कैसे बालाकोट स्ट्राइक बन गई थी 'बंदर'...उससे जानें पूरी कहानी, जिसने रचा था ये चक्रव्यूह

नई दिल्ली. पिछले साल 26 फरवरी को भारतीय वायुसेना ने बालाकोट में एयरस्ट्राइक कर पाकिस्तान को उसी की भाषा में जवाब दिया था। ऑपरेशन के वक्त एयरफोर्स की वेस्टर्न कमांड के हेड रिटायर एयर मार्शल सी हरि कुमार ने बताया कि भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ (RAW) ने बालाकोट ऑपरेशन में खुफिया जानकारी देकर अहम भूमिका निभाई थी। 14 फरवरी को जम्मू कश्मीर के पुलवामा में हमले में सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हो गए थे। भारत ने बालाकोट में हमला कर जैश के आतंकी कैंपों को तबाह कर दिया। एयर मार्शल सी हरि कुमार ने बताया कि कैसे बालाकोट में हमले की योजना बनाई गई थी, उसे कैसे पूरा किया।

Asianet News Hindi | Published : Feb 26, 2020 11:54 AM IST / Updated: Feb 27 2020, 08:07 AM IST

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कैसे बालाकोट स्ट्राइक बन गई थी 'बंदर'...उससे जानें पूरी कहानी, जिसने रचा था ये चक्रव्यूह
बालाकोट एयरस्ट्राइक के एक साल होने के मौके पर कुमार ने समाचार एजेंसी एएनआई से बात की। उन्होंने बताया, बालोकोट पर रॉ ने जो खुफिया जानकारी दी थी, वह सटीक और बेहतरीन थी। उस वक्त जिस कॉरडिनेट्स की जरूरत थी, वह रॉ ने अच्छे से किया। उन्होंने कहा, रॉ की जानकारी के बाद हम निश्चित तौर पर आगे बढ़ रहे थे, साथ ही ISR प्लेटफार्म और सैटेलाइट के जरिए पुष्टि भी कर रहे थे।
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उन्होंने पुलवामा को याद करते हुए कहा, 15 फरवरी को प्रधानमंत्री ने कैबिनेट सुरक्षा समिति की बैठक में प्रधानमंत्री ने पूछा था कि क्या करना चाहिए? इसके बाद वायुसेना प्रमुख ने वेस्टर्न एयर कमांड से बात कर पूछा कि क्या विकल्प हैं।
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इसके बाद हम विकल्प खोजने पर काम करने लगे। 18 फरवरी को हमें इंटेलिजेंस से बालाकोट के बारे में जानकारी मिली। जब हमने टारगेट फिक्स कर लिया तो उसके बाद हमने उसके बारे में और जानकारी इकट्ठी करनी शुरू की।
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इस सवाल पर उन्होंने बताया कि बालाकोट की जब दूरी देखी गई तो यह एलओसी से 50 किमी दूर थी। साथ ही मिराज ही ऐसा विमान था, जिससे हम इतनी दूरी तक स्पाइस बम और क्रिस्टल मेज मिसाइल दोनों ले जा सकते थे।
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मिशन के दो दिन बाद रिटायर होने वाले एयर मार्शल हरि ने कहा, इन सभी ऑपरेशन में कई चैलेंज होते हैं। इनमें सबसे बड़ा चैलेंज था कि कैसे इसे सीक्रेट रखा जाए। उन्होंने कहा, हम पहले से तय कार्यक्रमों को रूटीन की तरह ही कर रहे थे। 14 फरवरी को पुलवामा में हमला हुआ, 16 को पोखरण में वायुशक्ति था। हमने पूरा अभ्यास किया। वायुसेना की ताकत दिखाई। इसके बाद नेशनल वॉर मेमोरियल का उद्घाटन और एयरो इंडिया शो होना था। हमने सभी कार्यक्रमों में हिस्सा लिया।
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उन्होंने बताया कि हम इसके पीछे ऑपरेशन की तैयारियों में जुटे रहे। साथ ही कोई भी बात मोबाइल पर नहीं की गई। यह आमने सामने होती थी, या फिर सिक्योर कम्युनिकेशन के जरिए। उन्होंने बताया कि इसकी जानकारी उन्हीं लोगों को थी, जो इससे जुड़े थे।
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पूर्व एयर मार्शल सी हरि कुमार ने बताया, 'हमने 18 फरवरी को टारगेट तय कर लिए थे। लेकिन हमले की तारीख 26 फरवरी चुनी। क्योंकि 26 फरवरी को मेरा जन्मदिन था। मैं सोचा यह शानदार रहेगा। साथ ही यह भी जरूरी था कि यह हमला एयरो इंडिया के बाद किया जाए, क्यों कि उस वक्त भारत में कई विदेशी लोग भी थे।
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उन्होंने बताया, यह ऑपरेशन की सफलता बताने के लिए कोड वर्ड रखा गया था। 25 फरवरी को मेरी फेयरवेल चल रही थी। उस वक्त वायुसेना प्रमुख बीएस धनोआ ने मुझसे अकेले में पूछा कि सब कुछ ठीक चल रहा है। उन्होंने कहा, ऑपरेशन सफल हो जाए और सभी सुरक्षित लौट आएं तो कॉल करके 'बंदर' कहना। बंदर को सफल मिशन का कोडवर्ड रखा गया था।
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उन्होंने बताया, हमने मिराज को ग्वालियर से उड़ाया। उन्होंने कहा, हमारे पास वेस्टर्न कमांड तक विमान लाने का एक और विकल्प था, लेकिन हमने ऐसा नहीं किया, ताकि सब कुछ सामान्य बना रहे। हम ग्वालियर से उड़ान भर बरेली सेक्टर पहुंचे। यहां से पहाड़ों के बीच होते हुए श्रीनगर के उत्तर से बालाकोट पर हमला किया।
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हमें पता था कि रडार पर आने से पहले हमारे पास 12 मिनट का वक्त था। इसके अलावा हमने अपने क्षेत्र में भी विमानों को स्टैंडबाय में रखा था कि अगर उन्होंने जवाबी कार्रवाई की तो हम पलटवार कर सकें।
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उन्होंने बताया कि बम गिराने का वक्त 3.28 तय किया गया था। लेकिन हमने 3.05 बजे 2 एफ-16 विमानों को उड़ान भरते पाया। हमने ईस्ट वेस्ट से उड़ान भरी। इससे वे बहावलपुर के लिए उड़ान भर रहे थे। बहावलपुर में जैश का बड़ा कैंप है। यह उनके लिए एक प्रलोभन की तरह था। इसमें वे फंस गए थे।
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