श्रीकृष्ण का एक मंदिर ऐसा, जहां 100 करोड़ की पोशाक पहनते हैं भगवान..विदेश से दर्शन करने आते हैं भक्त

Published : Aug 30, 2021, 06:01 PM IST

ग्वालियर (मध्य प्रदेश). आज पूरे देश में रात 12 बजते ही भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया जाएगा। भक्तों ने जन्माष्टमी त्यौहार को मनाने के लिए अपने कान्हा के मंदिरों की रंग-बिरंगी सजावट कर दी है। इस बीच हम आपको बताने जा रहे हैं ग्वालियर के गोपाल मंदिर के बारे में। जहां राधा-कृष्ण का श्रृंगार 100 करोड़ के बेश्कीमती गहने से किया गया है। आइए जानते हैं क्या है इस मंदिर इतिहास...  

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श्रीकृष्ण का एक मंदिर ऐसा, जहां 100 करोड़ की पोशाक पहनते हैं भगवान..विदेश से दर्शन करने आते हैं भक्त

दरअसल, भगवान राधा-कृष्ण का यह गोपाल मंदिर ग्वालियर के फूलबाग में है। जन्माष्टमी के अवसर पर भगवान राधा-कृष्ण को हीरे, पन्ना, माणिक, पुखराज, नीलम, सोना-चांदी जड़ित गहनों के साथ सजाया गया है। भगवान ने सोने का मुकुट तो हीरे का हार पहना हुआ है। हर साल लाखों भक्त देश-विदेश से आते हैं। वहीं कई भक्त ऐसे भी हैं जो फेसबुक के माध्यम से कान्हा का दर्शन करते हैं। हालांकि इस बार कोरोना की वजह से गाइडलाइन का ध्यान रखा गया है।

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100 करोड़ रुपए के गहनों से श्रृंगार करने वाले भगवान राधा-कृष्ण सुरक्षा में सैंकड़ों पुलिस-फोर्स के जवान तैनात हैं। मंदिर के आसपास के इलाके को छाबनी में तब्दील कर दिया है। वैसे भगवान सबकी रक्षा करते हैं, लेकिन चोरों की वजह से इनकी सुरक्षा किसी किले की सुरक्षा की तरह की गई है।

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 गोपाल मंदिर के बारे में बताया जाता है कि इसका निर्माण सिंधिया राजवंश ने सन 1921 में कराया था। इसके बाद सिंधिया रियासत के महाराज माधवराव ने इसका जीर्णोद्धार कराया और भगवान के लिए बेशकीमती ज्वैलरी में हीरे और पन्ना जड़ित गहने बनावाए। 

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आजादी के बाद सिंधिया राजवंश ने इस मंदिर की देखरेख और कीमती गहनों को भारत सरकार को सौंप दिए थे। जिनको जिला कोषालय के लॉकर में रखा जाता है। इनकी जिम्मेदारी जिला कलेक्टर की होती है।
 

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बताया जाता है कि आजादी के बाद वर्षों तक ये गहने बैंकों के लॉकर में पड़े रहे। 2007 में डॉ पवन शर्मा ने नगर निगम आयुक्त की कमान संभाली थी। उसके बाद नगर निगम के पास उपलब्ध संपत्तियों के बारे में उन्होंने जानकारी जुटाई। इस दौरान भगवान के इन गहनों की जानकारी मिली थी। उसके बाद जन्माष्टमी के दिन भगवान राधा-कृष्ण को इन गहनों से श्रृंगार कराने की परंपरा शुरू हुई।

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