पोहा, पॉलिटिक्स और NRC: कैलाश विजयवर्गीय के 'इंदौरी पोहे' से लेकर बांग्लादेशी घुसपैठिये तक की दिलचस्प कहानी

इंदौर. मध्य प्रदेश के इंदौर शहर को दो कारणों से देशभर में जाना जाता है। पहला, इसे व्यावसायिक नजरिये से मिनी मुंबई कहा जाता है। दूसरा, इंदौरी पोहा देशभर में प्रसिद्ध है। नवंबर, 2019 में यहां खेले गए भारत-बांग्लादेश के बीच टेस्ट मैच के दौरान कई पूर्व दिग्गज क्रिकेट पोहा खाते दिखे थे। यह और बात है कि तब भी 'पोहा पुराण' विवादों में आ गया था और अब भी। दिलचस्प यह है कि उस वक्त भी 'बांग्लादेश' चर्चा में मौजूद था और अब भी। ताजा विवाद भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के विवादास्पद बयान से जुड़ा है। इसमें उन्होंने कहा कि एक बांग्लादेशी आतंकी ने इंदौर में उनकी करीब डेढ़ साल तक रेकी की थी। गुरुवार को यहां सेवा सुरभि के कार्यक्रम में नागरिकता संशोधन कानून को लेकर आयोजित संवाद में विजयवर्गीय ने कहा कि तब उनके घर में निर्माण कार्य चल रहा था। उसमें लगे मजदूरों के पोहा खाने की आदत से उन्हें शक हुआ था। वे सभी बांग्लादेशी थे। इसके बाद उनकी सुरक्षा बढ़ाई गई थी। दरअसल, देश में इन दिनों CAA(Citizenship Amendment Act, 2019) और NRC(National Register of Citizens) बहरहाल, पोहे के बारे में ऐसी कई बातें हैं, जो आपको याद नहीं होंगी। अब जबकि भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के कंट्रोवर्सियल बयान ने पोहे को मीडिया में पीक (peak) पर ला दिया है, तो यह भी पढ़िए...

Asianet News Hindi | Published : Jan 24, 2020 12:03 PM IST / Updated: Jan 24 2020, 05:36 PM IST

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पोहा, पॉलिटिक्स और NRC:  कैलाश विजयवर्गीय के 'इंदौरी पोहे' से लेकर बांग्लादेशी घुसपैठिये तक की दिलचस्प कहानी
यह तस्वीर नवंबर में इंदौर में हुए भारत-बांग्लादेश के बीच क्रिकेट टेस्ट मैच के वक्त की है। पूर्व क्रिकेट वीवीएस लक्ष्मण, पूर्व क्रिकेटर और पूर्वी दिल्ली के सांसद गौतम गंभीर और कमेंटेटर जतिन सप्रू पोहे खाने एक शॉप पर जा पहुंचे थे। हालांकि इस फोटो के बाद विवाद भी छिड़ गया था कि दिल्ली प्रदूषण से परेशान है और सांसद महोदय इंदौर में पोहे खा रहे हैं।
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इंदौरी पोहा देशभर में प्रसिद्ध है। कैलाश विजयवर्गीय इंदौर से ही हैं। उन्हें और उनके परिवार को भी पोहा बहुत पसंद है। बहरहाल, कैलाश विजयवर्गीय ने पोहे के जरिये बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान बताने की जो कोशिश की है, उससे विवाद छिड़ गया है।
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हमारे धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख है कि जब सुदामा अपने प्रिय मित्र कृष्ण से मिलने द्वारका गए, तो अपने साथ पोहा लेकर गए थे।
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एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, यह 1960 की बात है। उस वक्त देश में चावल की पैदावार कम हो गई थी। लिहाजा सरकार ने पोहा बनाने पर रोक लगा दी थी। पोहे के अवल, अटुकुल्लू, चिवड़ा, चपटा चावल और चिउरा के नाम से भी पुकारा जाता है। हर साल 7 जून को पोहा दिवस मनाते हैं। मध्य प्रदेश के अलावा महाराष्ट्र और गुजरात में पोहा बड़े चाव से खाया जाता है।
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पोहे को अंग्रेज सैनिक काफी पसंद करते थे। वे इसे एक अच्छा आहार मानते थे। वहीं इसे बनाना भी सरल है। यह कारण है कि अंग्रेजों के समय में पोहे का बाजार तेजी से बढ़ा। एक रिपोर्ट के अनुसार, 1846 में जब भी भारतीय सैनिकों को समुद्र के रास्ते कहीं भेजा जाता था, तो उन्हें खाने में पोहा ही दिया जाता था।
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