30 मिनट में 600 मीटर नदी पार कर गया दिव्यांग बच्चा, फौलादी जज्बा देख लोगों ने किया सम्मानित
केरल. दृष्टिहीन बच्चे बहुत बार दिल में फौलादी जज्बा लेकर चलते हैं और कुछ ऐसा कर जाते हैं कि लोग दांतों तले उंगली दबा लें। ऐसा ही कुछ कर दिखाया है 11 साल के एक काबिल बच्चे ने। वो भले आंखों से दुनिया नहीं देख सकता लेकिन उसके पास सपने हैं और कुछ करने का जज्बा भी। दिव्यांग आर मनोज ने 30 मिनट में 600 मीटर की पेरियार नदी को पार कर इतिहास रच दिया।
Asianet News Hindi | Published : Mar 1, 2020 9:04 AM IST / Updated: Mar 01 2020, 02:35 PM IST
मनोज ने अपने ट्रेनर साजी वेलास्सेरिल के मार्गदर्शन में यह सपना पूरा किया। मनोज के रेस तीजने के बाद उन्हें फूल माला और सर्टिफिकेट देकर सम्मानित किया गया। सोशल मीडिया पर इस बच्चे की फोटोज छाई हुई हैं।
ट्रेनर साजी ने बीते 10 साल में 3 हजार से अधिक लोगों को स्वीमिंग सिखाई है। मनोज ने सुबह 8.10 नदी में तैरना शुरू किया। इस मौके पर अद्वैत आश्रम के प्रमुख स्वामी शिवास्वरूपानंद ने सभी प्रतिभागियों को हरी झंडी दिखाई। वहीं मनोज के लिए उनके ट्रेनर ने साउंड सिग्नल से स्वीमिंग शुरू करने का इशारा किया।
कक्षा छह के छात्र आर मनोज की इस उपलब्धि को देखने अलुवा शिव मंदिर के पास नदी घाट की रेत पर माता-पिता जी राजेश, के सुधा, स्कूल की प्रमुख गिगी वार्गीज, स्कूल मैनेजर वार्गीज अलेक्जेंडर और सैंकड़ों छात्र मौजूद थे जो लगातार मनोज का हौसला बढ़ा रहे थे। मनोज पूरी तरह दृष्टिहीन है वो बिल्कुल नहीं देख सकता लेकिन अपने कानों में वो अपने लिए होसलाअफजाई सुनकर आगे बढ़ता रहा।
मनोज का कहना है कि, "बहुत से लोगों के डूबने की खबरें मैंने सुनी हैं। अगर हम तैराकी जानते हैं तो पानी में दुर्घटनाओं से बचा जा सकता है। मेरी कोशिश है कि लोग तैराकी के महत्व को समझेंगे और मैं इसके लिए लोगों को जागरूक कर रहा हूं।"
बेटे की उपलब्धि पर पिता ने बताया, मनोज पहले निराश था, जब उसे पता चला उसके साथ दूसरे बच्चे भी हैं। वह हमेशा से स्वीमिंग करना चाहता था, लेकिन हमें उसके उचित ट्रेनर नहीं मिल रहा है। उसे साजी ने अपने पास ट्रेनिंग में रखा और मात्र 30 दिनों में ही उसकी प्रतिभा उभरकर बाहर आ गई।
मनोज के ट्रेनर साजी ने बताया, मनोज में तुरंत सीखने की गजब की क्षमता है। वह पिछले एक महीने से हर रोज सुबह 7 बजे तैरने आ जाता था। मात्र दो हफ्ते सिखाने के बाद वह बेहतर तैराक बन गया था।
बहुत से दिव्यांग बिना तैराकी सीखे डूब जाते हैं ऐसे में मनोज जैसों को यह सिखाने बहुत जरूरी था। यह शरीर और दिमाग दोनों के लिए बेहतर एक्सरसाइज है।