पेट्रोल की कीमतें देखकर 67 साल के 'तिवारीजी' ने की इंटरनेट पर खोज, अब बिना खर्च के दौड़ता है रिक्शा

Published : Oct 05, 2020, 02:04 PM ISTUpdated : Oct 05, 2020, 02:06 PM IST

धमतरी, छत्तीसगढ़. जब कोई समस्या या परेशानी सिर पर आती है, तब जन्म लेता है कोई न कोई आविष्कार। अपने भारत में देसी जुगाड़ के जरिये कई काम की चीजें बनती रहती हैं। आपको मिलवाते हैं धमतरी के रहने वाले 67 वर्षीय रिक्शा चालक कैलाश तिवारी से। ये ई-रिक्शा चलाते हैं। पेट्रोल की बढ़ती कीमतों को देखते हुए ईंधन के नये-नये विकल्प तलाशे जा रहे हैं। ई-रिक्शा (E-Rickshaw) इसी का नतीजा है। लेकिन तिवारीजी ई-रिक्शा की बैटरी को लेकर परेशान थे। बैटरी डिस्चार्ज होने पर रिक्शा कहीं भी पसर जाता था। तिवारीजी ने दिमाग दौड़ाया और रिक्शा के ऊपर सोलर प्लेट (Solar Plate) लगा दी। अब इसके जरिये बैटरी लगातार चार्ज होती रहती है। पढ़िए तिवारीजी के इस आविष्कार की कहानी...

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पेट्रोल की कीमतें देखकर 67 साल के 'तिवारीजी' ने की इंटरनेट पर खोज, अब बिना खर्च के दौड़ता है रिक्शा

कैलाश तिवारी बताते हैं कि ई-रिक्शा पेट्रोल बचाने का एक बेहतर विकल्प है। लेकिन वे इसकी बैटरी के डिस्चार्ज होने से परेशान थे। कई बार ऐसा होता था कि रिक्शे में सवारी बैठी हैं और बैटरी डिस्चार्ज। ऐसे में बड़ी तकलीफ होती थी। यही सोचकर उन्होंने छत्तीसगढ़ के एनर्जी डिपार्टमेंट(क्रेडा) से संपर्क किया। साथ ही इंटरनेट पर सोलर एनर्जी इस्तेमाल करने के तौर-तरीके देखे।  आगे पढ़िए तिवारी का कमाल...

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कैलाश तिवारी ने इंटरनेट के जरिये देसी जुगाड़ से अपने रिक्शा की छत पर सोलर प्लेट लगाकर बैटरी चार्ज करने का तरीका ढूंढ लिया। अब बैटरी कभी डिस्चार्ज नहीं होती। वो सोलर एनर्जी से लगातार चार्ज होती रहती है। लोग मांगने लगे आइडिया...

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कैलाश तिवारी बताते हैं कि ई-रिक्शा पर उनके करीब 40 हजार रुपए खर्च हुए। सोलर प्लेट लगने के बाद अब उनकी कमाई बढ़ गई है। कई बार तो वे सुबह बैटरी चार्ज करके निकलते हैं और वो दिनभर चलती है। उनका रिक्शा दूसरे चालकों के लिए मिसाल बन गया है। वे उनसे सोलर प्लेट लगाने का तौर-तरीका पूछने लगे हैं। आगे पढ़ें-देसी जुगाड़ के कुछ ऐसे आविष्कार, जिन्हें देखकर इंजीनियर भी सोच में पड़ जाते हैं

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यह मामला मध्य प्रदेश के बुरहानपुर का है। निंबोला क्षेत्र के एक किसान के तीन बेटों ने बेकार पड़े पाइपों के जरिये धमाका बंदूक बना दी। दरअसल, किसान खेतों में सूअर और अन्य जानवरों के घुसने से परेशान था।  हर साल उसकी लाखों की फसल खराब हो जाती थी। पटाखे आदि काम नहीं करते थे। इस बंदूक से ऐसा धमाका होता है कि जानवर डरके भाग जाते हैं। बता दें कि यह बंदूक बनाने वाले मनोज जाधव 8वीं, पवन जाधव 7वीं  तक पढ़े हैं। सिर्फ जितेंद्र पवार ग्रेजुएट हैं। इसकी आवाज 2 किमी तक सुनाई पड़ती है। 

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यह मामला यूपी के चित्रकूट में रहने वाले दो भाइयों सुरेश चंद्र(49) और रमेश चंद्र मौर्य(45) से जुड़ा है। मऊ तहसील के ग्राम उसरीमाफी के रहने वाले इन भाइयों ने ट्रैक्टर का काम करने वाली सस्ती मशीन बनाई है। इसे 'किसान पॉवर-2020' नाम दिया है। ये दोनों भाई मूर्तियां और गमले बनाते थे। फिर किसानों की समस्या देखकर मशीन बनाने का आइडिया आया। जो गरीब किसान ट्रैक्टर नहीं खरीद सकते...उनके लिए यह मशीन फायदेमेंद है।

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पंजाब के कपूरथला के नानो मल्लियां गांव के किसान जगतार सिंह जग्गा ने देसी जुगाड़ से यह मशीन बनाई है। यह एक दिन में 100 एकड़ में बगैर मजदूरों के धान बो सकती है। यह मशीन ट्रैक्टर के साथ चलाई जाती है।  

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