'इसकी शाखाएं दुख और शोक के भार से झुक गई थीं, जब इसके वरिष्ठ बाबूजी, मां जी चले गए थे। उनके जाने के 13 और 12 दिन बाद हुई उनकी प्रार्थना सभा के दौरान सभी इसकी छाया में खड़े थे। जब होली के उत्सव के एक दिन पहले बुरी शक्तियों को जलाया जाता है, इसी तरह दीपावली की सारी रोशनी इसकी शाखाओं को निहारती थी। और आज वो सभी दुखों से दूर चुपचाप गिर गया, बिना किसी आत्मा को नुकसान पहुंचाए... नीचे फिसला और वहां अचेत हो गया...'