Nick-Priyanka Baby: जब अपनी बेटी के लिए Surragate Mother बनीं थी ये मां, जानें भारत की पहली सरोगेसी

लाइफस्टाइल डेस्क : बॉलीवुड एक्ट्रेस प्रियंका चोपड़ा (Priyanka Chopra)एक बच्चे की मां बन गई हैं। शनिवार को प्रियंका चोपड़ा और उनके पति निक जोनस (Nick Jonas) ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर फैन्स के साथ यह खुशखबरी शेयर की, कि उन्होंने सरोगेसी (Surrogacy) के जरिए एक बच्चे को जन्म दिया। इसके बाद से सरोगेसी एक बार फिर चर्चा में है। इससे पहले प्रीति जिंटा, शिल्पा शेट्टी समेत कई बॉलीवुड और हॉलीवुड स्टार्स है, जिन्होंने सरोगेसी का सहारा लिया। लेकिन क्या आप जानते हैं, भारत की पहली सरेगोसी कैसी थी और किसने की थी। आइए आपको बताते हैं, भारत की पहली सरोगेट मदर (surrogate mother) की स्टोरी...

Asianet News Hindi | Published : Jan 22, 2022 3:22 AM IST
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Nick-Priyanka Baby: जब अपनी बेटी के लिए Surragate Mother बनीं थी ये मां, जानें भारत की पहली सरोगेसी

भारत में सरोगेसी की शुरुआत गुजरात में सबसे पहले हुई थी। जहां 2010 में एक महिला ने अपनी बेटी के बच्चे को 9 महीने कोख में रखा और उसके बाद जन्म दिया और अपनी बेटी और दामाद को बच्चा दे दिया। 
 

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45 वर्षीय शोभनाबेन शायद अपनी बेटी भाविका के लिए भारत की पहली सरोगेट मां बनीं, और सूरत के एक अस्पताल में आईवीएफ पद्धति के माध्यम से दो बच्चों को जन्म दिया। चार बच्चों की मां शोभना उदास थी जब उसने देखा कि उसकी बेटी भाविका जन्म के समय बिना गर्भ के पैदा हुई थी और कभी मां नहीं बन सकती थी, इसलिए उन्होंने अपनी बेटी के लिए उसका बच्चा अपनी कोख में रखा।

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आमिर खान, शाहरूख खान, करन जौहर, तुषार कपूर आदि बॉलीवुड एक्टर भी सरोगेसी के जरिए संतान सुख ले चुके हैं। इसके अलावा शिल्पा शेट्टी, प्रीति जिंटा और शनिवार को प्रियंका चोपड़ा भी सरोगेसी के जरिए मां बनीं।

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सरोगेसी एक लेटेस्ट तकनीक या प्रक्रिया है, जिसके जरिए शादीशुदा कपल बच्चा पैदा करने के लिए किसी और महिला की कोख किराए पर लेता है। इस प्रोसेस में पिता का स्पर्म सरोगेट मदर के एग्स से मैच करवाया जाता है और टेस्ट ट्यूब के जरिए यह सरोगेट मदर के यूट्रस में डाल दिया जाता है। प्रेग्नेट होने के बाद वह महिला उनके बच्चे को 9 महीने कोख में रखती है और उसको जन्म देने के बाद कपल को दे देती है।
 

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सरोगेसी 2 प्रकार की होती है। पहली ट्रेडिशनल सरोगेसी और दूसरी जेस्टेशनल सरोगेसी। ट्रेडिशनल सरोगेसी में बच्चा चाहने वाले पिता के शुक्राणुओं को सरोगेट मदर के अंडाणुओं में फर्टिलाइज किया जाता है। इस तकनीक में बच्चे में जेनेटिक प्रभाव सिर्फ पिता का ही आता है। वहीं, जेस्टेशनल सरोगेसी में माता-पिता दोनों के अंडाणु और शुक्राणु मिलाकर भ्रूण तैयार किया जाता है और उस भ्रूण को सरोगेट मदर की बच्चेदानी में डाला जाता है। इस तकनीक से पैदा होने वाले बच्चे में माता और पिता दोनों का जेनेटिक प्रभाव आता है।

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भारत में सरोगेसी को लोगों ने एक कारोबार बना लिया था। जिसके बाद 2019 में The Surrogacy (Regulation) Bill, 2019 लाने के पीछे सरकार का मुख्य उदेश्य कर्मशियल सरोगेसी को रोकना था। इसमें कमर्शियल सरोगेसी पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। इसके साथ ही विदेशियों, सिंगल पेरेंट, तलाकशुदा जोड़ों, लिव इन पार्टनर और एलजीबीटी समुदाय से जुड़े लोगों के लिए सरोगेसी के रास्ते बंद कर दिए गए हैं। 

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सरोगेसी के दौरान सेरोगेट मदर को उसका ध्यान रखने के लिए और मेडिकल जरूरतों को पूरा करने के लिए पैसे दिए जाते हैं। इसके अलावा बाद में सरोगेट मदर को 10 से 25 लाख रुपये तक दिया जाता है। जबकि, विदेशों में इसका खर्च 60-70 लाख तक हो जाता है। ये एक बहुत महंगा प्रोसेस है, इसलिए आम लोग इसे करने से बचते हैं।

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