कपड़े प्रेस कर-करके पिता ने पढ़ाया, बेटी पहली सैलरी लेकर लौटी तो ट्रेन से कट गया पैर
नई दिल्ली. आपने सड़क किनारे कपड़ों पर कोयले की प्रेस से कपड़ों की सिलवटें मिटाते लोग देखें होंगे। ये गरीब लोग कपड़ों पर प्रेस करके रोजी-कोटी कमाते हैं। ऐसी ही बेबस पिता की बेटी की दर्दनाक कहानी सामने आई। अपने जन्मदिन पर घर लौट रही इस बेटी को सारी जिंदगी के लिए कभी न भरने वाला जख्म मिला है। आइए जानते हैं क्या है पूरा मामला....
Asianet News Hindi | Published : Nov 8, 2019 1:27 PM IST / Updated: Nov 11 2019, 11:37 AM IST
सोचिये आपके जन्मदिन पर आपके साथ ऐसा हादसा हो जाए कि कोई भी सुनकर दर्द से चीख उठे। ऐसा सोचने से ही लोग डर जाते हैं। पर किरन कन्नोजिया नाम की इस लड़की के साथ ऐसा हुआ था। कन्नौजिया ने ह्यूमन ऑफ बॉम्बे नाम के पेज पर अपनी कहानी बयां की है।
किरन ने बताया- मेरे पिता सड़क किनारे कपड़ों पर प्रेस करके घर चलाते हैं। हमारी एक महीने की आमदनी मात्र दो हजार रुपए थी। हम तीन भाई-बहन थे जिनके पास रहने को घर तक नहीं था। सड़क किनारे स्ट्रीट के नीचे हम पढ़ाई किया करते थे। तब मैंने बहुत मेहनत से पढ़ाई की। सोचा परिवार की आर्थिक मदद करूंगी। 12 वीं टॉप किया। फिर मुझे फुल टाइम स्कॉलरशिप मिल गया और उसके बाद एक बड़ी कंपनी में नौकरी भी मिल गई।
इसके बाद 2011 में जब वह अपना जन्मदिन मनाने के लिए हैदराबाद से फ़रीदाबाद आने के लिए ट्रेन में सफ़र कर रही थी इस दौरान पलवल स्टेशन के पास कुछ उपद्रवी लड़कों ने उनका बैग छिनने की कोशिश की। बैग में उनकी सैलरी थी। इस दौरान हुई छीना झपटी में वह ट्रेन से गिर गईं और उनका पैर रेलवे ट्रैक की पटरियों में फंस गया। उन्हें तत्काल अस्पताल ले जाया गया जहां इलाज के दौरान डॉक्टर्स को उनकी एक टांग काटनी पड़ी। टांग कटने के बाद किरन ने कहा, “मुझे लगा कि जन्मदिन पर फिर नया जन्म मिला है।”
इसके बाद किरन ने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने इलाज करवाया और वह भारत में मैराथन दौड़ने लगी और बनी भारत की महिला ब्लेड रनर। किरन कनौजिया ने अदम्य साहस के दम पर असंभव को संभव कर दिखाया और लोगों को कठिनाइयों से लड़कर आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। कृत्रिम टांग के सहारे उन्होंने फिर से ज़िंदगी के साथ क़दम से क़दम से मिलाकर चलने की कोशिश शुरू की और ज़िंदगी को नई दिशा देने की ठानी।
पैर कट जाने के बाद भी रुकना उन्होंने सीखा नहीं। भारत की पहली महिला ब्लेड रनर बनने तक का सफ़र मुश्किलों भरा था।
दक्षिण रिहेबलिटेशन सेंटर के बाकी लोगों ने एक ग्रुप बनाया और एक दूसरे को प्रोत्साहित करने लगे। ये सब जब एक साथ मैराथन के लिए निकले तो इन्हें देखकर लोगों ने भी इनका हौंसला बढ़ाया। किरन पहले तो 5 किलोमीटर भागीं फिर कुछ समय बाद उन्होंने अपना लक्ष्य बढ़ाया और 10 किलोमीटर दौड़ लगाने लगीं। उसके बाद उन्होंने अपना लक्ष्य 21 किलोमीटर किया। भले ही उन्होंने अपना एक पैर गंवाया लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि इस घटना ने उन्हें एक मजबूत इंसान बना दिया। किरन अपने नाम कई मेडल कर चुकी हैं। उनकी कहानी लोगों में नई ऊर्जा भर देती है।