जब 'मरदों' की नसबंदी पर औरतें चिल्लाती रहीं.. इस बीच असम में बसा दिए गए 20 लाख मुसलमान

भोपाल, मध्य प्रदेश. 1975-77 के बीच के 21 महीने, जिन्हें समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण ने 'भारतीय इतिहास की सर्वाधिक काली अवधि' कहा था...तब देश के 62 लाख पुरुषों की जबरिया नसबंदी करा दी गई थी। इसके बाद के आम चुनाव में विपक्ष ने एक नारा दिया था-'द्वार खड़ी औरत चिल्लाए..मेरा मरद गया नसबंदी में!' यह नारा मध्य प्रदेश में  भी दुहराने से बच गया। उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों मप्र सरकार ने स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों को पुरुषों की नसबंदी कराने का टार्गेट दिया था। इसका  बकायदा आदेश निकाला गया था। हालांकि विवाद बढ़ा और इसकी तुलना इंदिरा गांधी के आपातकाल से की जाने लगी..तो सरकार बैकफुट पर आ गई। उसने आदेश वापस ले लिया था। यह आदेश भले लागू नहीं हो पाया..लेकिन इसकी चर्चा अब भी हो रही है।  बता दें कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 26 जून 1975 को भारत में आपातकाल घोषित था। इस दौरान उनके बेटे संजय गांधी ने युद्धस्तर पर नसबंदी अभियान चलाया था। तब उनके हर कदम पर मेनका गांधी भी साथ थीं। आपातकाल में चुनाव स्थगित कर दिए गए थे। इंदिरा गांधी के सभी राजनीतिक विरोधियों को जेल में डाल दिया गया था। प्रेस की आजादी पर पाबंदी लगा दी गई थी। इसे लेकर देशभर में जनआक्रोश फैल गया था।  आइए जानते हैं..पुरुषों की जबरिया नसबंदी कराने वाले आपातकाल की कहानी और मप्र में कुछ ऐसा ही आदेश निकालने वालीं IAS छवि भारद्वाज के बारे में... 
 

Asianet News Hindi | Published : Feb 25, 2020 12:59 PM IST / Updated: Feb 25 2020, 06:38 PM IST
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जब 'मरदों' की नसबंदी पर औरतें चिल्लाती रहीं.. इस बीच असम में बसा दिए गए 20 लाख मुसलमान
पहले जानते हैं, क्या था आदेश: यह आदेश निकालने वालीं सीनियर IAS छवि भारद्वाज जहां भी कलेक्टर रहीं..अपनी कार्यशैली के कारण हमेशा लोगों की आंखों में 'सितारा' बनी रहीं। लेकिन पुरुषों की नसबंदी से जुड़े इस विवादास्पद आदेश ने उनकी किरकिरी करा दी। उन्हें 'राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन' के राज्य संचालक पद से हटा दिया गया। दरअसल, छवि भारद्वाज ने पुरुष नसबंदी को लेकर एक विभागीय आदेश जारी किया था। इसमें कर्मचारियों को हर महीने पुरुषों की नसबंदी कराने का टार्गेट दिया था। ऐसा न करने पर उनका वेतन काटने या नौकरी पर संकट आने की बात लिखी गई थी। इस आदेश से हड़कंप मच गया था। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसे आदेश की निंदा करते हुए सरकार पर 'आपातकाल' दुहराने का आरोप लगा दिया था। संभवत: इस लेडी IAS की सेवा में ऐसा पहला मौका होगा, जब उन्हें ऐसे हालात का सामना करना पड़ा है। ( जानिए 'पुरुषों की नसबंदी' से जुड़ा विवादास्पद आदेश निकालने वालीं इस IAS की कार्यशैली कैसी रही है...)
