यूं ही नहीं कोई शिवराज सिंह चौहान बन जाता..जन्मदिन पर जानिए MP के 'कॉमन मैन' के किस्से, बचपन से सियासी शिखर तक

भोपाल : मध्यप्रदेश की सियासत में 'अंगद के पैर' जैसा कद रखने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chouhan) ने आज अपने जीवन का 63 साल का सफर पूरा कर लिया है। जनता के बीच सरल नेता, मामा शिवराज और कॉमन मैन की भूमिका में नजर आने वाले सीएम चौहान राजनीति के मझे खिलाड़ी हैं। वैसे तो शिवराज सिंह चौहान में नेतृत्व क्षमता उनके स्कूल के दिनों में ही देखने को मिल गया था लेकिन किसी ने शायद ही कल्पना की हो कि वे सियासत की सीढ़ियं कुछ इस कदर चढ़ेंगे, जहां पहुंचना इतना भी आसान नहीं है। जन्मदिन पर जानिए सीएम शिवराज से जुड़ी वो बातें जो उन्हें न सिर्फ अलग बनाती है बल्कि आम लोगों के बीच खास भी...

Asianet News Hindi | Published : Mar 5, 2022 4:52 AM IST
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यूं ही नहीं कोई शिवराज सिंह चौहान बन जाता..जन्मदिन पर जानिए MP के 'कॉमन मैन' के किस्से, बचपन से सियासी शिखर तक

5 मार्च 1959 को सीहोर जिले में नर्मदा तट पर बसे एक छोटे से गांव जैत में जन्मे शिवराज सिंह चौहान जब पहली बार मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) के मुख्यमंत्री बने, तब प्रदेश बीजेपी में उमा भारती, कुशाभाऊ ठाकरे और सुंदरलाल पटवा जैसे बड़े नेताओं का दबदबा हुआ करता था और शिवराज को इन सबसे मुकाबले बेहद कमजोर माना जाता था। लेकिन अपने मिलनसार स्वभाव और लोगों के बीच अपनेपन का एहसास दिलाने की क्षमता ने उन्हें सियासत के शिखर पर पहुंचा दिया।
 

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शिवराज ने भोपाल के टीटी नगर मॉडल स्कूल से पढ़ाई की है। इसी स्कूल से एक छात्र नेता के रूप में उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत भी हुई। शिवराज जब सांसद बने तब कांग्रेस (Congress) की सरकार थी। उस दौरान उन्होंने कई मुद्दों को उठाया। कई पदयात्राएं कीं। इसी कारण से उनके संसदीय क्षेत्र विदिशा में उन्हें पांव-पांव वाले भैया के नाम से पहचाना जाने लगा, बाद में बच्चों के बीच मामा बनकर उभरे।

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राष्‍ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के कार्यकर्ता के रूप में अपनी सेवाएं शुरू करने वाले शिवराज 13 साल की उम्र में 1972 में संघ में शामिल हुए। मॉडल हायर सेकंडरी स्कूल की स्टूडेंट्‍स यूनियन के 1975 में अध्यक्ष चुने गए थे। विदिशा लोकसभा सीट से पांच बार सांसद रह चुके हैं। इमरजेंसी में उन्हें जेल भी भेजा गया था और जब बाहर निकले तब ABVP के संगठन मंत्री बने।
 

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साल 2004 में हुए 14वें लोकसभा चुनाव के दौरान वे पांचवीं बार सांसद चुने गए। 2005 में उन्हें प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बनाया गया। 29 नवंबर 2005 को जब बाबूलाल गौर ने अपने पद से इस्तीफा दिया तो वे पहली बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बने। इसके अगले ही साल उन्होंने बुधनी विधानसभा क्षेत्र से उपचुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। मध्यप्रदेश के बतौर मुख्यमंत्री का कार्यकाल संभालने का रिकॉर्ड शिवराज के ही नाम है।

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राजनीति में ऊंचा मुकाम पाने वाले शिवराज सिंह चौहान पढ़ाई में भी काफी अव्वल थे। वैसे तो बचपन में उनकी शरारत के कई किस्से हैं लेकिन उन्होंने पढ़ाई कभी नहीं छोड़ी। भोपाल के बरकतउल्लाह विश्वविद्यालय के हमीदिया कॉलेज से दर्शनशास्त्र से पोस्ट ग्रेजुएशन किया और गोल्ड मेडलिस्ट स्टूडेंट भी रहे हैं।

