अमर सिंह ने कहा था, कई मौकों पर, चाहे वह मेरा जन्मदिन हो या पिता की पुण्यतिथि, वो हमेशा अपने कर्तवय को निभाते रहे। 60 से ऊपर जीवन की संध्या होती है। मैं जिंदगी और मौत के बीच से गुजर रहा हूं। वे हमसे उम्र में बड़े हैं मुझे नरमी रखनी चाहिए थी। मुझे लगता है कि मैंने जो कटु वचन बोले हैं उसके प्रति खेद प्रकट कर देना चाहिए।