'मेरा मरद गया नसबंदी में'...नुमा कंट्रोवर्सी से जुड़ीं इस धाकड़ IAS के बारे में कुछ बातें भी जान लें

भोपाल, मध्य प्रदेश. ये हैं सीनियर IAS अधिकारी छवि भारद्वाज! ये जहां भी कलेक्टर रहीं..अपनी कार्यशैली के कारण हमेशा लोगों की आंखों में 'सितारा' बनी रहीं। लोगों से सीधा जुड़ाव...समस्याओं का तत्काल समाधान और पॉजिटिव सोच..इस लेडी IAS की 'छवि' का अभिन्न हिस्सा रही है। लेकिन पुरुषों की नसबंदी से जुड़े एक विवादास्पद आदेश ने उनकी किरकिरी करा दी। बवाल होते ही सरकार बैकफुट पर आई और आदेश पर 'इमरसेंजी ब्रेक' मारने पड़े। इसके साथ ही छवि भारद्वाज को 'राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन' के राज्य संचालक पद से हटा दिया गया। उन्हें राज्य मंत्रालय में विशेष कर्त्तव्यस्थ अधिकारी (OSD) बनाकर भेजा गया है। यानी उन्हें 'लूप लाइन' में डाला गया है। दरअसल, छवि भारद्वाज ने पुरुष नसबंदी को लेकर एक विभागीय आदेश जारी किया था। इसमें कर्मचारियों को हर महीने पुरुषों की नसबंदी कराने का टार्गेट दिया था। ऐसा न करने पर उनका वेतन काटने या नौकरी पर संकट आने की बात लिखी गई थी। इस आदेश से हड़कंप मच गया था। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसे आदेश की निंदा करते हुए सरकार पर 'आपातकाल' दुहराने का आरोप लगा दिया था। संभवत: इस लेडी IAS की सेवा में ऐसा पहला मौका होगा, जब उन्हें ऐसे हालात का सामना करना पड़ा है। बता दें कि  25 जून, 1975 को देश में इमरजेंसी के दौरान 62 लाख पुरुषों की जबर्दस्ती नसबंदी करा दी गई थी। कुछ इसी तर्ज पर मध्य प्रदेश में ऐसा ही आदेश निकाला गया था। जानिए 'पुरुषों की नसबंदी' से जुड़ा विवादास्पद आदेश निकालने वालीं इस IAS की कार्यशैली कैसी रही है...

Asianet News Hindi | Published : Feb 22, 2020 1:15 PM IST / Updated: Feb 24 2020, 04:43 PM IST

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'मेरा मरद गया नसबंदी में'...नुमा कंट्रोवर्सी से जुड़ीं इस धाकड़ IAS के बारे में कुछ बातें भी जान लें
छवि भारद्वाज को लिखने का शौक है। 2008 बैच की IAS छवि का 2 साल पहले 'लाइक अ बर्ड ऑन द वायर' नाम से एक उपन्यास प्रकाशित हुआ था। यह एक आईएएस अफसर की प्रेम कहानी पर आधारित है। छवि ने यह उपन्यास कुछ साल पहले छुट्टियों के दौरान लिखा था। यह उपन्यास तब सामने आया था, जब वे जबलपुर की कलेक्टर थीं।
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देश में जो भी लेडी IAS अफसर अपनी शानदार कार्यशैली के कारण सुर्खियों में रहीं, उनमें छवि भारद्वाज का नाम भी शामिल रहा है। इससे पहले वे भोपाल नगर निगम की कमिश्नर भी रह चुकी हैं।
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छवि भारद्वाज ने बीटेक करने के बाद 2007 में सिविल सेवा परीक्षा पास की थी। इन्हें पहली पोस्टिंग ग्वालियर में सहायक कलेक्टर के रूप में मिली थी। इसके बाद एसडीओ कटनी, सीईओ जिपं दमोह, कमिश्नर नगर निगम सिंगरौली के अलावा डिंडोरी और जबलपुर की कलेक्टर रही हैं।
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डिंडोरी कलेक्टर रहते हुए छवि ने आदिवासी बच्चों के लिए सरकारी खर्चे पर आईआईटी और मेडिकल परीक्षा की तैयारी करवाने वाली कोचिंग शुरू की थी। उनका यह प्रयास देशभर में आइडल बनकर सामने आया था।
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छवि भारद्वाज के पति नंदकुमारम भी आईएएस अफसर हैं। वे भी अपनी पत्नी की तरह एक धाकड़ और सच्चे जनसेवक की तर्ज पर कार्य करने वाले माने जाते हैं।
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छवि भारद्वाज 2016 में भोपाल नगर निगम की कमिश्नर रही हैं। इस दौरान उन्होंने भोपाल को स्वच्छता अभियान में अग्रणी बनाने में पूरी ताकत झोंक दी थी। तब इस सर्वेक्षण में भोपाल को दूसरा नंबर मिला था। बताते हैं कि छवि अक्टूबर 2013 में डिंडोरी की कलेक्टर बनी थीं। तब की एक घटना मीडिया में काफी वायरल हुई थी। डिंडौरी निगम परिषद के तत्कालीन सीएमओ ने किसी फाइल पर साइन करने के लिए उन्हें 50 हजार रुपए की रिश्वत देने की कोशिश की थी। छवि ने CMO के खिलाफ FIR दर्ज करा दी थी। तभी से उनकी छवि दबंग कलेक्टर के रूप में बन गई थी।
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छवि भारद्वाज डिंडौरी जिले की सबसे ज्यादा समय तक रहने वालीं कलेक्टर रही हैं। उनके कार्यकाल से 17 साल पहले तक यहां 15 कलेक्टर बदले जा चुके थे। दरअसल, ज्यादातर कलेक्टर यहां रहना नहीं चाहते थे। छवि भारद्वाज ने इस सोच को बदला था। करीब 40 वर्षीय छवि भारद्वाज का जन्म उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल में हुआ था। इनके पिता तिलक मोहन भारद्वाज देहरादून स्थित उत्तराखंड जल विद्युत निगम (UJVN) में जीएम से रिटायर्ड हैं। इनकी एक छोटी बहन है, जो सॉफ्टवेयर इंजीनियर है।
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जानें क्या था आदेश में: 25 जून, 1975 को देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगा दिया था। इस दौरान उनके छोटे बेटे संजय गांधी ने जनसंख्या पर काबू करने 62 लाख पुरुषों की जबर्दस्ती नसबंदी करा दी थी। इस ऑपरेशन में करीब 2 हजार लोगों की मौत हो गई थी। इसके बाद के चुनावों में विपक्ष ने एक नारा दिया था- 'जमीन गई चकबंदी में, मकान गया हदबंदी में, द्वार खड़ी औरत चिल्लाए, मेरा मरद गया नसबंदी में!' नसबंदी अभियान का यही शिगूफा मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने फिर से छेड़ दिया था। उन्होंने स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों को हर महीने 5-10 पुरुषों की नसबंदी कराने का कड़ा आदेश दिया था। टार्गेट पूरा न करने वाले कर्मचारियों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति तक देने की बात कही गई थी। बता दें कि कमलनाथ संजय गांधी के करीबियों में शुमार रहे हैं। इसी नसबंदी अभियान के चलते जनता ने 1977 में इंदिरा गांधी को सत्ता से बेदखल कर दिया था। हालांकि विवाद बढ़ने पर सरकार ने आदेश वापस ले लिया।
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