकेट खेलते थे। वो भी उनके साथ खेलने लगी। कभी-कभी उसे लोग लड़की कहकर खेलने से मना कर देते थे। लेकिन वह इसके बावजूद वहीं डटी रहती थी।
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धीरे-धीरे वह बड़ी हुई तो उसके खेल में और निखार आया। वह गांव की क्रिकेट टीम में खेलने लगी। लड़कों के बीच वह इकलौती लड़की थी। कभी-कभी लोग ताने भी देते थे कि लड़की है दूसरे के घर जाना है। ऐसे में इसे क्रिकेट खेलने की छूट क्यों देते हो। लेकिन तब तक हमारा परिवार ये समझ चुका था कि एकता के अंदर कुछ तो असाधारण प्रतिभा है।
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विनीत बताते हैं "ये बात साल 2000 की है। हमारे गांव के ही मैदान पर एक टूर्नामेंट हो रहा था। एकता भी अपने गांव की टीम से खेल रही थी। उसके बेहतरीन ऑलराउंड परफॉर्मेंस से हमारे गांव की टीम विनर बनी। यह बात जब अल्मोड़ा स्टेडियम के पूर्व कोच लियाकत अली खान को पता चली, उन्होंने एकता को स्टेडियम बुलाया। कोच लियाकत उसका गेम देखकर काफी प्रभावित हुए थे। उन्होंने उसे प्रॉपर ट्रेनिंग देना शुरू किया। वो मीडियम फास्ट बॉलिंग करती थी, लेकिन उन्होंने उसे स्पिन फेंकने की सलाह दी। यहीं से उसका करियर चल पड़ा।"
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घर की आर्थिक हालात बहुत अच्छी नहीं थी। इसलिए हम उसे कभी खेलने का कोई संसाधन नहीं दिला पाए। क्रिकेट बैट से लेकर किट तक सब उसे ईनाम में ही मिलते रहे। इन्ही से उसकी खेल प्रैक्टिस होती रही। लेकिन उसने कभी हार नहीं मानी। वह शुरू से कहती थी मेरा सपना है मै देश के लिए खेलूं। और उसका सपना साकार हुआ।
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एकता ने अपने मेहनत और शानदार प्रदर्शन के दम पर देश की टीम में जगह बना ली। वह देश की टीम में जगह बनाने वाली उत्तराखण्ड की पहली क्रिकेटर थीं। देखते ही देखते वह इंटनेशनल स्टार बन गई। एकता दो साल पहले ICC की महिला टी-20 और वनडे टीम में जगह बनाने वाली इकलौती भारतीय बनी थीं।
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विनीत ने बताया कि "एकता जबसे इंडियन टीम का हिस्सा बनी है, उसे समय बहुत कम मिलटा 3-4 महीने में एक बार ही घर आ पाती है। उसका डेली फोन रोज जरूर आता है। वह मेरी शादी में भी नहीं आ पाई थी। उस समय उसके IPL के मैच थे। लेकिन हम लोग इसी बात से खुश हैं कि आज उसने सिर्फ परिवार का ही नहीं बल्कि पूरे उत्तराखंड का नाम रोशन कर दिया है। ''

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