लॉकडाउन में सिर पर चढ़ा कर्ज, तो सुसाइड का आया ख्याल, लेकिन हिम्मत नहीं हारी, आज मिसाल बनी ये किन्नर

कोरोनाकाल ने कइयों की जिंदगी बेपटरी कर दी। सैकड़ों लोग निराश हुए। कुछेक ने सुसाइड तक करने की सोची, लेकिन इन सबके बीच ऐसे लोग भी मिसाल बनकर सामने आए, जिन्होंने संघर्ष नहीं छोड़ा और अपना खुद का रोजगार खड़ा कर दिया। गुजरात के सूरत की रहने वाली किन्नर राजवी जान इन्हीं लोगों में शामिल हैं। लॉकडाउन में इन्हें कर्ज लेकर काम चलाना पड़ा। पहले ये पेट्स का काम करती थीं। लेकिन जब वो काम बंद हुआ, तो निराश हो उठीं। एक-दो सुसाइड का मन भी हुआ। फिर सोचा कि बिना लड़े क्यों हारा जाए? उन्होंने राजवी नमकीन नाम से अपनी शॉप खोली। आज ये रोज करीब 2000 रुपए कमा रही हैं।
 

Asianet News Hindi | Published : Feb 3, 2021 7:24 AM IST

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लॉकडाउन में सिर पर चढ़ा कर्ज, तो सुसाइड का आया ख्याल, लेकिन हिम्मत नहीं हारी, आज मिसाल बनी ये किन्नर

राजवी बताती हैं कि उन्होंने 5 साल पहले पेट्स शॉप शुरू की थी। यह काम अच्छा चल रहा था, तभी कोरोना के चलते लॉकडाउन लग गया। सारा काम चौपट हो गया। पेट्स को खाने-पिलाने की दिक्कत होने लगी। कुछ समय कर्ज लेकर काम चलाया, फिर काम बंद कर दिया। हालात इतने खराब हो चुके थे कि कई बार मरने का मन हुआ। लेकिन कहते हैं कि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। राजवी ने भी कोशिश की और आज सफल कारोबारी हैं।

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राजवीर बताती हैं कि उन्होंने अक्टूबर, 2020 में नमकीन की शॉप खोली। आज उनका काम अच्छा चल रहा है। राजवी का जन्म सूरत के एक ठाकुर परिवार में हुआ। माता-पिता ने इनका नाम चितेयु ठाकोर रखा। हालांकि राजवी का जन्म किन्नर के रूप में ही हुआ था, लेकिन परिजनों ने कभी उन्हें अछूत नहीं समझा।

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राजवी कहती हैं कि आमतौर पर मां-बाप ऐसे बच्चों को किन्नर समाज को सौंप देते हैं, लेकिन उनके परिजनों ने ऐसा नहीं किया। उनका बचपन लड़कों की तरह गुजरा। उनके मां-बाप ने उन्हें पढ़ाया-लिखाया, ताकि वो अपने पैरों पर खड़ी हो सकें।
 

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राजवी 12 साल की उम्र से सूरत की किन्नर मंडली से जुड़ गई थीं। आज राज किन्नर समुदाय की गौरव हैं। बता दें कि गुजरात में बड़ी संख्या में किन्नर रहते हैं। राजवी जब 18 साल की हुईं, तो उन्होंने बच्चों की ट्यूशन लेना शुरू कर दी। वे अंग्रेजी पढ़ाती थीं। करीब 11 साल तक उन्होंने ट्यूशन पढ़ाई।
 

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राजवी बताती हैं कि जब वे 32 साल की हुईं, तब उन्होंने नारी पहनावा अपना लिया और अपना नाम राजवी रखा। राजवी बताती हैं कि उनकी दुकान अच्छी चल रही है। हालांकि कुछ ग्राहक अभी भी उनकी दुकान पर आने से संकोच करते हैं, लेकिन उन्हें उम्मीद है कि यह भेदभाव दूर होगा। राजवी कहती हैं कि आप हिम्मत नहीं छोड़ें। कोशिश करें, सफलता जरूर मिलती है।

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