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शिवराज सिंह चौहान सांसद बनने के बाद 6 मई 1992 को साधना के साथ शादी के बंधन में बंध गए। साधना गोंदिया के मतानी परिवार की बेटी थीं। उनके दो बेटे हैं। वह शहरी स्वर्णकार कॉलोनी के एक छोटे से मकान में रहा करते थे। सांसद बनने पर लोगों का आना-जाना बढ़ा तो उन्होंने विदिशा में शेरपुरा में एक मकान किराए पर लिया और फिर यहीं रहने लगे। शिवराज और साधाना के दो बेट हैं। एक का नाम कार्तिकेय सिंह चौहान और दूसरे का नाम कुणाल सिंह चौहान है।

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सीएम शिवराज सिंह चौहान काफी संवेदनशील हैं। वे कमजोर तबकों की परेशानियों को बखूबी समझते हैं। जनसभाओं में खुद को मामा बताने वाले शिवराज ने जानबूझकर यह छवि बनाई ताकि महिलाओं को सशक्तिकरण का अहसास हो। शिवराज भजन गाते हैं, मंदिर जाते हैं, किसी के इनविटेशन पर उसके यहां किसी भी कार्यक्रम में पहुंच जाते हैं। वो प्रदेश की बेटियों के जीवन की जिम्मेदारी उठाने की बात करते हैं ताकि लोगों को उनसे जुड़ाव हो, एक लगाव बन सके।

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शिवराज सिंह चौहान के अनोखे अंदाज हमेशा चर्चा का केंद्र रहे हैं। 2016 में उन्होंने बाढ़ग्रस्त इलाकों का दौरा किया। इस दौरान एक जगह पर बरसाती नाला पड़ने पर शिवराज को होमगार्ड के जवानों ने गोद में लेकर नाला पार कराया, जो खूब चर्चाओं में रहा। 2018 में मुख्यमंत्री पद जाने के बाद उन्होंने ट्रेन में आम लोगों के साथ सफर किया तो लोगों के हक के लिए रातभर जागकर भजन करते रहे। शिवराज कई मौको पर अपने चुटीले और सरल भाषणों से खूब सुर्खियां बटोरते हैं।

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सियासी कड़ी को बखूबी समझने वाले शिवराज ने सियासत के साथ ही डेवलपमेंट पर फोकस किया। मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने जनता के हित से जुड़ी योजनाएं चलाईं, जिससे उनकी लोकप्रियता और बढ़ गई। शिवराज ने महिलाओं के लिए लाडली लक्ष्मी योजना चलाई तो किसानों की फसल खरीदने की नीति पर काम कर उनका समर्थन हासिल किया। सबसे ज्यादा साल तक मुख्यमंत्री बनने वाले शिवराज लगातार एक्टिव रहते हैं। लगातार दौरे करते हैं, जनता के बीच जाते हैं और उनको यह एहसास कराते हैं कि कोई उनका अपना प्रदेश की बागडोर संभाले हुए है।

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साल 2021 में नर्मदा जयंती पर शिवराज ने हर दिन एक पौधा लगाने का संकल्प लिया। वे आज भी इसका पालन करते हैं। वो चाहे कहीं भी हों, पौधा जरूर लगाते हैं। इसमें भी जनभागीदारी सुनिश्चित करने के लिए उन्होंने 'अंकुर अभियान' की शुरुआत की जिससे आज प्रदेश भर के साढ़े पांच लाख से ज़्यादा लोग जुड़ चुके हैं। मध्यप्रदेश की जीवनरेखा नर्मदा नदी को ध्यान में रखकर शिवराज ने 'नमामि देवी नर्मदे सेवा यात्रा' अभियान शुरू किया। उनका मानना है कि ऐसे अभियानों से नदियां स्वच्छ हो सकेंगी। शिवराज निवेश पर भी फोकस करते हैं ताकि प्रदेश के विकास को आगे ले जाया जा सके।

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