मोदी, राहुल से लेकर उमा भारती और उद्धव तक...जानें, देश के 20 बड़े नेताओं की अयोध्या पर क्या है राय?
नई दिल्ली. अयोध्या में राम मंदिर-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को रामलला के पक्ष में फैसला सुनाया। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने एकमत से विवादित जमीन पर रामलला का मालिकाना हक बताया। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को अयोध्या में मंदिर बनाने का अधिकार दिया है। साथ ही 5 एकड़ वैकल्पिक जमीन मुस्लिम पक्ष को देने के लिए भी कहा। इस फैसले पर देशभर की सभी पार्टियों के नेताओं ने अपनी राय रखी।
साल 1813 में पहली बार शुरू हुए विवाद पर बेंच ने 1045 पन्नों पर फैसला लिखा गया, जिसमें 929 पन्ने एकमत थे। कुछ मुद्दों पर एक जज ने फैसले से अलग राय रखी। जज के नाम का जिक्र नहीं।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि केंद्र 3 महीने के भीतर योजना बनाए और मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट की स्थापना करे। कोर्ट ने केंद्र को निर्देश दिया कि अगर सरकार को ठीक लगे तो वह निर्मोही अखाड़ा को ट्रस्ट में प्रतिनिधित्व दे सकती है। कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष यानी सुन्नी वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ की वैकल्पिक जमीन देने के लिए कहा है।
कोर्ट ने राम लला को कानूनी मान्यता देने की बात कही। साथ ही बेंच ने कहा कि एएसआई ने जो खुदाई की थी, उसे नकारा नहीं जा सकता। कोर्ट ने यह भी माना कि मस्जिद के ढांचे के नीचे विशाल संरचना मिली थी, जो गैर इस्लामिक थीं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, हिंदू अयोध्या को राम का जन्मस्थान मानते हैं। उनके धार्मिक भावनाएं हैं। मुस्लिम इसे बाबरी मस्जिद बताते हैं। हिंदुओं का विश्वास कि राम का जन्म यहां हुआ है, वह निर्विवाद है। हिंदू सदियों से विवादित ढांचे पूजा करते रहे हैं, लेकिन मुस्लिम 1856 से पहले नमाज का दावा सिद्ध नहीं कर पाए।
बेंच ने कहा- निर्मोही अखाड़े का दावा केवल प्रबंधन को लेकर है। आर्केलॉजिकल सर्वे के दावे संदेह से परे हैं। इसे नकारा नहीं जा सकता है। 'मुस्लिम दावा करते हैं कि 1949 तक लगातार नमाज पढ़ते थे, लेकिन 1856-57 तक ऐसा होने का कोई सबूत नहीं मिलता।'
'अंग्रेजों ने रेलिंग बनाई थी, इससे दोनों पक्षों को अलग रखा जा सके। 1856 से पहले हिंदू अंदर पूजा करते थे, मनाही करने के बाद वे चबूतरे पर पूजा करने लगे।'
सबूत हैं कि अंग्रेजों के आने से पहले राम चबूतरा, सीता रसोई में हिंदू पूजा करते थे। सबूतों में यह भी दिखता है कि विवादित जगह के बाहर हिंदू पूजा करते थे।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता में पांच जजों की बेंच ने इस मामले में 40 दिन में 172 घंटे तक की सुनवाई की थी। बेंच में जस्टिस एस ए बोबडे, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस ए नजीर भी शामिल थे। कोर्ट ने 16 अक्टूबर को सुनवाई पूरी कर ली थी।
2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट अयोध्या में 2.77 एकड़ का क्षेत्र तीन समान हिस्सों में बांटने का आदेश दिया था। पहला-सुन्नी वक्फ बोर्ड, दूसरा- निर्मोही अखाड़ा और तीसरा- रामलला। इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 14 याचिकाएं दाखिल की गईं थीं।