Tokyo Olympics 2020: ऑस्ट्रेलिया के सामने दीवार बनकर खड़ी थी हरियाणा की यह बेटी, जीत की बनी असली हीरो

हिसार (हरियाणा). टोक्यो ओलंपिक 2020 में भारतीय महिला हॉकी टीम ने इतिहास रच दिया है। ऑस्ट्रेलिया को 1-0 से हराकर टीम पहली बार ओलिंपिक के सेमीफाइनल में पहुंच गई है। सोशल मीडिया पर देश को इन बेटियों को कामयाबी पर ढेरों बधाइयां मिल रही हैं। खेलमंत्री अनुराग ठाकुर से लेकर यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी उन्हें हार्दिक शुभकामनाएं दी हैं। भारत की तरफ से गुरजीत कौर ने 22वें मिनट में गोल किया और टीम ने क्वार्टरफाइनल मुकाबला जीत लिया। लेकिन कांटे की टक्कर के इस मैच में जीत दिलाने वाली असली हीरो हरियाणा की बेटी सविता पूनिया रहीं, जो विदेशी टीम के सामने दीवार की तरह खड़ी रहीं। आइए जानते हैं सविता पूनिया के बारे में जो अपनी दादी की वजह से हॉकी खेलने लगीं...

Asianet News Hindi | Published : Aug 2, 2021 6:43 AM IST / Updated: Aug 02 2021, 01:10 PM IST
18
Tokyo Olympics 2020: ऑस्ट्रेलिया के सामने दीवार बनकर खड़ी थी हरियाणा की यह बेटी, जीत की बनी असली हीरो

दरअसल, सोमवार को टोक्यो ओलंपिक 2020 में  भारत की भिडंत ओलिंपिक चैंपियन ऑस्ट्रेलिया से थी। भारत ने तो एक गोल कर दिया, लेकिन अब बारी थी ऑस्ट्रेलिया की, लेकिन उसे गोल दागने में भारतीय गोलकीपर  सविता पूनिया ने एक भी मौका नहीं दिया। उन्होंने  ऑस्ट्रेलिया की टीम के सामने दीवार बनकर खड़ी रहीं, परिणाम यह हुआ कि विदेशी टीम को 7 पेनल्टी कॉर्नर मिलने के बाद भी कोई गोल नहीं करने दिया। क्योंकि सामने सविता पूनिया जो खड़ी थीं।
 

28

भारतीय गोलकीपर सविता पुनिया मूल रुप से हरियाणा के हिसार जिले के जोधका गांव की रहने वाली हैं। वैसे तो सविता ने छठी कक्षा में हॉकी स्टिक को पहली बार पकड़ा था। लेकिन साल 2008 में हॉकी का अंतरराष्ट्रीय मैच पहली बाक खेला था। इस दौरान एक साल बाद  2009 में जूनियर एशिया कप में सविता ने भारत की जीत में अहम भूमिका निभाई थी। 

38

बता दें कि सविता पूनिया ने अपने दादा महिंदर सिंह की इच्छा थी की उनकी पोती देश के लिए हॉकी खेले। इसके बाद स्कूली टाइम में पनिया की दादी ने उनका हॉकी खेलने के लिए हौसला बढ़ाया। इसके बाद उन्होंने हॉकी स्टिक थाम ली। वह अपनी दादी और दादा  को ही अपनी सफलता का श्रेय देती  हैं। खुद उन्होंने एक टीवी इंटरव्यू के दौरान कहा था कि आज मैं जो कुछ भी हूं अपने दाद और दादी की वजह से हूं। अगर वह मुझे हौसला नहीं देते तो शायद में हॉकी नहीं खेल रही होती।

48

सविता के हॉकी के लक्षय और उनकी फुर्ती देखकर उनके स्कूल टीचर दीपचंद ने भी बड़ी भूमिका निभाई। क्योंकि उन्हीं के कहने पर सविता के पिता  महेंद्र पूनिया ने बेटी का नाम हॉकी नर्सरी में नाम दर्ज करवाया था। साथ ही इसके बाद पिता ने हॉकी की कोचिंग दिलवाई। इसके बाद साल 2004 में सविता ने सिरसा के महाराजा अग्रसेन स्कूल में कोचिंग शुरू कर दी।

58


सविता ने बताया था कि नर्सरी हॉकी में एडमिशन लेने के बाद वहां की कोचिंग बड़ी ही कठिन थी। जिसके चलते मैंने कई बार तो हॉकी को छोड़ने का मन बना लिया था। पिता ने भी कह दिया था कि अगर मन नहीं है तो हॉकी छोड़ देना। लेकिन एक दिन मैंने फिर रात में सोचा की एक ना एक दिन तो इसमें सफलता मिलेगी। फिर क्या था हॉकी खेल में गोलकीपर बनने के लिए सविता ने जी तोड़ मेहनत शुरू कर दी।

68

साल 2008 में जर्मनी में हॉकी टूर्नामेंट के बाद सविता ने हॉकी को ही अपने जीवन का आधार बना लिया। फिर कभी अपने से इसे दूर नहीं होने दिया। साल 2016 में ओलंपिक में भाग लिया, लेकिन वहां उन्हें कोई सफलता नहीं मिली। हालांकि वह निराश ना होकर देश लौटकर और ज्यादा मेहनत करना शुरू कर दिया। जिसका ही परिणाम है कि 2021 में टोक्यो ओलंपिक में उनकी ही बौदलत  ऑस्ट्रेलिया की टीम एक भी गोल नहीं दाग सकी।

78

11 जुलाई 1980 क जन्मी भारतीय गोलकीपर सविता के पिता महेंद्र पूनिया स्वास्थ्य विभाग में अपनी सेवाएं दे रही हैं। वहीं उनकी मां लीलावती हाउसवाइफ हैं। उनके भाई भविष्य ने पढ़ाई में बीटेक किया हुआ है और वह एक कम्प्यूटर कोचिंग चला रहे हैं।
 

88

सविता के पिता महेंद्र पूनिया अपने बेटी को एक अच्छा डॉक्टर बनाना चाहते थे। उनका सपना था कि वह बड़ा होकर गरीबों का इलाज करे। लेकिन हॉकी में उसकी रुचि देख पिता ने अपना फैसला बदला और उसे हॉकी खिलाड़ी बना दिया।

Share this Photo Gallery
click me!

Latest Videos

Recommended Photos