लकवाग्रस्त पति भूख से न मर जाए, इसलिए महिला ने दिल पर पत्थर रखकर बेच दिया मंगलसूत्र

Published : Jun 09, 2020, 05:31 PM IST

रायपुर/भोपाल. पहली तस्वीर अमृतसर से छत्तीसगढ़ के लिए निकली एक प्रवासी महिला मजदूर की है। उसने जिंदगी में कभी नहीं सोचा था कि मेहनत-मजदूरी करने वालों के साथ भगवान ऐसा कुछ करेगा? दूसरी तस्वीर मध्य प्रदेश के भोपाल में रहने वाली एक लाचार महिला की है। इसका पति लकवाग्रस्त है। यह महिला एक मंदिर के बाहर प्रसाद बेचकर अपने परिवार चला रही थी। बेटा किसी पेट्रोल पंप पर काम करता है। वो उतना नहीं कमाता कि घर और पिता की दवाइयों का खर्चा चल सके। बावजूद यह फैमिली जैसे-तैसे अपना काम चला रही थी कि लॉकडाउन ने उनकी जिंदगी पर जैसे पहाड़ तोड़ दिया। घर में खाने को कुछ नहीं बचा और पति की दवाइयों का इंतजाम नहीं हो पा रहा था, तो महिला ने दु:खी होकर 5000 रुपए में अपना मंगलसूत्र बेच दिया। लॉकडाउन में गरीबों की बेबसी दिखातीं तस्वीरें..

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लकवाग्रस्त पति भूख से न मर जाए, इसलिए महिला ने दिल पर पत्थर रखकर बेच दिया मंगलसूत्र

पहली तस्वीर अमृतसर से अपने गांव छत्तीसगढ़ के लिए निकली महिला की है। मासूम बच्ची को गोद में लेकर आ रही महिला ने कहा कि उसे नहीं मालूम था कि जिंदगी ऐसे दिन भी दिखाएगी। न खाने के ठिकाने और न रहने के। घर के लिए निकले, तो पता नहीं, कब पहुंचेंगे। दूसरी तस्वीर भोपाल की कौशल्या पाटिल की है। यह तस्वीर न्यूज एजेंसी ANI के जरिये सामने आई है। कौशल्या ने अपना मंगलसूत्र बेचने के बाद दु:खी होकर कहा कि कोरोना वायरस से नहीं, तो भूख से हम लोग मर जाएंगे। कौशल्या विधानसभा सचिवालय से कुछ ही मीटर पर स्थित एक झुग्गी बस्ती में रहती हैं।  आगे देखिए प्रवासी मजदूरों से जुड़ीं कुछ अन्य तस्वीरें

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ये प्रवासी मजदूर परिवार छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं। ये अमृतसर से अपने घर के लिए निकले थे। लेकिन ट्रेन का शेड्यूल बदल दिया। इससे वे आक्रोशित हो गए।

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छत्तीसगढ़ के इन मजदूरों ने अमृतसर में प्रशासन के खिलाफ हंगामा कर दिया। उन्हें घर जाने के लिए साधन नहीं मिल रहा था। आखिरकार प्रशासन ने उनके लिए बसों का इंतजाम किया।

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यह तस्वीर उड़ीसा के भुवनेश्वर की है। मजदूरों को अभी भी साइकिल पर अपने घर जाते देखा जा सकता है।
 

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यह तस्वीर बिहार के पटना की है। सिर पर गठरी उठाकर ट्रेन के लिए आगे जाते प्रवासी मजदूर।

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यह तस्वीर हरियाणा के गुरुग्राम की है। लॉकडाउन में प्रवासी मजदूरों की सबसे ज्यादा फजीहत हुई।

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