रांची, झारखंड. नियम-कायदे अमीर-गरीब और खास-आम सबके लिए बराबर होने चाहिए, लेकिन यहां अफसरों की हठधर्मिता से मां-बाप अपनी बेटी से आखिरी पलों में भी नहीं मिल सके। 28 साल की बेटी बीमार थी। उसने फोन लगाकर कहा-पापा! अब हम नहीं बचेंगे..आप मां को लेकर आ जाओ..मुझे उनका चेहरा देखना है। चैन से मर सकूंगी। इसके बाद पिता रोते हुए अफसरों के चक्कर लगाता रहा, लेकिन परमिशन नहीं मिली। आखिरकार बेटी की मौत हो गई और वीडियो कॉल के जरिये बेटी का आखिरी बार चेहरा देखना पड़ा। जबकि ऐसे मामलों में चेकअप और पड़ताल के बाद परमिशन दी जा सकती थी। पिता का दर्द था कि जिन अफसरों के वो चक्कर काटता रहा, उन्होंने ही एक मंत्री की सिफारिश पर 8 बसों में सैकड़ों लोगों को भरकर दूसरे जिले में जाने दिया था। आखिरी उसके साथ ऐसा भेदभाव क्यों किया गया? वे किसी से सिफारिश नहीं कर पाया, इसलिए? (नोट-पहला फोटो मृतका की बेटी और उसके पिता का है, दूसरा फोटो दिल्ली के एक हॉस्पिटल का है। इस महिला को कैंसर है। उसका पति इलाज के लिए आया था, लेकिन मना कर दिए जाने पर रो पड़ा)