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ऐसी हैं छवि: छवि भारद्वाज को लिखने का शौक है। 2008 बैच की IAS छवि का 2 साल पहले 'लाइक अ बर्ड ऑन द वायर' नाम से एक उपन्यास प्रकाशित हुआ था। यह एक आईएएस अफसर की प्रेम कहानी पर आधारित है। छवि ने यह उपन्यास कुछ साल पहले छुट्टियों के दौरान लिखा था। यह उपन्यास तब सामने आया था, जब वे जबलपुर की कलेक्टर थीं। देश में जो भी लेडी IAS अफसर अपनी शानदार कार्यशैली के कारण सुर्खियों में रहीं, उनमें छवि भारद्वाज का नाम भी शामिल रहा है। इससे पहले वे भोपाल नगर निगम की कमिश्नर भी रह चुकी हैं। छवि भारद्वाज ने बीटेक करने के बाद 2007 में सिविल सेवा परीक्षा पास की थी। इन्हें पहली पोस्टिंग ग्वालियर में सहायक कलेक्टर के रूप में मिली थी। इसके बाद एसडीओ कटनी, सीईओ जिपं दमोह, कमिश्नर नगर निगम सिंगरौली के अलावा डिंडोरी और जबलपुर की कलेक्टर रही हैं। छवि भारद्वाज के पति नंदकुमारम भी आईएएस अफसर हैं। वे भी अपनी पत्नी की तरह एक धाकड़ और सच्चे जनसेवक की तर्ज पर कार्य करने वाले माने जाते हैं।
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संजय गांधी ने जबरिया करा दी थी 62 लाख पुरुषों की नसबंदी: आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी ने जनसंख्या पर काबू करने 62 लाख पुरुषों की जबर्दस्ती नसबंदी करा दी थी। इस ऑपरेशन में करीब 2 हजार लोगों की मौत हो गई थी। इसके बाद के चुनावों में विपक्ष ने एक नारा दिया था- 'जमीन गई चकबंदी में, मकान गया हदबंदी में, द्वार खड़ी औरत चिल्लाए, मेरा मरद गया नसबंदी में!' नसबंदी अभियान का यही शिगूफा मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भी छेड़ने की कोशिश थी। हालांकि विफल रहे। बता दें कि कमलनाथ संजय गांधी के करीबियों में शुमार रहे हैं। इसी नसबंदी अभियान के चलते जनता ने 1977 में इंदिरा गांधी को सत्ता से बेदखल कर दिया था। आपातकाल के दौरान संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी उनके हर निर्णय पर साथ थीं।
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इसलिए लगाया था आपातकाल: आपातकाल के बीज 1971 में हुए लोकसभा चुनाव में पड़ गए थे। इंदिरा गांधी ने रायबरेली सीट से राजनारायण को हराया था। जयप्रकाश नारायण के सबसे ताकतवर साथी राजनारायण ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। 12 जून, 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी का चुनाव निरस्त कर उन पर 6 साल तक चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगाई थी। इससे इंदिरा गांधी ने अपने खिलाफ माना और आपातकाल की घोषणा कर दी। आपातकाल से पहले इंदिरा गांधी ने पूर्वी पाकिस्तान से बांग्लादेश को अलग कराया था। तब मोहम्मद अली जिन्ना के सचिव रहे मुइन उल हक चौधरी ने इंदिरा गांधी के रबर स्टाम्प कहे जाने वाले तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के साथ मिलकर असम में 20 लाख से अधिक बांग्लाभाषी मुसलमानों को बसाया था। इसका विरोध आज तक देखा जाता है।
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आपातकाल को लेकर देशभर में जनआक्रोश फैल गया था। 1977 को हुए आम चुनाव में इंदिरा गांधी को बुरी तरह शिकस्त खानी पड़ी थी। यह और बात है कि इंदिरा गांधी ने अपने राजनीतिक विरोधियों को दमन करने उन्हें जेलों में ठुंसवा दिया था। आंदोलनों को कुचलने पुलिस की मदद ली।
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आपातकाल के दौरान देशभर में जनअंदोलनों का दौर-सा चल पड़ा था। जेपी नारायण के ताकतवर साथी राजनारायण को इंदिरा गांधी के खिलाफ खड़ा होने की प्रेरणा अपने प्रिय नेता डॉ. राममनोहर लोहिया से मिली थी।
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